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    Tuesday, March 10, 2020

    मन में बचपन की बातें

    मन में बचपन की बातें 

    पार्ट -   1     2             4  


    नमस्कार दोस्तों मेरा नाम मनोज है में राजस्थान के भरतपुर जिले के गाँव फतेहपुर कलां में रहता हूँ
    सन 1  जनवरी २०१९
    ''इस दिन मेरा अपने दोस्तों से नया साल आया है, जो हमारा कुछ नया बनाता है |
    मेरे जीवन में इस जनवरी से पहले की बाते -
    बचपन से आज तक हम तीन दोस्त हैं -मनोज (लेखक), अभिषेक और सचिन हम तीनो अपने जीवन में एक ख़ुशी की पतवार (डोर) लिए घूमते हैं | हमारा जीवन एक अतुल्य ख़ुशी भरा जीवन है | इनमे से एक तो बाहर गाँव या पास के गाँव का है उसके गाँव का नाम मूंढौती है जो मेरे गाँव से करीब २.०० किमी की दुरी पर है हम दोनों, में और अभिषेक बचपन से कक्षा १ से ३ तक मूंढौती गाँव में साथ साथ पढ़ते थे में इसे तभी से जानता हूँ उसके बाद में कक्षा 4 से अपने गाँव के सरकारी स्कूल में पढने लगा तो में यहाँ ज्यादा किसी को नहीं जनता था सिर्फ अपने पडौस के बच्चो के अलावा |

     फिर कक्षा 5 में अभिषेक भी मेरे गाँव फतेहपुर कलां में पढने लगा तो उस वक्त मुझे बहुत ख़ुशी हुई थी की मेरे बचपन का साथी आ गया है | इस बक्त हम दोनों में और ज्यादा मुलाकात होने लगी थी | हम एक दुसरे से खुल कर बाते करते थे | हम दोनों एक रास्ते से घर जाया करते थे फिर बाद में वह अपने रास्ते चला जाता और में अपने घर रुक जाता था | इसी प्रकार हमारा सिलसिला चलता रहा | कक्षा 6 में हमारी जानकारी और कक्षा के बच्चों से भी होती थी | इसी कक्षा में हमारे दोस्तों की मण्डली में और भी नाम शामिल हुए | हम दोनों के अलावा लड़के जिनमे थे मुख्य सचिन और इनके बाद संजीत, वीरपाल, विमल आदि |

    लडकियों में मुख्य वर्षा, पूनम, वीरो, मलोदा, सरस्वती आदि | इसके बाद हमारी कक्षा बहुत सुन्दर तथा ख़ुशी के तारों जड़ी कक्षा थी | उस कक्षा में हमने बहुत मस्ती भी की थी तो पढाई भी | इस कक्षा में हम जो पहली पंक्ति कहें उसमे लड़कों में तो मैं (लेखक-मनोज), अभिषेक, सचिन थे और लड़कियों में वर्षा, पूनम और उसके साथ और अन्य एक लड़की बैठती थी | यहां बच्चे तय थे हम आगे बैठे या पीछे हम साथ बैठते थे | मैं और अभिषेक तो हमेशा साथ बैठते लैंच में खाना भी साथ खाते और तो और टॉयलेट (बाथरूम) भी साथ जाते थे |

     इसी तरह हम कक्षा में साथ रहते साथ खेलते और छुट्टी होने तक घर साथ जाते थे | फिर एक दिन हमारी खुशियों में किसी की नजर लग गयी और मेरे दिल में अभिषेक के प्रति घ्रणा की घंटी बजने लगी मेने उस पर एक एसा आरोप लगाया था की में उसे सोचकर आज भी अपने आप को माफ़ नहीं कर पा राहा हूँ | वह बात अब भी में उसे याद करता हूँ तो मेरे दिल में कांटे की तरह चुभती है | मेने उस निर्दोष पर ऐसा आरोप लगाया था |

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     वह आरोप था की वर्षा और अभिषेक के बारे में गलतफैमी जो मुझे आज भी रुलाती है | में एक दोषी हूँ | अभिषेक मुझे जो सजा दे वह स्वीकार है | उस बक्त हमारे बीच दरार पड़ गयी थी | कक्षा में दो गुट बन गए में मन में रोता था की ये तूने कैसा प्रलय कर दिया है | मेरी वजह से उसे बहुत बाते सुननी पड़ रही थी | लेकिन हमारी कक्षा में ऐसा माहोल देखकर टीचर भी चुप नहीं रहते थे वे भी कह देते थे की ये क्या हो रहा है | तुम ऐसे क्यों रहते हो उस वक्त हमारा दोनों का मन ये चाहा रहा था की हम मिल जाए |

     अभिषेक ने मुझे माफ़ तो कर दिया था | लेकिन मैं स्वयं को माफ़ नहीं कर पा रहा हूँ | हम दोनों को एक करना सभी चाहा रहे थे | इसी बीच वर्षा और पूनम भी अलग रहती थी तो वे भी चाहा रही थी की ये दोनों दोस्त एक हो जाये | ताकि हम मिल जाए | लेकिन हमें एक कराने वाला भी तो कोई हो, तब हमारी कक्षा में प्रियंका मैडम आई तो उनसे बच्चो ने सारी बाते कह दी तो मैडम ने मुझे थोडा डाटा और कहा चलो अब सब अपने पहले स्थानों पर बैठ जाओ तो हम सभी ख़ुशी ख़ुशी मिल गए |

     मैडम ने हमें जो पाठ पढाया था वह मुझे आज भी याद है, उस पाठ का नाम था ''अंकुर की बकरी'' उस वक्त वह पाठ हमारे पूरा याद हो गया था उसके बाद हम अगली कक्षा 7 में आ गए थे | हमें मन में ख़ुशी हो रही थी और हम कह रहे थे की अब हम बड़े हो रहे हैं | बड़े होने की बात से हम दीवारों पर अपनी ऊंचाई का निशान लगा रहे थे | जो शायद आज भी दीवारों पर मिल सकते हैं |

    तब भी हम खूब शरारत करते थे अब हमारे ग्रुप में और बच्चे भी बढे जो मुसलमानों के थे अब हमारा टोल था | जिसमे बच्चे थे लड़के मैं (लेखक-मनोज),अभिषेक,सचिन, मुन्ना लडकियों में वर्षा, पूनम,बईसन ये मुख्य थे जिनकी एक मण्डली थी | जो एक बात करते और पूरी कक्षा उन्हें स्वीकार करती थी | यहाँ भी शरारत में सबसे आगे यही मण्डल था एक दिन प्रार्थना स्थल पर सभी बच्चे प्रतिज्ञा बोल रहे थे तो आभिषेक के आगे सचिन ठौर उसके पीछे मैं था |

    में तो थी शरारती ! मेने यहाँ पर एक शरारत की थी मेने अभिषेक का कान नोचा था तो अभिषेक तो कुछ नहीं बोला लेकिन उसके बदले प्रिंसिपल बोल पडे | पूरे स्कूल के बच्चे बिठा दिये और मुझे और अभिषेक को खड़ा रखा | और कहा अब बताओ क्या परेशानी है | मैं तो चुप रहा अभिषेक बोला सर मनोज से पूछो क्या बात है | अब तो अभिषेक भी बिठा दिया | अब तो डाट मुझे ही पड़ी थी

    दोस्तों कहानी अभी बाकी है आगे पढने के लिए मेरी अगली पोस्ट का इन्तजार करे क्युकी आगे मजा आने वाला है मजा तो बचपन में ही था यारों इसलिए अगली पोस्ट जरूर पढना

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    बचपन में मन की बाते भाग 2

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