मन में बचपन की बातें 2
आपने पढ़ा..
पूरे स्कूल के बच्चे बिठा दिये और मुझे और अभिषेक को खड़ा रखा | और कहा अब बताओ क्या परेशानी है | मैं तो चुप रहा अभिषेक बोला सर मनोज से पूछो क्या बात है | अब तो अभिषेक भी बिठा दिया | अब तो डाट मुझे ही पड़ी थी |
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यहाँ से आगे तो हम धीरे धीरे कक्षा 8 में पहुंचे | उस वक्त कक्षा 8 बोर्ड हुआ करती थी | तो हम पढाई में जुट गे | इसके बाद कक्षा 8 की परीक्षा देने के बाद हमारा रिजल्ट आया तो उसमे रिजल्ट था की कक्षा में पहला स्थान था अभिषेक और दूसरा स्थान था मनोज मतलब मेरा और तीसरा स्थान बईसन चौथा पूनम का और पंचमा वर्षा का ऐसे ही सचिन का और मुन्ना का नहीं पता था | हम एक नई कक्षा 9 वी में पहुंचे उसमे एक टोपर लड़की आई जिसका नाप प्रयंका था |
हम तो थे ही शरारती हमारी फिरसे वही धुन चालू लेकिन बईसन उधम कम करती या कहे न के बराबर जो ज्यादा उधम करते वह मनोज पहला नंबर दूसरा वर्षा तीसरा पूनम चौथा या मेरे साथ में चलते थे अभिषेक , सचिन, मुन्ना | इस तरह उधम के सहारे जीते हमने अर्धवार्षिक परीक्षा दे दी तथा वार्षिक परीक्षा का समय था उसमे मैंने दो पेपर तो सही दे दिए लेकिन उसके बाद मेरे शरीर पर जो हमारी भाषा में कहे तो माता निकलना कहते है | उस वक्त मेरे पेपर थे |
अब मेरे आगे एक समस्या आई थी की में पेपर केसे दू | में इतना बीमार था की में चल भी नहीं सकता था | ना ही बैठ सकता ना ठीक से लेट सकता था | अब मैं मन मन में रोता, मैं क्या करू | तो मेरे पापा और मेरे जीजा जी स्कूल में पहुंचे और उन्होंने अजय सर से बात की तो सर ने जवाब दिया गया तो मुझे पकड़कर मम्मी, पापा, भाई, जीजा जी ले आये | पहले तो कहा की मनोज के पेपर अरबाज दे देगा लेकिन केसे दे वह उसका सिलेबस नहीं था तो तभी अजय सर ने कहा बता तेरा पेपर कौन दे सकता है |
तो मैंने कहा की अभिषेक | सर ने अभिषेक से पुछा तो उसने कहा की सर मई मनोज के पेपर दे दूंगा | उसी वक्त अभिषेक ने मेरे तथा स्वयं के दोनों के दो पेपर दिए थे | इस प्रकार मैंने कक्षा 9 वी पास की थी | अब हम दसवी कक्षा में हो गए तो सभी सोचने लगे | हम बाहर पढेंगे तो हमने | मैंने और अभिषेक ने भी बाहर पढने का निश्चय किया | लेकिन छुट्टियों में हमारी बाते नहीं हो पाई तो में नगर स्कूल में जाने लगा |
पूरे स्कूल के बच्चे बिठा दिये और मुझे और अभिषेक को खड़ा रखा | और कहा अब बताओ क्या परेशानी है | मैं तो चुप रहा अभिषेक बोला सर मनोज से पूछो क्या बात है | अब तो अभिषेक भी बिठा दिया | अब तो डाट मुझे ही पड़ी थी |
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हम तो थे ही शरारती हमारी फिरसे वही धुन चालू लेकिन बईसन उधम कम करती या कहे न के बराबर जो ज्यादा उधम करते वह मनोज पहला नंबर दूसरा वर्षा तीसरा पूनम चौथा या मेरे साथ में चलते थे अभिषेक , सचिन, मुन्ना | इस तरह उधम के सहारे जीते हमने अर्धवार्षिक परीक्षा दे दी तथा वार्षिक परीक्षा का समय था उसमे मैंने दो पेपर तो सही दे दिए लेकिन उसके बाद मेरे शरीर पर जो हमारी भाषा में कहे तो माता निकलना कहते है | उस वक्त मेरे पेपर थे |
अब मेरे आगे एक समस्या आई थी की में पेपर केसे दू | में इतना बीमार था की में चल भी नहीं सकता था | ना ही बैठ सकता ना ठीक से लेट सकता था | अब मैं मन मन में रोता, मैं क्या करू | तो मेरे पापा और मेरे जीजा जी स्कूल में पहुंचे और उन्होंने अजय सर से बात की तो सर ने जवाब दिया गया तो मुझे पकड़कर मम्मी, पापा, भाई, जीजा जी ले आये | पहले तो कहा की मनोज के पेपर अरबाज दे देगा लेकिन केसे दे वह उसका सिलेबस नहीं था तो तभी अजय सर ने कहा बता तेरा पेपर कौन दे सकता है |
तो मैंने कहा की अभिषेक | सर ने अभिषेक से पुछा तो उसने कहा की सर मई मनोज के पेपर दे दूंगा | उसी वक्त अभिषेक ने मेरे तथा स्वयं के दोनों के दो पेपर दिए थे | इस प्रकार मैंने कक्षा 9 वी पास की थी | अब हम दसवी कक्षा में हो गए तो सभी सोचने लगे | हम बाहर पढेंगे तो हमने | मैंने और अभिषेक ने भी बाहर पढने का निश्चय किया | लेकिन छुट्टियों में हमारी बाते नहीं हो पाई तो में नगर स्कूल में जाने लगा |
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वह सोच रहा था की मनोज ने यहाँ गाँव पढने से मना कर दिया लेकिन मुझे वह मिल नहीं सका और पूरे दसवी कक्षा तक नहीं मिले | मुझे किसी ने बताया की अभिषेक सेंटसोफिया में पढता है | फिर हमारे दशवीं कक्षा की परीक्षा आ गयी और हम सभी पेपर देने लगे थे | हमारे पेपर पूरे हो जाने के बाद पता चला की अभिषेक बीमार है | और वह अलवर अस्पताल में है | हमारी पूरी कक्षा बहुत दुखी थी |
हमें मुझे और सचिन को ज्यादा दुःख सता रहा था | फिर हमें पता चला की अभिषेक के पेट का ओपरेशन हुआ है | उसके पेट में मवाद पद गयी है मैंने और सचिन ने एक दिन प्ररण किया की किसी दिन अभिषेक के घर चलते हैं | लेकिन हमें अभिषेक का घर नहीं मालूम था | हम पूछ पूछ कर उसके घर पहुँच गए | लेकिन हमारे दिल में तरंगे दौड़ रहीं थी की अभिषेक से मिलना है | हमारा मन बहुत ही दुखी था फिर हमें अभिषेक दिखाई दिया वह बिस्तर पर एक चादर ओढ़े हुए था |
हम उसके पास गए और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोले अभिषेक ! लेकिन अभिषेक ने चादर के अन्दर अपना मुंह छुपा लिया और कुछ देर बाद हमने कहा तू हमारे स्कूल से गया है हमारे दिल से नहीं गया | हम आज भी तेरे साथ हैं तू क्यों चिंता कर रहा है हम सदा तेरे साथ हैं | बस इतना बोल सके हमारा मन अन्दर से रो रहा था तभी अभिषेक की मम्मी बोली बीटा चाय बना देती हूँ | हमने कहा नहीं आंटी हम चलते है | तभी अभिषेक बोला चाय नहीं तो पानी पी के जाना | हमने कहा ठीक है फिर पानी पीकर घर आ गए |
उस वक्त हम हमारे घरवालों से छिपकर गए थे | हमें देरी से घर आने पर डाट तो पड़ी लेकिन हमने किसी को बताया नहीं | उन छुटीयों के दौर में मैं अपने मामा के गया था बाद में आने में मुझे देर हो गयी थी जिसकी वजह से सचिन ने मेरा इन्तजार करने के बाद उसने अपनी टी सी कटा ली और नगर जमा करा दी थी | फिर मैं आया तो पता चला की सचिन नगर पढ़ रहा है और पूनम घर बैठ गयी है | और बईसन भी बैठ यानी की उसने अपनी पढाई रोक दी है | अब हम 11 वी कक्षा में गिने चुने आठ बच्चे थे |
अब हमारे स्कूल में नए अध्यापक आये हैं फिर मैंने सोचा में तो यहीं पढूंगा | में क्लास में गया तो देखा वहां दीदी बैठी थी मेरा मन तो नहीं लग रहा था पर एक लग्न थी दीदी कैसा पढ़ाती है देखते है | पढाई तो करनी है अबिस कक्षा में हमारी मण्डली में से दो नेता बचे थे वो थे | वर्षा और मनोज हम आपस में अपना दुःख बाटते थे और 11 वी कक्षा इस प्रकार दुःख सुख के साथ निकल गयी थी | उधर अभिषेक ने भी दसवी पास कर ली | लेकिन अभिषेक अब पहले जैसा लड़का नहीं था |
वह बेचारा अपनी संगती के प्रभाव से कुछ बदल गया था | नशा करने की लत लग गयी थी | वह गुटखा खाने लगा है | अब हमें कक्षा 12 वीं की ललक लग गई और किताबों की खीचा तानी हो रही थी उधर मेरी अभिषेक से मुलाकात नहीं होती | उसने (अभिषेक) ने सचिन के साथ हाई स्कूल में प्रवेश ले लिया था और हम इधर 12 वी की पढाई में जुट गए | मुझे पता है उस वक्त जब अभिषेक हमसे दूर था तब उसका मन नहीं लगता था लेकिन उसको किसी की बिगड़ी छाया ने अपने पंखो से ढक रखा था | इसलिए वह हमसे बात भी कम करता था और अपने आपको हमसे अलग मानता था |
लेकिन जब वह सचिन के साथ आया तो मैंने सोचा की अब मुझे परवाह नहीं अब सचिन संभाल लेगा | इस प्रकार उन्होंने एक होस्टल में रहने लगे | अब में जब भी बाजार जाता तो उनसे मिलने था कभी कभी तो में छोटे से काम के लिए बाजार जाता और खूब ज्यादा घंटे या समय अपने दोस्तों के साथ रहकर आता | उस समय मुझे ऐसा करना बहुत अच्छा लगता था | अब तो अभिषेक भी जब होस्टल से घर आता तो मुझसे मिलकर जाता और सचिन तो कभी कभी घर रहता था |
मुझसे मिलने के लिए खेत पर आ जाता था | शाम को भी खेत में पानी चल रहा तो भी आता और मेरे साथ खेत में पानी लगवाता | हमारा वह खुशियों से झिल-मिलाता संसार प्यार, प्रेम दोस्ती की सरिता (नदी) के समान मुस्कान थी | हम तीनो की मुस्कान देखकर सबके चहरे चमक रहे थे | अब में उनके होस्टल में रोज जाने लगा | फिर शायद मुझे लगा मेरी दोस्ती का रंग फीका पड़ रहा है | उस वक्त मेरी सगाई का दौर चलने लगा | घर में सगाई की चर्चा चलने लगी |
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