man me bachapan ki baaten part - 4


मन में बचपन की बातें पार्ट - 4 

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....मैं इस बात का अनुमान ऐसे लगता हूँ की जब मैंने सचिन से कहा था की तुम तो मेरी शादी पर जरूर आना तो उस  का जबाब था की देख तेरा तो पता नहीं हमारे स्कूल में एक लड़का है | वो हमें बुला रहा है | तो उसकी शादी में तो हम 99% जायेंगे |

अब आगे ..
लेकिन तेरी शादी में 1% जा सकते हैं तो इस बात को सुनकर मुझे ऐसा धक्का लगा की मानो की किसी ने मेरे दिल पर किसी ने दूर से कोई बड़ी शिला से वार किया हो |
 भला कोई ऐसे केसे कह सकता है | उस समय मुझे नहीं पता की मेरे साथ क्या हुआ | लेकिन जब सचिन ने मुझे अपने ह्रदय से लगाया था तो तब शायद कुछ कानों में आवाज टकरा रही थी | फिर शायद सचिन मेरे पैरो की और झुक रहा था | तो मेने अपने पैर हटाये थे उसके बाद मेरा ह्रदय जोरों से धड़क रहा था | मैं अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था | और पैर काँप रहे थे |( आप ये स्टोरी डेली स्टोरी मेकर पर पढ़ रहे हैं |) फिर में बोल नहीं पा रहा था | मैं बोलने का प्रयास कर रहा था | लेकिन आवाज बाहर नहीं आ रही थी फिर मैं संभला तो सचिन मुझे छोड़ कर चल दिया था।
 फिर भी मैं आवाज लगता रहा | फिर मैं घर जाते समय सोच रहा था की अब मैं तो इससे बात नहीं करूँगा | फिर मेने शोच लिया की अब ये मेरे दोस्त नहीं है | जो मुझे बिलकुल नहीं समझ पा रहे हैं | उस दिन के बाद में साहिल को अपना दोस्त मानने लगा था | लेकिन मैंने सोचा की शायद अभिषेक से भी बाते करके देख ले | एक दिन मेने अभिषेक को फोन  लगाया और अभिषेक कुछ हल्का सा बोला | मैंने कहा "तुम ऐसे क्यों रहते हो" उसने फोन काट दिया कुछ समय बाद फिरसे फोन किया लेकिन वो बोला नहीं था | मैंने कहा अब भी काट दे | उसने फोन काट दिया | अब मैं बार बार फोन लगा रहा था | तो वह फोन काट देता या उठता ही नहीं था | मुझे गुस्सा तो बहुत ज्यादा आ रहा था।
 लेकिन में क्या कर सकता था | मुझे लगा था की शायद अभिषेक भी ऐसा ही है | अब तो में अकेला था | और अब यदि कोई वर्षा मेरे दोस्तों की कमी महसूस नहीं होने देती थी | यदि मुझे दोस्त याद आते तो वर्षा मुझे कुछ काम में लगा लेती थी | इस साल मेरे कठिन परीक्षा थी | एक तरफ तो कक्षा बोर्ड थी | दूसरी तरफ दोस्तों की परीक्षा | अब में साहिल के साथ रहता था | मुझे ऐसा लग रहा था की जैसे भगवान ने मेरे दोस्तों के बदले साहिल को भेजा है | एक दिन साहिल अपनी क्लास के साथ ऊपर बैठा था | मैं भी वहां चला गया | तो मैंने कहा की क्या हो रहा रही | साहिल चुप था | फिर में भी कुछ देर के लिए चुप था | फिर साहिल बच्चो से कह रहा था की "मैं तो भाई 'जन्नी' से कहे रहा हूँ की कुछ कलमा पढ़ दे जासु सर सर दर्द कम हो जाए (यहाँ पर 'जन्नी' एक लड़की का नाम है ) | फिर मैं बोल गया की 'साहिल में तेरे सर दर्द को कम कर सकता हूँ' | 

साहिल मेरे पास था | मेने उसके सर के हाथ लगाया तो तुरंत साहिल ने कठोर शब्दों में बोलते हुए कहा की - " ए हट जायने "उस बक्त मुझे वो शब्द बहुत कडवे लगे थे | मानो साहिल ने मेरे गाल पर तमाचा जड़ दिया हो और जैसे कह रहा हो की तू मेरे हाथ लगाने के काबिल नहीं है | ये शब्द सुनते ही में वहां से ऐसे आ गया जैसे मुझे वहां से बेइज्जत करके भगा दिया हो | उससे अगले दिन से हमारी कुछ दिन की छुट्टियाँ पड़ने वाली थी | लेकिन वर्षा को ना जाने ये बात कैसे पता चली थी की मनोज साहिल से नाराज है | वैसे तो वर्षा ने मुझसे कुछ नहीं कहा था | लेकिन वर्षा भी बेचैन थी | 

उसके बाद छुट्टी में घर आ गया फिर दीदी ने फोन किया था  की मनोज स्कूल पर आना हैं | में गया दीदी बोली की ले बेटा ये थोड़ी सी लाईन है इन्हें इधर लिख दे | मेरा मन तो उस बात पर था की साहिल भी मेरा दोस्त नहीं बनना चाहता है | मैं मन में सोच रहा था की यदि साहिल मेरे पास आया तो वह मेरा दोस्त रहेगा वर्ना नहीं | फिर एक चमत्कार हुआ साहिल बाइक से मेरे पास आ रहा था | 

मैंने सोचा ये सच है या सपना चल रहा है | देखा तो वह सच में था | मैं अपने काम में लगा था | वो बोला क्या हो रहा है भाई | मैं चुप रहा फिर काम पूरा हुआ और में घर जाने लगा | वह बोला रुक जा भाई | मैंने कहा क्या बात है | वह बोला उस वक्त मेरा सर दर्द था | में क्या करू तो | वह बोला चल तुझको तेरे घर छोड़ दू | में बोला खुद जा सकता हूँ | भगवान् ने मुझे पैर दिए है \ इतना कहकर मैं चल पड़ा | उस दिन मेरी आँखों में आंसू आ रहे थे | मम्मी का उस दिन व्रत था | तो मम्मी बोली मनोज इधर आ मैं तुझे कहानी सुनाती हूँ | 

मैंने कहा ठीक है | आंसू बार बार आ रहे थे में उन्हें पोछता मम्मी बोली क्या हो रहा है ? मैंने कहा आँखों में खुजली है | हम सभी को छुट्टियों में एक दिन दीदी ने बुलाये थे उस दिन हम स्कूल आने के लिए तड़फ रहे थे | मैंने सोचा की चलो उसे बता देता हूँ की कल स्कूल आना है | मैंने साहिल को बताया वह सच नहीं मान रहा था | मैंने फोन काट दिया था | फिर वह स्कूल आ गया था | हम फिर से बोलने लगे थे | मेने अभिषेक के पास फोन लगाया तो उसका फोन स्विच ऑफ था | मैंने गाजिया के फोन पर कॉल किया।
मैंने कहा अभिषेक से बात कराना वह अभिषेक को बुला रहा था | की मनोज का फोन आया है | वो यह सुनकर भाग गया | वो अपने जवानी के घमंड में चकना चूर था | वो मुझसे बातें नहीं करना चाहता था | फिर मुझे गुस्सा आ रहा था | फिर मैंने फोन काट दिया अगले दिन वो होस्टल में थे | दोस्तों मैं आपको बता दू जब कोई अपने दोस्त को कॉल करता है तो वह व्यक्ति मन में कितना उमंग भर कर कॉल करता है | जब यदि कोई उस वक्त कॉल नहीं उठता या उठाकर काट देता है तो उस दोस्त को कितना बड़ा झटका लगता है |

 जो चलाकर फोन करता है इस बात को तो वह जान सकता है जिसके साथ ऐसा हुआ है | उस दोस्त के दिन से पूछो की उस पर क्या गुजर रही है | लेकिन फिर भी लोग ऐसा करते है | दोस्तों मैं आपको एक बात बता दूँ की हमें दोस्ती ऐसे दोस्तों से करनी चाहिए जो हमारे दिल का हाल जानता है | हमारी चिंता करता है हमें सच्चे दिल से जो दोस्त माने | या ऐसा दोस्त जो हमें बचपन से मिला है | वह बचपन में तो अच्छा हो लेकिन बड़ा होने पर वह किन्ही कारणों से आप के साथ रहने में लापरवाह है | तो उसे फिर से उसके उस बचपन के रास्ते पर लाने की कोशिश करनी चाहिए |

 दोस्तों में आपको अब अपनी बात बता दू की जब सचिन और अभिषेक होस्टल में थे तो मैंने कॉल किया था | शाम का समय था | मैंने फोन किया फोन पर अभिषेक बोला था | मैं वेसे ही बात करने लगा तभी अभिषेक बोला बाद में बात करना | फोन कट गया | तभी अभिषेक बोला - ये अपने आप को क्या समझते हैं | मुझे नहीं पता था वह क्या कर रहे थे | बाद में फिर फोन नहीं आया था |

 दुसरे दिन वह मेरे घर आए थे | उस वक्त मेरे स्कूल में ऐसे ही मूड खराब था मैं घर आ गया कुछ देर बाद अभिषेक और सचिन आये | सचिन ने आवाज लगाई मनोज ! मैं उस वक्त खाना खा रहा था | में खड़ा होकर बोला क्या बात है | यहीं आ जाओ ने | वो बोला हम जा रहे हैं | मैं तो अभिषे को छड़ने जा रहा हूँ | उस वक्त मैंने कहा जा रहे हो तो जाओ | फिर यहाँ क्यों आये।
 यह बात सुनकर वह दोनों ऐसे भागे जैसे उन्होंने किसी मधुमखी के छत्ते में हाथ डाला हो और फिर लोटकर नहीं आए | उन्हें यह कहाँ पता था की मनोज का स्कूल में किसी की वजह से दिमाग खराब था | मुझे पता है की मेरा एसा बोलना उन्हें बहुत बुरा लगा था | लेकिन क्या करें एक बार मुहं से निकली बात वापस केसे ले | फिर में सचिन से मिला था | मैंने कहा की सचिन भाई क्या करे | मुंह से निकल गई थी।
 लेकिन सचिन उस वक्त फूल गुस्से में था | अरे भई मानो किसी से गलती हो जाती है और वह उस गलती को स्वीकार कर ले तो उसे तो भगवान् भी माफ़ कर देता है | लेकिन वो तो मेरे दोस्त थे उन्हें अपना तो पता है की हमें बुरा लगा है | लकिन जब बाजार में मनोज कार के नीचे आ जाता तब मनोज आवाज लगता हार गया तब उन्हें नहीं पता था की मनोज को कैसा लगा होगा |चलो माना मुझसे गलती हुई थी | लेकिन मनोज तुम से अपनी माफ़ी जता रहा था | 
फिर भी उसे माफ़ नहीं किया जा सकता था क्या ? आप ही बताईये अब क्या करें | फिर में भी चुप रहा कुछ दिनों ता | कुछ दिनों के बाद मैंने अभिषेक को फोन मिलाया था | फोन स्विच ऑफ था | मैंने गजिया के पास मिलाया जो शायद उसके ताऊ का लड़का है | उससे कहा भाई अभिषेक से बात करा दे, अभिषेक भाग रहा था |
कहानी अभी बाकी है उसको आप पार्ट - 5 में पढ़ें 

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