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    Monday, June 11, 2018

    राजा रग - हिंदी कहानी

    ramayan ki suruaat kahan se hui?


    पार्ट   1 ,    2

    राजा रग - हिंदी कहानी 

    नमस्कार दोस्तों में आज एक ऐसी कहानी लेकर आया हु जो बिलकुल सच है कहानी बहुत दिनो पहले की है |किसी राज्य में एक राजा राज्य करता था उसका नाम रग था राजा के कोई संतान नहीं थी राजा इस बात को लेकर चिंता में डूबा हुआ था जिसके कारण वो रोज पंडितो को अपने महल में बुलाकर पोछते रहते थे और उनको दान दक्षिणा देते थे |  एक दिन एक गरीब पंडित उसके महल में पहुंच गया जब वह महल में पंहुचा तो उसने देखा की वह पर बहुत सारे पंडित थे और राजा उनसे पूछ रहे थे की हमारे जीवन में संतान का सुख है या नहीं |
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    पंडितो ने उसको कुछ न कुछ इधर उधर की बातें बता कर दक्षिणा लेकर चले गए अंत में उसको भी दक्षिणा मिल  और वो भी दक्षिणा लेकर दक्षिणा चले गए | अगले दिन पंडित आये और उस गरीब पंडित से राजा पूछने लगा तो उस पंडित ने अपना पत्रा देखा और कहने लगा महाराज सही बात बताऊ या गलत बात बताऊ | राजा राजा कहने लगा सब बात सत्य बताओ हम गलत बात सुनना नहीं चाहते  | पंडित ने कहा महाराज आपको इस जन्म में तो क्या सात सात जन्म तक संतान नहीं होगी | राजा को इस बात का बहुत दुःख हुआ राजा ने पंडित से कहा ये तुम क्या कह रहे हो सात जन्मो तक संतान नहीं होगी |

     लेकिन इसका कोई उपाय नहीं है क्या ? पंडित ने कहा महाराज इसका उपाय तो है लेकिन थोड़ा कठिन काम है | राजा कहने लगा बेसक कितना भी कठिन काम क्यों न हो में कार्य को पूरा अवश्य करूंगा आप उपाय बताओ | पंडित कहने लगा महाराज आप जिस खजाने से आप गरीबों को दान करते हो और जो ये राजमहल है ये आपकी मेहनत का नहीं है इसे तो आपके पूर्वज छोड़कर गए है अर्थात आपको अपनी मेह्नत से किसी के पास काम करके जो पैसा कमाओगे उस पैसे से किसी ब्राह्मण को भोजन खिलाओ और उन ही पेसो से उसको दक्षिणा दो तो आपको संतान का सुख संभव हो सकता है नहीं तो सात जन्मो तक आपको संतान नहीं हो सकती है |

     राजा ने किसी किसान के यहाँ हाड़ी बनकर दिन रात मजदूरी की और मजदूरी से जो पैसा हासिल हुआ उससे उसी ब्राह्मण को भोजन खिलाया आखिर में उसके पास एक चवन्नी बच गयी और उस चवन्नी को उसने उसको दक्षिणा में दे दिया ब्राह्मण की पत्नी घर पर राह देख रही थी की आज तो राजा के यह भोजन करने गए है और राजा के पास से तो उनको बहुत दान मिलेगा इसलिए वो तराजू और बाँट लेकर दरवाजे पर उसको तोलने के लिये आ गयी ब्राह्मण जब घर पंहुचा तो उसने देखा की उसकी पत्नी तराजू बाँट लेकर बैठी हुई है उसके पहुंचते ही उसकी पत्नी ने पूछा राजा ने दक्षिणा में क्या दिया है तो ब्राह्मण ने कहा एक चवन्नी मिली है |

    उसकी पत्नी ने गुस्से में बाकर कहा फेंक आओ इसे उसी के महल में | राजा होकर चवन्नी ही दी है | ब्राह्मण ने उसके महल में जाकर उस चवन्नी को फेक दिया राजा को उस चवन्नी का बहुत दुःख हुआ क्योकि वो चवन्नी उसने बहुत मेहनत करके कमाई थी इसलिए राजा ने तुरंत उस चवन्नी को लाने के लिए सैनिकों को भेजा | सैनिक जाकर उस चवन्नी को जैसे ही उठाते वो चवन्नी नीचे जमीन में अंदर की तरफ जाने लगी सैनिक ने थोड़ा मिटटी हटाकर उस चवन्नी को उठाना चाहा लेकिन वो चवन्नी और नीचे की तरफ चली गयी सैनीक फिर खोदने के लिए कुछ औजार लेकर आ गए और खोदने लगे लेकिन वो चवन्नी और नीचे की तरफ चली गयी |

     थोड़ी देर में सैनिक पूरी तरह से खोदने में जुट गए और जमीन के अंदर बहुत नीचे  तक खोदते चले गए आखिर में वो चवन्नी एक पत्थर की शिला से टकरा गयी अर्थात नीचे एक बड़ा सा पत्थर की शिला थी जिसपर जाकर वह चवन्नी रुक गयी और उसको लेकर राजा को दे दी राजा ने चैन की श्वास ली लेकिन उसका ध्यान उस पत्थर की शिला पर  पड़ी |

    राजा दशरथ का जन्म 


    राजा उस पत्थर की शिला को देख कर सोचने लगा ये शिला इतनी नीचे क्यों है आखिर क्या है इसके नीचे | राजा ने उस शिला को हटवाया सैनिको ने उस शिला को हटा दिया राजा ने देखा की उस शिला के नीचे एक सुन्दर सा सजा हुआ रथ था जो हीरो और मोतियों से सुसज्जित था राजा ने आदेश दिया तो उस रथ को बाहर निकलवा लिया | लेकिन राजा ने फिर नीचे देखा तो उस रथ के निकलने के बाद भी उसके अंदर एक रथ और था राजा ने उस रथ को भी निकलवाया लेकिन उसके नीचे एक रथ और था | इस प्रक्रिया से नौ रथों को राजा उसके अंदर से निकाल चूका था लेकिन जब नीचे और देखा तो उसमे एक और रथ था राजा ने उसे भी बाहर निकलवाया तो उस रथ में देखा तो एक लड़का और एक लड़की दोनों अंगूंठा पी रहे थे दोनों बच्चे बहुत छोटे थे |

    उनको देखकर राजा बहुत खुश हुआ और ईश्वर को धन्यवाद दिया की उसके जीवन में संतान का सुख आ गया है | राजा ने ख़ुशी से सभी को भोजन भरपूर दान दिया | अब राजा पंडित से कहने लगा पंडित जी इनका नाम क्या क्या रखे हमें इनका नाम बताये | पंडित जी कहने लगे लड़का दशमे रथ से निकला है तो इसका नाम दशरथ होना चाहिए और लड़की का नाम चंद्रावल होना चाहिए | लड़का व लड़की दोनों बड़े होने लगे लड़का और लड़की जवान हो गए लड़की सखियों के साथ घूमने जाने लगी | इधर उद्याल  ऋषि समुन्द्र के बीच में तपस्या कर रहा था और उसका कोई सुरत डिगने से उसका वीर्य खंडित हो गया |

     उद्याल ऋषि ने उस खंडित वीर्य को एक फूल पर रखकर उसको समुन्द्र में बहा दिया | फूल बहता हुआ जा रहा था | इधर लड़की चंद्रावल अपनी सखियों के साथ उस समुन्द्र के किनारे घूम रही थी अचानक उसकी नजर उसी फूल पर पड़ी | चंद्रावल ने अपनी सखियों से कहा उस फूल को लेकर आओ सखी उस फूल को लेकर चंद्रावल को दे दिया चंद्रावल ने जैसे ही उस फूल को सुंघा फूल में रखा वीर्य उसकी नाक से होकर उसके गर्व में चला गया | लड़की चंद्रावल गर्व से रह गयी कुछ दिन बाद जब पेट उभरा हुआ दिखाई दिया तो उसके पिताजी ने देखा और उसको उस लड़की को देश निकाला दे दिया | लड़की चंद्रावल को बहुत दुःख हुआ उसने अपने के अंदर आवाज लगायी दुश्मन जहाँ से तू अंदर गया है वहीँ से पैदा होना |

     नौ महीने बाद वो लड़का नाक से ही पैदा हुआ | लड़का नाक से पैदा होने वाले लड़के का नाम नाशकेत रख दिया लड़की चंद्रावल ने उस फूल को जहाँ से उठाया था उस लड़के को भी वही से समुन्द्र में बहा दिया और कहा जा दुष्ट तू जहाँ से आया था वही तू जा | लड़का बहता हुआ उसी फूल की तरह जा रहा था और वही उस उद्याल ऋषि के पास जा पंहुचा  लड़की चंद्रावल भी उसके पीछे पीछे उद्याल ऋषि के पास जा पहुंची और ऋषि के पास जाकर उसने कहा मुनि महाराज ये बच्चा आपका है ऋषि कहने लगा ये मेरा कैसे हो सकता है लड़की ने जवाब दिया 'आपने एक दिन एक फूल पानी में बहाया था  उसमे आपने कुछ रख दिया था जिसे सूंघकर में गर्ववती हो गयी ये वही बच्चा  है|

    उद्याल ऋषि ये सब देखकर चौंक गया उसने अपनी दिव्य शक्ति से देखा तो वो लड़की झूठ नहीं बोल रही थी | लड़की ने उस ऋषि को सारी बात बता दी की उसके पिता ने उसको घर से निकाल दिया है | लड़की कहने लगी महाराज आपको मेरा उद्धार करना होगा मेरे साथ शादी करनी होगी अगर मेरी शादी नहीं हुई तो लोग मुझे अपशब्द कहेंगे | उद्याल ऋषि ने पूछा आपके पिता कौन है लड़की ने कहा मेरे पिता श्री राजा रग है | उद्याल ऋषि कहने लगा चलो चलते है उनके पास और आर्शीवाद लेकर आते है | लड़की चंद्रावल ने उसको रोका और कहा में आपके साथ नहीं आ सकती क्योकि में वहां बदनाम हो गयी हूँ इसलिए पहले आपको वहां जाकर के उनको वचनो के बंधनो में लेकर उनसे मेरा हाथ मांग लेना उसके बाद में आपके साथ वहां चलूंगी |

    उद्याल ऋषि राजा के दरवार में गया और वहां पर धूना लगा कर बैठ गया | दोस्तों एक बात बता दूँ राजा महाराजा ऋषि मुनियो की बहुत सेवा करते है इसलिए राजा ने उसको देखा तो राजा उनका आदर सत्कार करने लगे और उनकी सेवा करने लगे  राजा ने कहा महामुनि आप क्या चाहते है में वही आपके लिए भोजन के लिए लेकर आऊं | उद्याल ऋषि ने कहा हम तब तक भोजन नहीं करेंगे जब तक हमें हमारी इच्छा पूरी नहीं होगी | राजा ने उससे पुछा बोलो मुनिवर में आपकी क्या इच्छा पूरी कर सकता हूँ वो क्या चीज है जो में आपको दे सकता हूँ | उद्याल ऋषि कहने लगे में  जो चीज मांगने जा रहा हूँ उसको आप नहीं दे सकते राजन ! राजा राग कहने लगा मुनिवर आपके लिए में अपनी जान भी देने को तैयार हूँ आप मांगके तो देखिये में आपको खुसी ख़ुशी देने को तैयार हूँ |

     उद्याल ऋषि कहने लगा पहले आप वचन दो तब में आपसे वो चीज मागूंगा | राजा ने कहा में वचन देता हूँ जो आप कहोगे में वही दूंगा चाहे मुझे अपने प्राणो की बलि ही क्यों न देनी पड़े | उद्याल ऋषि ने कहा मुझे आपकी लड़की चंद्रावल का हाथ चाहिए और आपका आर्शीवाद | राजा कहने लगा मुनिवर लेकिन हमने तो उस लड़की को भगा दिया है वो इस समय कहाँ है हमें ये भी नहीं पता है | उद्याल ऋषि कहने लगा आप उसकी चिंता न करे उसको में लेकर आऊंगा |
    उद्याल ऋषि चंद्रावल को लेकर आ गया और उसकी शादी लड़की चंद्रावल से हो गयी शादी हो गयी | तभी तो लोग कहते है " हाय करतार कैसी रची बाप विवाह बेटा की छटी " इसका मतलब है उद्याल ऋषि की शादी हो रही है और उसी का लड़का छः दिन का हो गया | दोस्तों समय बीतता गया कुछ दिन बाद दोनों की शर्म से एक लड़का पैदा हुआ जिसका नाम श्रवण दिया क्योकि वह शर्म से पैदा हुआ था | अब उदयाल ऋषि और चंद्रावल दोनों के दो लड़के थे एक नाशकेत और दूसरा श्रवण दोनों लड़के बहुत सुन्दर थे | एक बार उदयाल ऋषि और चंद्रावल दोनों को विषयभोग करते देख उसके लड़के ने श्राप दे दिया और कहा की तुम जीवन में कभी नहीं देख सकोगे क्योकि तुमने हमारे सामने विषयभोग किया है तुम जीवन भर अंधे रहोगे |

    थोड़ी देर में उसके माता पिता अंधे हो गए और में तपस्या करने जा रहा हूँ मेरे छोटे भाई का ख्याल रखना | बड़े बेटे के ऐसे कटु वचन सुनकर दोनों को बहुत दुःख हुआ उनको एहसास हो गया की उनको उनके सामने विषयभोग नहीं करना चाहिए | दोस्तों  इधर श्रवण की शादी हो जाती है और उधर नाशकेत तपस्या के लिए चला जाता है श्रवण कुमार अपने माता पिता की खूब सेवा करता था वो उनके लिए एक आदर्श लड़का था श्रवण ने बहुत सारी गायें पाल ली और अपनी पत्नी से कहा हमारे घर में रोजाना खीर बननी चाहिए क्योकि माता पिता को खीर बहुत पसंद है उनकी हर मनोकामना पूरी करना मेरा धर्म है | उसकी पत्नी ने सुनकर हाँ कर दिया और अगले दिन वो एक कुम्हार (प्रजापति) के घर गयी और उससे कहा प्रजापति जी मुझे एक ऐसी हांडी बना दीजिये जिसमे उसका मुँह एक हो और दो चीज एक साथ में पका सकू | प्रजापति ने दिमाग लगाया तो उसने वह इस तरह की हंडिया बना दी और कुछ दिन बाद उसको पका दिया पकने के दूसरे दिन श्रवण कुमार की पत्नी उसको ले गयी | और ले जा कर उसमे एक तरफ खीर और दूसरी तरफ खट्टी छाछ की रावडी पकाई जिसमे से खीर को श्रवण कुमार को  खिलाती और खट्टी रावडी को सास ससुर को देती थी | बहुत दिनों तक ऐसा ही चलता रहा एक दिन श्रवण कुमार कहीं भी बाहर नहीं गया और भोजन के टाइम अपनी पत्नी को बताये बिना खीर की थाली को उठा कर अपने माता पिता को ले आया | क्योकि उसकी पानी ने उस टाइम दो थालियों में भोजन परोस रखा था जो एक खुद के लिए और दूसरी थाली श्रवण कुमार के लिए थी | खट्टी रावडी की थाली तो वो भोजन करने के बाद उनको देकर आती थी | श्रवण कुमार जब माता पिता के पास पंहुचा तो उसने दोनों को भोजन खिलाया | तभी उनके माता पिताओं ने कहा बेटा बहुत दिनों बाद खीर खाई है बहुत स्वादिस्ट खीर बनाई है | श्रवण कुमार ये बात सुनकर दंग रह गया और कहा ये आप क्या कह रहे हो पिताजी हमारे यहाँ तो रोज खीर बनती है और तुम कह रहे हो आज बहुत दिनों के बाद खीर खाई है | उसके पिता ने कहा बेटा हम तो आज ही खीर खा रहे है रोजाना तो खट्टी रावडी खाते है | श्रवण कुमार को मामला समझ नहीं आ रहा था क्योकि वो तो रोजाना खीर खाता है और एक हांडी में पकती है लेकिन उनको कैसे खट्टी रावडी जाती है | वो अंदर रसोई में गया और हांडी पर नजर गयी तो उसने देखा उसमे मुँह तो  एक है लेकिन उसके अंदर दो चीज आसानी से पकाई जा सकती थी क्योकि उसमें बीच में एक पर्दी लगी हुई थी | ये देख कर वो सब समझ गया की ये किसने और क्यों किया है |

    पार्ट   1 ,    2

    दोस्तों कहानी अभी बाकी है उसके लिए  part -2 अगली पोस्ट   इसका अगला भाग   में देखे |
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