सत पुरुषों की सादगी एवं निर्भीकता - full information

सत पुरुषों की सादगी एवं निर्भीकता - full information 

सादगी महापुरुषों का आभूषण है | इस भारत भूमि ने अनेकों ऐसे महामानव दिए हैं जिन्होंने लोभ व शानों - शौकत का जीवन न जीते हुए सदैव सादगी व संयमपूर्ण जीवन जीकर अपने को अमर किया है | ऐसे महामानवों से भारत का इतिहास भरा पड़ा है - पढ़िए ऐसी ही एक जीवन गाथा -

             सादगी - 

                                       महाराष्ट्र के पेशवा माधवराव के गुरु , मंत्री एवं प्रधान न्यायाधीश जैसे उच्च पद पर श्रीराम शास्त्री नामक एक कुलीन ब्राहमण थे | विव्दता एवं उच्च पदों से सम्पन्न होकर भी शास्त्री जी का जीवन सादगी का मूर्त रूप था | एक दिन शास्त्री जी की धर्म पत्नी आवश्यक कार्यवश राजमहल में रानी के पास गयी रानी ने गुरुपत्नी को जनसाधारण से भी सामान्य वस्त्रो में देखा तो बड़ा आश्चर्य हुआ | उन्हें गुरुपत्नी की यह स्थिति अपने और स्वयं महाराज माधवराव के सम्मान में एक कमी मालुम हुई | उसने सोचा गुरुपत्नी की इस दशा से महाराज की निन्दा होना स्वाभाविक है | रानी ने गुरुपत्नी को सुन्दर - सुन्दर बहुमूल्य वस्त्र , आभूषण पहनाये और सम्मान के साथ कहारों द्वारा पालकी में बैठाकर घर भिजवाया |

                            कहारों ले द्वार पर जाकर किवाड़ खटखटाये | शास्त्री जी बाहर आये किवाड़ खोले किन्तु यह कह कर बंद कर दिये | 'भाई यह बहुमूल्य बस्त्राभूषणों से अलंकृत देवी कोई और है आप लोग भूल से यहाँ आ गए | इन्हे तो किसी भव्य महल या राज्सप्रसादों में ले जाओ | '  शास्त्री जी की धर्मपत्नी उनके स्वभाव को भली प्रकार जानती थी | वह राजमहल में लौट गयी और वहां उन बहुमूल्य वस्त्राभूषणों को छोड़कर अपने पूर्व वस्त्र धारण किये और पैदल ही राजमहल से अपने घर तक आई तो दरवाजा खटखटाना नहीं पड़ा, दरवाजे खुले थे |

           शास्त्री ने कहा 'भद्रे ! बहुमूल्य वस्त्र आभूषण तो अविवेकी लोगों द्वारा अपनी अज्ञानता , संकीर्णता , क्षुद्रता को छिपाने के साधन हैं , या अपने अभिमान , बड़प्पन का प्रदर्शन करने का साधन हैं | सत्पुरुषों का आभूषण सादगी सादगी है | इस पर भी हम तो ब्राहमण हैं , दूसरों को प्रगति और मर्यादाओं पर चलने का मार्ग दिखने वाले मार्ग दर्शकों की सम्पति सादगी ही होती है | '

         मृत्यु भय से न डिगे - 

                          

   मराठा सरदार राघोबा पेशवा पर अपने भतीजे की हत्या का अभियोग था | जिस न्यायालय में उसका निर्णय होने वाला था , उसके न्यायाधीश श्रीरानशास्त्री थे | श्री सत्यनिष्ठा के लिए दूर दूर तक विख्यात थे , इसलिए राघोबा को भय था कहाँ उसे सजा न मिल जाये | 

            राघोबा की धर्मपत्नी को एक उपाय सूझा | उन्होंने श्री रामशास्त्री को भोज दिया और इस विचार से उनकी खूब आवभगत की | उससे प्रभावित होकर श्री शास्त्री उनके पक्ष में ही निर्णय देंगे | बात - बात में उन्होंने इस बात की चर्चा ही छेड़ दी तो न्यायनिष्ठ श्री रामशास्त्री ने कहा - 'न्याय की दृस्टि से तो सरदार को प्राणदंड मिलना ही चाहिए | राघोबा की पत्नी उनकी इस निर्भयता से प्रभावित तो हुई पर उन्होंने कहा - इस तरह का निर्णय देने का परिणाम जानते हैं आप , क्या होगा ? हम जिन्दा ही आपकी जीभ कटवा लेंगे और किसी गड्ढे में गढ़वा देंगे | '  बिना उत्तेजित हुए श्री शास्त्री ने उत्तर दिया- यह आप कर सकती हैं पर उससे मुझे कोई दुःख नहीं होगा गलत निर्णय देने की अपेक्षा तो जीभ क्या शिर कटवा दिया जाना ही अच्छा है |

                   अनीति , अत्याचार , अवांछनीयताओं , कुरीतिया दोषयुक्त परम्मराओं , अंधविश्वासों के विरोध के लिए आवश्यक नहीं है की शरीर बल , शास्त्र आदि का प्रयोग कारकीबीएई संघर्ष किया जाय | संघर्ष के अन्य सौम्य तरीके भी हैं | इनके कहीं अधिक प्रभावकारी सिद्ध होते हैं | विचारशील सेकेंड सौम्य तरीके का ही अधिक प्रयोग कर दुष्ट , दुर्जनों -अनीति का अवलम्बन लेने वालों को बदलने में सफल होते रहें हैं


                       सादगी और मितव्ययता के अनुकरणीय आदर्श 


                                  डॉ० राजेंद्र प्रसाद

   डॉ० राजेंद्र प्रसाद


 वे राज्यों के दौरे पर थे | बिहार राज्य के शहर राँची पहुंचने तक जूता दाँत दिखाने लगा | काफी घिस जाने के कारण कई कीलें निकल आयी थी | इसलिए राँची में जूता बदलने की व्यवस्था की गई 

                      यह तो वह फिजूलखर्ची लोग होते हैं , जो आय और औकात की परवाह किए बिना , आमदनी से भी अधिक खर्च विलासितापूर्ण सामग्रियों में करते हैं | इस तरह वे व्यवस्था सम्बन्धी कठिनाइयों और कर्ज के भार से तो दबते ही हैं शिक्षा , पौष्टिक आहार , औधोगिक एवं आर्थिक विकास से भी वंचित रह जाते हैं | मितव्ययी लोग थोड़ी सी आमदनी से ही जैसी शान की जिंदगी बिता लेते हैं , फिजूलखर्ची एवं भरी आमदनी वालों को वह सौभाग्य भला कहाँ नसीब होता है | 

                         इनके लिए तो यह बात भी नहीं थी |  आय और औकात दोनों ही बड़े आदमियों जैसे थे , पर वे कहा करते थे कि दिखावट और फिजूलखर्ची अच्छे मनुष्य का लक्षण नहीं , वह चाहे कितना ही बड़ा आदमी क्यों न हो फिजूलखर्ची करने वाला समाज का अपराधी है , क्योकि वह बढे हुए खर्च की पूर्ति अनैतिक तरीके से नहीं तो और कहाँ से करेगा ? मितव्ययी आदमी व्यवस्था और उल्लास की बेफिक्री तथा स्वाभिमान की जिंदगी बीतता है | क्या हुआ यदि साफ़ कपड़ा चार दिन पहन लिया जाए , इसके बजाय कि केवल शौक , फैशन और दिखावट के लिए दिन में चार कपडे बदले जाएँ या रोजाना धोबी का धुला साफ़ कपडा पहना जाय | 

             हर वस्तू का उपयोग तब तक करना चाहिए , जब तक उसकी उपयोगिता पूरी तरह नष्ट न हो जाये | कपडा सी - सी कर दो माह और काम दे जाए तो सिला कपडा पहनना अच्छा , बजाय इसके की नए कपडे के लिए दस रूपए बेकार खर्च किए जाएँ | 

                 इस आदर्श का उन्होंने अपने जीवन में अक्षरशः पालन भी किया | इसका प्रमाण उनके राँची वाले जूते थे ,जिनका जीवन राँची तक था | अब उन जूतों को उन हालात में बदल डालने की उन्होंने भी आवशयकता अनुभव की | उनके निजी सचिव गए और अच्छा - सा मुलायम 19 रूपये का जूता खरीद लाए | उन्होंने सोचा था , ये जूते उनके व्यक्तित्व के अनुरूप रहेंगे , पर यहाँ उल्टे डाँट मिली | 

              उन्होंने कहा - जब ग्यारह रूपये वाले जूते से काम चल सकता है तो फिर 19 रूपये व्यय करने की क्या आवश्यकता ! मेरा पैर कड़ा जूता पहनने का अभ्यस्त है , आप इसे लौटा दीजिए | 

           निजी सचिव अपने मोटर की ओर बढे की यह जूता बाजार जाकर वापस लौटा आएँ पर वह ऐसे नेता नहीं थे | आजकल के नेताओं की तरह एक की जगह चार खर्च करने , प्रजा का धन होली की तरह फूँकने की मनमानी तब नहीं थी | उनमे प्रजा के धन की रक्षा की भावना थी | राजा ही सदाचरण नहीं करेगा तो प्रजा उसका परिपालन कैसे करेगी , इसलिए जान - बूझकर उन्होंने अपने जीवन में आडंबर को स्थान नहीं दिया और हर समय इस बात का ध्यान रखा की मेरी प्रजा का एक पैसा भी व्यर्थ बर्बाद न हो | 

              उन्होंने सचिव को वापस बुलाकर कहा - दो मील जाकर और दो मील आकर जितना पेट्रोल खर्च करेंगें , बचत उससे आधी होगी तो ऐसी बचत से क्या फायदा ? सब लोग उनकी विलक्षण सादगी और काम खरची ले आगे नतमस्तक हुए | 

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