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    Wednesday, June 27, 2018

    नोबेल पुरस्कार से सम्मानित श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर- full jankari

    नोबेल पुरस्कार से सम्मानित श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर 

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    नमस्कार दोस्तों हम आज बताने जा रहे है उस महान व्यक्ति के बारे में जिनका नाम श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर है | नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर बंगाल के प्रसिद्ध कवि , उपन्यासकार , नाटककार , स्वांगकार और दार्शनिक श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था | श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर को बचपन में प्यार से रवि के नाम से पुकारे थे | इन्होने आठ वर्ष की उम्र में ही अपनी प्रथम कविता और सोलह वर्ष में कहानी व नाटक लेखन का कार्य आरम्भ कर दिया | 
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                    ' गीतांजलि ' में वैष्णव कवियों की प्रेम -भावना का अनुपम परिचय दिया गया है | साथ ही उसमे उपनिषदों के सर्वोच्च आध्यात्मिक विचारों का भी बड़ी मार्मिकता से समावेश है | कवि का यह अनूठा ग्रन्थ आध्यात्मिक गगन पर ज्ञान -सूर्य बनकर उदित हुआ है , जिसकी निर्मल ज्योति का प्रकाश समस्त विश्व का हृदय आलोकित कर रहा है | कवि लिखता है - " प्रभु की निकटता पाने के लिए बाह्य जप -तप -योग और वैराग्य की आवश्यकता नहीं , वह तो हृदय में स्पष्ट रूप से बैठा हुआ है और हम प्रत्येक क्षण उसके स्पर्श का अनुभव करके पुलकित हुआ करते है | कवि उस जीवन - देवता को संसार में सभी ओर देखना चाहता है जिससे उसका शरीर भगवद - स्पर्श योग रह सके | कवि को मृत्यु भी एक शत्रु की तरह नहीं , वरन मित्र जान पड़ती है | एक गीत में वह कहता है - " मृत्यु दयामयी जननी है | जिस प्रकार माता बच्चे के मुँह से अपना एक स्तन छुड़ा लेती है तो वह दूसरा स्तन पाने के विश्वास से आस्वस्त रहता है , उसी प्रकार मृत्यु मानव रुपी शिशु को एक रिक्त जीवन से हटाकर दूसरे परिपूर्ण जीवन में प्रविष्ट कराती है | " 
                महाकवि जहाँ कहीं गए उन्होंने भारतीय अध्यात्म  समानता तथा प्रेम का सन्देश ही दिया - " हम सब भाई भाई है | अमीर - गरीब का भेद निरर्थक है | मनुष्य मनुष्य में कोई अंतर नहीं | भाई के साथ द्वेष करना  अथवा लड़ना धर्म नहीं है | सबसे प्रेम करना ही मानवता का सार है | प्रेम व भाईचारे का व्यवहार संसार का सबसे बड़ा सत्य सिद्धांत है | "

                  सन 1913 में जब महाकवि यूरोप की यात्रा करके वापस आये तो सब कुछ ही सप्ताह में समाचार आया की इस वर्ष का नोबेल पुरुस्कार उनकी पुस्तक 'गीतांजलि ' पर देने का निश्चय किया गया है |  इस समाचार से समस्त भारत में प्रसन्नता की  लहर दौड़ गयी | यह महाकवि की विद्वता और प्रतिभा का तो आदर था ही , पर लोगो ने इसे एक राष्ट्रिय सम्मान भी समझा | महाकवि के सम्मान में उसी वर्ष लात साहब की कोठी पर एक बड़ा दरबार हुआ , उसी अवसर पर नोबेल पुरुस्कार और एक तमगा उन्होने अपने हाथ से महाकवि को प्रदान किया |
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                   रवीन्द्रनाथ केवल कवी और कलाकार ही नहीं थे वरन वे एक सच्चे कर्मयोगी भी थे जहाँ वे एक ओर शांति निकेतन में बालकों और युवको को विद्या , कला और ज्ञान की शिक्षा देते थे , वहीँ सन 1972 में ही उन्होंने शांति निकेतन से तीन मील पर बहुत - सी जमीन खरीदकर 'श्री निकेतन ' की स्थापना की | इस संस्था का उद्देश्य विद्यार्थियों को कृषि , उधोग और व्यवसाय का व्यावहारिक प्रशिक्षण देना था | अब तक यहाँ से हजारों विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करके सफलतापूर्वक देश की प्रगति में योगदान कर चुके हैं |
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