क्रन्तिकारी अशफाक उल्लाह खां एवं रामप्रसाद विस्मिल की साहसिक पहल - full information

क्रन्तिकारी अशफाक उल्लाह खां एवं रामप्रसाद विस्मिल की साहसिक पहल

                  

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन व उसे स्वतन्त्र करने में हिन्दू - मुस्लिम आदि सभी धर्मो के क्रांतिकारियों के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता | अहफाक उल्लाह खां हो या विस्मिल ता अन्य कोई क्रन्तिकारी | भारत माँ के ऐसे सच्चे वीर , साहसी , क्रन्तिकारी युवाओं को हम नमन करें उनके बलिदान के सन्देश को न भूलें यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है | 

क्रन्तिकारी अशफाक उल्लाह खां और रामप्रसाद बिस्मिल दोनों ही घनिष्ठ मित्र भी थे | दोनों को काकोरी कांड में 19 दिसम्बर 1927 को फांसी दी गयी थी | एक बार शाहजहाँपुर में एकाएक ही हिन्दू - मुस्लिम दंगे भड़क उठे | ऐसे दंगो को क्रन्तिकारी अशफाक उल्ला खां और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे देशभक्त भला कैसे सहन कर पाते !

       शाहजाहाँ दंगो के मुहाने पर खड़ा सुलग रहा था | दोनों सम्प्रदायों के लोग एक - दूसरे पर घात लगाए घूम रहे थे | यहाँ तक की दोनों पक्षों में से कुछ लोगों को दंगों के दावानल में अपने प्राणों की आहुति भी  पड़ी अंततः प्रशासन को शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा | वहां के लोगों को एक ओर तो घोर साम्प्रदायवाद से पीड़ित असामाजिक तत्वों का भय तो दूसरी ओर पुलिस की गोलियों का भय | लोगों को दोनों ओर अपनी मौत ही नाचती नजर आती थी |


       ऐसे में अशफाक उल्ला खां और रामप्रसाद बिस्मिल ने एक साहसिक कदम उठाने का निश्चय किया | अशफाक ने ठेठ मुस्लिम लिबास धारण किया ताकि दूर दूर से लोगों को नजर आ जाये की वे मुसलमान है | दूसरी ओर पंडित रामप्रसाद बिस्मिल ने खददर की धोती कुर्ता धारण किया और एक रामनामी दुपट्टा कंधे पर डाल लिया | इस प्रकार रामप्रसाद ' हिंदुत्व ' के प्रतीक बने हुए थे | दोनों मित्र अशफाक और रामप्रसाद -मुसलमान और हिंदुत्व का प्रतीक बनकर एक - दूसरे की बांह डालकर शाहजहाँ की उन सड़कों पर घूमने ,  जहाँ हिन्दू और मुसलमान एक - दूसरे के खून के प्यासे बने हुए थे और जिनके कारण वहाँ कर्फ्यू लगा हुआ था |
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    अशफाक और रामप्रसाद मिलकर सड़कों पर घूम -घूमकर नारे लगा रहे थे की अगर हिन्दू और मुसलमानों में खून की प्यास अभी भी शांत न हुई हो तो वे हमारे ऊपर चाकु - छुरे चलाकर अपनी प्यास बुझा लें | यदि पुलिस को मासूम जनता पर गोलियाँ बरसाने का जुनून है तो वह हम पर निशाने साधकर अपना शौक पूरा कर ले , किन्तु राम और रहीम के वास्ते इन दंगो को हमेशा के लिए बंद कर दें | इस मुल्क में रहने वाले हिन्दू और मुसलमान दोनों ही भारतमाता की संतान हैं | दोनों को ही प्रेम भाव से मिल - जुलकर रहना चाहिए | अशफाक और रामप्रसाद की यह बड़ी साहसिक अपील थी | उनकी इस अपील का लोगों पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा और शीघ्र ही शाहजहाँपुर के दंगो का दावानल शांत हो गया | कर्फ्यू हटा लिया गया और शहर में पहले जैसा अमन - चैन कायम हो गया |

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