महान वैज्ञानिक प्रफुल्ल चंद्र राय inke baare me poori jankari

 महान वैज्ञानिक प्रफुल्ल चंद्र राय 




भारत केवल धर्म गुरुओं की ही जन्म भूमि नहीं है बल्कि भारत भूमि ने , यहाँ की संस्कृति ने अनेक वैज्ञानिक , अर्थशास्त्र , मानवतावादी सिद्धांतो के सूत्र धार - महामानवों , देव पुरुषों को भी जन्म दिया है | हमारे वेद ज्ञान - विज्ञान के अतुलनीय भण्डार है | इसने अनेक शिक्षाविद , ज्योतिष्कार व खगोल शास्त्री भी दिए है | 

प्रफुल्ल चंद्र राय जीवनी 

 इंग्लैण्ड से रसायन विज्ञान की उच्च परीक्षा पास कर लेने के पश्चात जब प्रफुलचन्द्र राय भारत आये तो उन्हें कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर का पद मिला | उनका वेतन 250 रु मासिक था जबकि अंग्रेज शिक्षक को 1000 से भी अधिक वेतन दिया जाता था | इस अन्याय के प्रतिकार स्वरूप श्री राय ने शिक्षा विभाग के अध्यक्ष क्राप्ट साहब से शिकायत की | उत्तर मिला , आपको कोई बाध्य नहीं करता की आप इस नौकरी को स्वीकार करें | यदि आप अपनी योग्यता को इतना अधिक समझते हैं तो कहीं भी वैसा कार्य करके दिखा सकते हैं | यह भारतीयों का अपमान था | प्रफुल्ल बाबू ने उसी दिन ठान लिया की अपनी योग्यता के बल पर इसका जवाब जरूर देंगे | नौकरी के साथ साथ वे विज्ञान संबंधी नई - नई खोजें करते रहे | 1906 ई. में उन्होंने 800 रू से बंगाल कैमिकल एण्ड फार्मास्युटिकल वर्क्स नाम से कारखाना खोला | अनेकों प्रभावशाली दवाओं का आविष्कार किया और 10-12 साल में ही इतनी प्रगति हुई की कारखाने का वार्षिक आय - व्यय लाखों में पहुँच गया | अनेकों असमर्थ छात्रों को काम मिला और अनेकों को कॉलेज में अध्ययन करने के साधन प्राप्त हुए, जिनमे से कई आगे चलकर प्रसिध्द वैज्ञानिक बने |
      वे एक आदर्श शिक्षक थे | उनका निजी खर्च मात्र 40 रू मासिक था | शेष पूरी आमदनी वे होनहार गरीब छात्रों को आगे बढ़ाने , अपने वैज्ञानिक आविष्कारों और समाज सुधार ले कार्यों में लगाते रहे | किन्तु दान का अभिमान नहीं था | वे कहते थे , सर्वश्रेष्ठ दान तो सहनुभूति रखना ,  भरे शब्द कहना , प्रसन्न प्रदान करना हितकारी सम्मति देना , थके हुए को विश्राम देना है | इनकी तुलना धन दान कभी नहीं कर सकता | अपने छात्रों की वे नौकरी की अपेक्षा निजी उधोगों के लिए प्रेरित करते और समझते थे की इससे देश की उन्नति की संभावनाएँ अपेक्षाकृत बहुत अधिक होती है | किसी भी देश के निवासी अपने ही प्रयत्न और पराक्रम से ऊँचा उठते हैं | परिणाम स्वरुप बंगाली युवकों का ध्यान इस ओर कुछ वर्षों में ही रासायनिक कारखानों में काफी वृद्धि हुई |
 
        प्रफुल्लचन्द्र  भले ही विदेश में पढ़े थे और भारत के एक सुप्रसिद्ध कालेज के प्रोफ़ेसर थे, पर वे एक सच्चे संत थे | उन्होंने समाज सुधार, पीड़ितों की सेवा, स्वराज्य आंदोलन में उल्लेखनीय भूमिका निभाई | राष्ट्र सेवा और विज्ञान की साधना के लिए उन्होंने विवाह नहीं किया और सादगी भरा जीवन जिया | वे संसार के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों में गिने जाते थे , विदेशों के बड़े - बड़े वैज्ञानिक भी उनसे मिलने आते थे | उनका लिखा ग्रन्थ, " हिन्दू रसायन शास्त्र का इतिहास " भारत ही नहीं विदेशों में भी साइंस कॉलेज में पाठ्य पुस्तक की तरह प्रयुक्त होता है | 1944 ई. में 83 वर्ष की आयु में यह प्रतिभा इस संसार से विदा हो गयी |

      आज भी हमारे राष्ट्र में यह प्रतिभाओ की कमी नहीं है | कमी है तो कर्त्तव्यनिष्ठा की | इनके समय में हमारा राष्ट्र बहुत पिछड़ा हुआ था | वे चाहते तो विदेश में ही बस जाते और बढ़िया ठाट - वाट काजीवन जीते | परन्तु राष्ट्रहित के लिए कार्य करने की प्रबल इक्षा के परिणाम स्वरूप उन्होंने स्वयं कठोर जीवन जिया और राष्ट्र के गौरव कहलाये |

       जहाँ प्रत्येक विद्यार्थी को उनका जीवन अपनी प्रतिभा को राष्ट्र हिट में समर्पित करने की प्रेरणा देता है वहीँ प्रत्येक अध्यापक को भी उच्च आदर्शों की ओर प्रेरित करता है | उनका संपूर्ण जीवन विद्यार्थीयों को व्यक्तित्ववान , राष्ट्रभक्त , ,कर्तव्यनिष्ट बनाने हेतु समर्पित था आजीवन ब्रह्मचारी रहे परन्तु संतान स्वरूप ऐसे सुयोग्य शिष्य निर्मित किये जिन्होंने अपनी ,गुरुकी व राष्ट्र की कीर्ति को आगे बढ़ाया | विद्यार्थी उन्हें अपना आदर्श मानते थे |
        जब वे प्रेसिडेंसी कालेज की नौकरी यूनिवर्सिटी के साईंस कालेज में गये तब विदाई समारोह में उन्होंने कहा था की यदि कोई मुझसे पूछे की प्रेसिडेंसी कॉलेज में इतने बरस काम करके तुमने कितनी पूँजी एकत्रित की |

       विद्यार्थी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा था में कहूंगा की मेरा माल खजाना यहाँ है | यदि प्रत्येक अध्यापक उनके समान सच्चा अध्यापक बन जाये तो आज की युवा पीढ़ी मार्ग भटकने की अपेक्षा व्यक्तित्व सम्पन्न (निति निष्ठ ) राष्ट्र बनकर राष्ट्र व्यापी अनेकों समस्याओं का समाधान कर सकती है
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जाने आंसुओं के बारे में -

                    क्या आपको पता है आंसू तीन प्रकार के होते हैं -
  1. बेसल आँसू - यह आंसू हमारी आँखों में सदैव बने रहते हैं और आँखों को सूखने व संक्रमण से बचाते हैं | हमारा शरीर प्रतिदिन 5 से 10 औंस वेसल आंसुओं का उत्पादन करता है | 

2 .  रिफ्लैक्स आंसू - प्याज धुल धुएँ आदि जैसे तत्वों से जब आँखों को परेशानी होती है तो मस्तिक में विशेष प्रकार के हार्मोन तैयार होते हैं जो पलकों में पहुँच कर आंसू निर्मित करते हैं और आँखों की विजातीय तत्वों से रक्षा करते हैं | 
3. भावनात्मक आंसू - जब उदासी , दुःख या अत्यधिक प्रसन्न आदि का मन पर भावनात्मक दवाब होता है , तब इंडोक्राइन ग्लैण्ड विशेष प्रकार के हार्मोन उतपन्न करता है , जो आंसुओं के रूप में बाहर आते हैं   और मन हल्का हो जाता है | आंसू आँखों में नहीं होते , बल्कि नाक के दोनों तरफ आँखों के कोने के पास अश्रु ग्रंथियां होती है जिन्हे लेकरमल ग्लैण्ड कहते हैं , क्योंकि इनका एक सिरा नाक में भी खुलता है इसीलिए रोने पर अक्सर नाक भी बहने लगती हैं | दुःख के आंसू फ़िल्मी कलाकारों की आँखो से नाक की तरफ  से किसी की याद में , प्रेमवश या ख़ुशी के आंसू आँखों के बाहरी कोने से बहते हैं | नकली आंसू आँखों के बीच में से  बहते हैं इसीलिए ग्लसरीन के कृत्रिम आंसू फ़िल्मी कलाकारों की आँखों के बीच में से ही पटकते हैं | 
          इन सब आंसुओं  के अतिरिक्त अत्यंत कीमती आंसू वे हैं जो अनजानों के कष्ट में बहते हैं , क्योंकि ये व्यक्ति को महान बनाने की सामर्थ्य रखते हैं | जिन किन्ही की आँखों में ये आंसू आये हैं वे मदर टेरेसा फ्लोरेंस नाइटिंगेल , स्वामी विवेकानद , महात्मा गाँधी , महर्षि कर्वे , आचार्य श्रीराम शर्मा जैसे महान बन गए |

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