यह कहानी है मोहन की। मोहन एक गरीब किसान था। उसके परिवार में वह सिर्फ अकेला था और कोई भी नहीं था। क्योंकि 2 साल पहले एक हादसे में उसने अपनी पत्नी और अपने एक बेटे को खो दिया था। दरअसल 2 साल पहले गांव में एक बाढ़ आई थी और मोहन गांव से बाहर शहर में अपने मामा जी से मिलने उनके घर गया हुआ था पर गांव में अचानक बाढ़ आने से गांव के लगभग सारे घर तेज बहाव के कारण बह गए थे और कुछ लोग उस गंदे पानी में फस कर मर भी गए थे जिसमें मोहन की पत्नी और उसका एक बेटा भी शामिल था उसकी पत्नी तो बाढ़ में बह गई थी पर बेटा गंदे पानी में फस कर मर गया था। मोहन को जैसे ही यह शोक समाचार मिला वह जैसा बैठा था वैसे ही दौड़ा-दौड़ा गांव में आया और जब उसने अपना घर देखा तो वहां उसे घर के सिर्फ निशान ही मिल पाए थे। घर कच्चा होने के कारण पानी के तेज बहाव से बह गया था उसकी पत्नी लापता हो गई थी और बेटे का भी अंतिम संस्कार गांव वालों ने कर दिया था तो अब मोहन करता भी तो क्या सिर्फ रोने के सिवा और कुछ नहीं कर सकता था वह बिलक बिलक कर रोने लगा और खुद भी मरने के लिए सोचने लगा ऐसा सोचते सोचते वह एक नदी किनारे जाकर खड़ा हो गया और अपने आप को दोषी मानते हुए उसने खुदकुशी करने का फैसला लिया उसने अपने आप को दोषी इसलिए माना कि अगर वह शहर ही नहीं गया होता और गांव में होता तो शायद मैं अपनी पत्नी और बेटे की कुछ मदद कर पाता शायद आज वह जिंदा होते लेकिन मेरी वजह से वह अब इस दुनिया में नहीं है तो मैं अकेला जी कर क्या करूंगा मैं मर जाऊंगा तो दोषों से मुक्त भी हो जाऊंगा ऐसा सोचकर वह नदी में कूदने ही वाला था। पर उसको ऐसा करते देख गांव के दो लड़कों ने उसे देख लिया था जिनके नाम राजेश और महेश दोनों सगे भाई थे जिसमें राजेश बड़ा था और महेश छोटा था।
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और उनकी एक विधवा मां थी उनके पिता का देहांत हो चुका था तो अब वह दोनों ही अपनी मां और अपने खेतों को संभालते थे। दोनों भाइयों ने मोहन से ऐसे खुदकुशी करने की वजह पूछी तो। तो मोहन ने राजेश महेश को अपनी बीती कहानी बताई जिसे शंकर राजेश महेश दोनों की आंखें भर आई और उन्होंने कहा आप हमारे पिताजी की उम्र के ही है मेरी एक विधवा मां है उन्हें इस उमर में किसी एक सहारे की जरूरत है हम दोनों भाई तो अपने खेतों में ही व्यस्त रहते हैं तो ज्यादा वक्त मां को नहीं दे पाते अगर आप बुरा ना माने तो आप हमारी मां से शादी कर लीजिए।
ऐसा सुनकर मोहन तो आश्चर्य से भर गया और उसने कहा तुम ऐसा कैसे कह सकते हो तुम मुझे जानते नहीं हो मुझ पर विश्वास नहीं कर पाओगे। और क्या पता मैं तुम्हारी मां से शादी करने के बाद में अपनी बातों से भी मुकर जाऊं अभी क्या दूं कि मैं तुम्हारा तुम्हारे पिताजी का ख्याल रख लूंगा फिर बाद में कुछ और ही बर्ताव करूं। रमेश ने कहा आप क्या हमारे साथ बुरा बर्ताव करेंगे किस्मत में तो खुद आपके साथ इतना बुरा बर्ताव किया है। अब हम आपकी नहीं सुनेंगे हम आपको मां के पास लेकर जाएंगे और दोनों की बात सुनेंगे। अगर मां राजी हो जाती है तो पंचायत के सामने आप दोनों की एक शादी हो जाएगी फिर आप दोनों पति-पत्नी और हमारे माता पिता बन जाएंगे। ऐसा कहकर रमेश महेश मोहन को अपने घर ले गए और अपनी मां से सारी बात कही। मां ने जब यह सब बात सुनी तो उसे बहुत हैरानी हुई पर वह अपने बेटों की मन की बात भी जान गई थी कि उन्हें सिर्फ पिताजी चाहिए और कुछ नहीं।
पर वह समाज के बारे में सोच कर डर गई कि समाज क्या कहेगा इस उम्र में मैंने दूसरी शादी कर ली कैसी कैसी बातें करेंगे लोग तो उसमें अपने बेटों से मना कर दी कि मैं यह शादी कभी नहीं करूंगी। बेटा रमेश बहुत समझदार था तो वह अपनी मां मन की बात समझ गया कि वह समाज के डर से शादी के लिए मना कर रही है तब रमेश ने कहा मां तुम किस समाज से डर रही हो जब तुम अकेली पड़ी रहती हो तो समाज के लोग तुम्हारी सेवा करने नहीं आते तुम्हारा हाल पूछने नहीं आते तुम्हें किसी सहारे की जरूरत है तुम समाज से मत डरो समाज से हम बात करेंगे तुम बस शादी के लिए राजी हो जाओ हमारे बारे में भी तो सोचा हमें एक पिताजी भी चाहिए। बेटों के बार बार कहने पर रमेश महेश की मां जिसका नाम कांता था वह राजी हो गई।
फिर पंचायत के सामने रमेश महेश ने उन दोनों की शादी करवा दी। अब मोहन रमेश महेश के असली पिता जी बन चुके थे तो मोहन ने अपनी जिम्मेदारियां भी निभाना शुरू कर दिया था। मोहन ने सबसे पहले अपनी पत्नी कांता का अच्छे से ख्याल रखना शुरू कर दिया क्योंकि वह जानते थे कि जब तक रमेश महेश की मां कांता अच्छे से स्वस्थ नहीं हो जाएगी जब तक रमेश महेश भी चिंता मुक्त नहीं होंगे। मोहन ने इतनी अच्छे से कांता की सेवा की कांता का ध्यान रखा कि कांता कुछ ही महीनों में बिल्कुल स्वस्थ हो गई। यह सब देख कर रमेश महेश बहुत खुश रहने लगे। और उनके मन में बैठा डर भी निकल गया। क्योंकि उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति को अपने पिता के रूप में चुन लिया था जिससे वह कभी मिले ही नहीं थे इसलिए वह डरते थे कि कहीं यह इंसान कुछ गलत बर्ताव ना कर दे पर समय के साथ सब कुछ ठीक हो गया।
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अब मोहन की पत्नी कांता जब स्वस्थ हो गई तो मोहन ने खेतों की तरफ रुख करा और खेतों की जिम्मेदारियों में अपने बेटों के काम में मदद करने लगा। मोहन ने किसानी पहले कभी ज्यादा करी नहीं थी तो उसे खेती किसानी के बारे में ज्यादा कुछ पता भी नहीं था लेकिन रमेश महेश को खेती किसानी के बारे में सब कुछ पता था तो जैसा रमेश महेश कहा करते थे सिखाया करते थे मोहन बिल्कुल वैसा ही करता था। अब मोहन और राजेश महेश सब मिलकर खेती करते थे तो खेती की फसल में मुनाफा अच्छा हो रहा था लेकिन पैसा जितना होता है उतना कम ही लगता है इसी सोच से रमेश महेश के मन में लालच आ गया।
और उन्होंने सोचा कि हम पहले फसलों को और दाम बढ़ा कर भेज देंगे अगर ऐसा हो गया तो ठीक है नहीं तो हमें फसलों में मिलावट करनी ही पड़ेगी। लेकिन मोहन को उनकी सोच के बारे में बिल्कुल खबर ही नहीं थी पहले रमेश महेश ने मिलकर फसलों को महंगे दामों में भेजना चाहा पर यह सफल नहीं हो पाया तो मजबूरन रमेश महेश ने सोचा कि अब हमें दूसरा कदम उठाना ही पड़ेगा मतलब की फसल के अंदर अब हमें मिलावट करनी ही होगी। गेहूं में और कूड़ा मिलाना शुरू कर दिया जैसे कंकड़ पत्थर भूसा आदि यह सब तो गेहूं में निकलता है लेकिन उन्होंने और ज्यादा मिलाना शुरू कर दिया चावलों में धान और कंकड़ पत्थर ही ज्यादा मिलानी शुरू कर दी।जिससे अनाज का वजन बढ़ सके और वह अच्छा मुनाफा कमा पाएं। अब जब उन्होंने ऐसा करना शुरू कर दिया तो उन्हें फसल बेचकर पहले से ज्यादा मुनाफा होने लगा था पर मोहन को धीरे-धीरे उन पर शक होने लगा कि फसल कम होती है तब भी अच्छे पैसे क्यों मिल जाते हैं फसल के वजन कम होने पर तो पैसे कम होने ही चाहिए पर इसके बचाए अच्छे पैसे क्यों मिल जाते हैं।
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जरूर मेरे बेटे किसी गलत रास्ते पर चल रहे हैं। और मुझे उन्हें इस गलत रास्ते पर और आगे बढ़ने से रोकना होगा वरना हमारी फसल कोई नहीं लेगा और अगर हम फिर वापस ईमानदारी के रास्ते पर आ भी जाए तब भी लोगों का हम पर से विश्वास तो उठी जाएगा नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगा इज्जत जाएगी वह अलग नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं होने दूंगा मैं बेटों को गलत रास्ते में आगे बढ़ने से रोक लूंगा इसके लिए मुझे चाहे कुछ भी करना पड़े। अब मोहन ने राजेश महेश पर नजर रखनी शुरू कर दी। जब राजेश महेश अनाज बेचने के लिए ले जाया करते थे तब मोहन किसी ना किसी बहाने से उन्हें कुछ देर के लिए अनाज से दूर कर दिया करता था और खुद अनाज को देखता था धीरे-धीरे करके उसे सब पता चल गया तब उसने एक दिन दोनों भाइयों को रंगे हाथ फसल के अनाज में मिलावट करते हुए पकड़ लिया। अब दोनों भाई डर गए कि अब क्या होगा अब तो हमारी सारी पोल खुल गई है।
पिताजी भी बहुत गुस्से में लगते हैं कहीं गुस्से में कुछ गलत ना कर बैठे हमें माफी मांग लेनी चाहिए। वह दोनों भाई आपस में ऐसा कहकर मोहन के पास जाकर खड़े हुए और कहने लगे पिताजी हमें माफ कर दीजिए हम आगे से ऐसा नहीं करेंगे हम गलत रास्ते पर नहीं चलेंगे हमने पैसों के लालच में ऐसा कर दिया पर अब नहीं होगा। अब हम ईमानदारी से मेहनत करके ही पैसे कमाएंगे मोहन ने उनकी बातें सुनी और कहा। बेटा तुम यह समझ गए कि इतने दिनों तक जिस रास्ते पर चलकर तुम धन कमा रहे थे वह रास्ता ही गलत है। तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है मेरे लिए। पर जिस धन को कमाने के लिए तुमने इतना गलत रास्ता चुना।
अगर मैं कहूं वह धन वास्तविक धन है ही नहीं तो तुम्हें कैसा लगेगा। यह सुनकर रमेश महेश बिल्कुल चुप रहे और कहा पिताजी हम बस यही कहना चाहेंगे अगर यह वास्तविक धन नहीं है तो वास्तविक धन क्या है। मोहन ने कहा वही वास्तविक धन है जिसको तुमने इस धन को कमाने के लिए लुटा दिया था छोड़ दिया था भूल गए थे। रमेश महेश कुछ समझ नहीं पा रहे थे तो उन्होंने कहा पिताजी हम कुछ समझ नहीं पा रहे प्लीज आप साफ-साफ समझाओ। तो मोहन ने कहा जब तुम्हें यही नहीं पता कि वास्तविक धन है क्या तो तुम जीवन में क्या कर सकते हो। रमेश महेश चुप रहे फिर मोहन ने कहा वास्तविक धन होता है ईमानदारी इमानदारी सच्चे रास्ते पर चलकर ही हासिल की जाती है ऐसे बुराई के रास्ते पर चलकर नहीं।
अगर तुम सच्चे रास्ते पर चलकर इमानदारी मतलब वास्तविक धन कमाओगे तो तुम्हें लोग इज्जत की नजरों से देखेंगे जिससे तुम्हारा वास्तविक धन और दोगुना हो जाएगा जब तुम्हें इज्जत मिलेगी तो तुम्हें धन कमाने के लिए कोई भी बुरा काम करने की जरूरत नहीं है तुम चीज जगह बैठोगे जिस जगह काम करोगे जिस जगह जाओगे सब जगह से धन ही धन आएगा। रमेश महेश ने कहा पिताजी हम समझ गए कि आप क्या कह रहे हैं फिर मोहन ने कहा मेरी बात अभी खत्म नहीं हुई है। यह जो शिक्षा मैंने तुम्हें दी है इसे अनोखा धन कहते हैं बेटा धन कई प्रकार के होते हैं बस फर्क इतना है की कोई इसका ज्ञान रखता है किसी को इसका ज्ञान ही नहीं होता। रमेश महेश ने कहा पिताजी यह बात तो हमारे असली पिता जी ने भी हमें नहीं सिखाई थी तो आप तो हमारे सौतेले पिता जी हैं पर है तो पिताजी ही। हम आपको वचन देते हैं कि हम आज के बाद में धन कमाने के लिए हमेशा अच्छे रास्ते पर चलकर इमानदारी से ही धन कमाएंगे जिससे हमारी इज्जत और आप दोनों पिताजी का नाम भी रोशन हो सके। और हमारी मां गर्व से सर उठा कर जीवन जी सकें।
मोहन ने कहा ठीक है मेरे बच्चों जो मैं तुम्हें सिखाना चाहता था वह तुमने सीख लिया है तो अब मैं बहुत खुश हूं। इस वाक्य के बाद रमेश महेश मोहन को लेकर अपनी मां कांता के पास चले गए और अपने पारिवारिक जीवन में व्यस्त हो गए और एक दूसरे के साथ खुशी-खुशी रहने लगे। तो यह थी कहानी सौतेले बाप के अपने बेटों को अनोखा धन देने की। धन्यवाद।
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