लॉकडाउन में गरीब अपना पेट कैसे भरें।
यह कहानी है रामदास की रामदास एक गरीब व्यक्ति था वह अपने परिवार के साथ यह गांव में रहता था उसके परिवार में दो लड़कियां और एक लड़का था और उसकी एक बीमार पत्नी थी। रामदास बहुत ही मेहनती था उसका कोई रोज का कारोबार नहीं था कोई काम नहीं था वह रोज कमाता और रोज खाता था जो काम मिल जाता उसको ही कर लेता था क्योंकि वह ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था तो इसलिए उसे कोई ज्यादा अच्छी नौकरी भी नहीं मिली थी। पर वह अपनी इस जीवनशैली से बहुत ही खुश था वह रोज मेहनत और ईमानदारी की कमाता था और मेहनत और ईमानदारी की ही खाता था और हमेशा खुश रहता था उसकी पत्नी कहने को तो बीमार थी लेकिन अपने पति के साथ पूरे साहस के साथ काम किया करती थी जरा भी महसूस नहीं होने देती थी कि वह बीमार है उसकी दोनों बेटियां बहुत ही प्यारी और मासूम की एक 3 साल की थी और एक 4 साल की 5 साल का एक बड़ा बेटा था। वह इतने करीब थे कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे पाए थे लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को अच्छे संस्कार जरूर दिए थे क्योंकि उनका मानना था ज्ञान से बढ़कर संस्कार होते हैं जिससे तीनों बच्चे संस्कारों की इज्जत करेंगे ज्ञान अपने आप ही मिल जाएगा।
इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को संस्कार देखकर ही बड़ा करने का फैसला किया था। 1 दिन और रामदास रोज की तरह आप सुनने बच्चों के लिए कमाने के लिए घर से बाहर निकला तो वह हैरान रह गया सड़क पर एक बच्चा भी नहीं था बिल्कुल सुनसान सड़क थी तो वह घबरा गया कि आज शहर को क्या हो गया है सब लोग कहां गए उसने बहुत यहां वहां देगा बहुत दूर-दूर तक गया लेकिन उसे कुछ भी नहीं मिला। सब दुकानें बंद थी कोई भी दुकान खुली हुई नहीं थी सड़क पर कोई भी नहीं था सिर्फ जगह-जगह पुलिस वाले ही खड़े हुए थे। रामदास ने कहा मैं तो कुछ नहीं जानता पर पुलिस तो सब कुछ जानती होगी मैं जरूर उनसे ही जाकर जानकारी लेता हूं पुलिस के पास रामदास पहुंचा और कहने लगा कि आज शहर के लोग कहां चले गए सब कुछ बंद क्यों है इस पर पुलिस ने कहा क्या तुम कुछ भी नहीं जानते शहर में आज से लॉकडाउन लगा है पुलिस ही पुलिस दिखाई देगी अब इंसान नहीं दिखाई देंगे कुछ दिनों के लिए सरकार ने शहर में लॉकडाउन कर दिया है ताकि लोग कोरोनावायरस से बचे रहें और सुरक्षित जीवित रहे।
रामदास ने कहा साहब यह कोरोना वायरस क्या है मैं तो इसके बारे में पहली बार सुन रहा हूं पुलिस वालों ने बहुत हैरानी से कहा इतने दिन हो गए हैं कोरोनावायरस को भारत में आए हुए और तुम्हें इस बारे में कुछ भी पता नहीं है तुम कहां से हो रामदास ने कहा साहब मैं शहर से नहीं हूं मैं गांव से हूं इसलिए मुझे कुछ मालूम नहीं है मैं रोज कमाता हूं और रोज ही खाता हूं कमाने में व्यस्त रहता हूं तो इन सब खबरों तक नहीं पहुंच पाता कृपया आप मुझे बताएं यह सब क्या हो रहा है। तब पुलिस ने रामदास को बताया कि कुछ महीनों पहले भारत में कोरोना वायरस की महामारी आई थी धीरे-धीरे करके वह महामारी सब लोगों में फैलती जा रही है अब वह महामारी और ज्यादा ना पहले इसीलिए सरकार ने लॉकडाउन लगा दिया है मतलब कि कोई भी अपने घर से बाहर नहीं निकलेगा कमाने के लिए भी नहीं। बस अपने घर में ही रहेंगे और नियमों का पालन करेंगे तभी सुरक्षित तो जीवित रह सकेंगे। और फिर पुलिस ने रामदास से कहा कि तुम भी अपने घर चले जाओ वरना मजबूरन हमें तुम्हें भी शक्ति दिखानी होगी क्योंकि तुम अभी नियमों का पालन नहीं कर रहे हो। ऐसा सुनकर रामदास ने कहा।
कि भगवान हमारी कैसी परीक्षा ले रहा है मैं तो घर से कमाने के लिए निकला था घर में अन्न का एक दाना भी नहीं है तीन बच्चे और एक मेरी पत्नी चारों मेरे इंतजार में भूखे बैठे हैं कि पिताजी कुछ खाने को लेकर आएंगे और उसे खाकर हम अपनी भूख मिटाएंगे हमें मुश्किल से दिन में एक ही समय खाने को मिलता है दिन भर मेहनत करते हैं तो रात को खाने के लिए कुछ अन्न जुटा पाते हैं अब अगर ऐसा समय आया है तो निश्चित ही हमें अब भूखे ही मरना पड़ेगा करोना से पहले हम भूखे ही मर जाएंगे। तुम रामदास के मुंह से ऐसे शब्द सुनकर पुलिस की आंखों में भी आंसू आ गए क्योंकि वह उसके हालत को देखकर समझ गए थे जैसे उसने कपड़े पहन रखे थे वह बहुत पुराने फटे हुए और गंदे थे उसकी आंखों में सच्चाई के आंसू और चेहरे पर लाचारी साफ दिख रही थी तो पुलिस ने कहा देखो अब हम इसमें क्या कर सकते हैं सरकार ने तुम्हारी भलाई के लिए ही ऐसा करा है अब अगर तुम रोज के खाने काम आने वाले हो तो अब दुकानें वगैरा और सब कुछ बंद है तो तुम अब कैसे कम आओगे तुम ऐसा करो मैं तुम्हें कुछ पैसे और कुछ राशन दे देता हूं कुछ दिन तुम इनसे काट लेना।
पैसे तुम्हारे काम में आएंगे तभी राशन खत्म हो जाए तो पैसे लेकर राशन की दुकान पर जा कर राशन खरीद लाना राष्ट्रीय की दुकान है तो खुलेंगे पर सिर्फ सुबह 2 घंटे के लिए तुम उस समय जा कर राशन ले आना। सब रामदास ने पुलिस वालों को खूब सच्चे दिल से दुआएं दी और अपनी आंखों में एक आशा भरे हुए अपने घर लौट गया और जाकर पत्नी और बच्चों से बोला देखो आज काम तो नहीं मिला कहते हैं कि कोई कोरोना महामारी आई है जो लोगों के लिए बहुत खतरनाक है उससे लोगों को बचाने के लिए ही सरकार ने यह लॉकडाउन की पाबंदी करी है जिसका मतलब कोई घर से बाहर नहीं निकलेगा कमाने के लिए भी नहीं लेकिन हमारे कुछ दिन तो गुजर जाएंगे पुलिस वालों ने मुझ पर दया करी और मुझे राशन और कुछ पैसे दे दिए। जिससे हमारे कुछ दिन तो गुजर जाएंगे फिर कुछ दिनों बाद देखते हैं क्या करना है धीरे-धीरे दिन बीते गए और रामदास के घर में जो राशन था वो खत्म हो गया फिर रामदास ने पैसों से राशन खरीदा और अपने बच्चों की भूख मिटाई लेकिन पैसे भी कुछ ही दिन चले पर लॉक डाउन का समय तो दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा था।
रामदास ने कहा अब मैं क्या करूं। कैसे इन बच्चों का पेट भरूं कैसे अपनी पत्नी का पेट भरो मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। फिर रामदास किसी सोच में घर से निकल गया और रास्तों पर भटकने लगा फिर उसके कानों में एक आवाज सुनाई दी जो उन लोगों की थी जो गरीबों को मुफ्त में ही राशन देते हैं पर उसके लिए बहुत इंतजार करना पड़ता है रामदास ने जब यह आवाज सुनी तो उसे बहुत खुशी हुई और वह आवाज की ओर दौड़ पड़ा लेकिन वहां जाकर उसने देखा कि वहां बहुत ही लंबी कतार है लोग एक दूसरे से बहुत ही दूरी पर खड़े हुए हैं चुपचाप रामदास जी वही खड़ा हो गया सुबह से शाम हो गई पर रामदास का नंबर नहीं आने वाला था अभी भी 10-15 लोग बचे हुए थे 10-15 लोगों के बाद तब जाकर रामदास का नंबर आया पर उसने जब बताया कि मेरे घर पर मेरे तीन बच्चे और एक पत्नी भी है जो भूखे हैं तो रामदास को पर्याप्त राशन मिल गया।
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जिससे वह अपने बच्चों और अपनी पत्नी की भूख मिटा सके लेकिन रोज-रोज वह उनकी कैसे भूख मिटाने का। वह उसे भी पता नहीं था। रामदास सुबह से भूखे प्यासे लाइन में खड़े खड़े इतना थक गया था क्या वह कुछ सोच नहीं पा रहा था कुछ समझ नहीं पा रहा था मैं चुपचाप अपने घर में राशन लेकर चला गया और घर जाकर देखा तो पत्नी और बच्चे सो गए थे उन्होंने सब को उठाया और सब को खाना खिला कर सबका पेट भरा दिया और खुद ने भी खा लिया पर कल का दिन कैसे गुजरेगा बस यही सवाल उसके दिमाग में घूमे जा रहा था। रात बीत गई अगला दिन भी आ गया रामदास फिर घर से बिना किसी आशा के निकल गया। अब रामदास उन गलियों में जाने लगा जहां शादी ब्याह होते थे उसने सोचा यह महीना तो ऐसा है जिसमें शादी-ब्याह होते हैं शायद मेरी किस्मत से कोई शादी हो रही हो और मुझे वहां से मजदूरी करके कुछ राशन मिल जाए तो बहुत अच्छा होगा लेकिन उस दिन उससे ऐसा कुछ भी नहीं दिखा तो वह निराश होकर अपने घर लौट आया और पानी पिलाकर ही बच्चों और पत्नी को सुला दिया और खुद भी सो गया।
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लॉकडाउन में गरीब अपना पेट कैसे भरें
फिर अगले दिन दुबारा रामदास वही गलियों में गया तो उसे एक जगह शादी होती हुई देखी तो वह वहां चला गया और मेहनत करके उसने एक बर्तन धोने का काम ले लिया और दिन भर झूठन साफ करता रहा तब जाकर उससे रात को कुछ खाना मिला जिससे वह अपने बच्चों को खिलाकर उनकी भूख मिटा सके। दिन बीत गए रामदास रोज बिना किसी आशा के घर से निकल जाता कभी बच्चों के लिए खाना मिल जाता तो कभी कुछ भी नहीं मिल पाता जैसे तैसे दिन गुजर गए और लोग डर खत्म हुआ तो रामदास के चेहरे पर फिर से खुशी की लहर दौड़ आएगी अब भीख मांगने के दिन गए और अब मेहनत करके खाने के दिन आ गए तब से दोबारा रामदास रोज कोई ना कोई काम ढूंढ लेता और काम करके जो पैसे मिलते उनसे बच्चों के लिए खुशी-खुशी राशन ले जाता और बस भगवान से यही दुआ करता कि भगवान ऐसे दिन जिंदगी में दोबारा कभी नहीं दिखाना जैसे दिन हमने बिताए हैं।
तो यह थी कहानी गरीब रामदास की जिसने लॉकडाउन में ऐसे ऐसे दिन बिताए हैं कि कभी भूखा रहना पड़ा तो कभी खाने को मिल गया पर यह सब इतना आसान नहीं था खाने को मिल जाता तो उससे पहले उसे जो करना पड़ता था वह आसान नहीं था। मगर रामदास ने कभी हार नहीं मानी रोज घर से निकल ही जाया करता था कि कुछ ना कुछ तो मिल ही जाएगा ऐसे ही हमें जिंदगी में कभी भी बुरे वक्त से हार नहीं माननी चाहिए और बुरे वक्त से डटकर लड़ना चाहिए जिससे बुरा वक्त बीते तो उससे कुछ सीख भी मिल जाए। धन्यवाद।
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