रहस्यमयी हवेली का राज: करण की डायरी से जुड़ा रहस्य


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करण ने मोहन से पूछा कि क्या तुम किसी पुरानी हवेली के बारे में जानते हो? पर मोहन ने कोई भी जवाब नहीं दिया। करण ने फिर पूछा मैं कुछ पूछ रहा हूं क्या तुम किसी हवेली के बारे में जानते हो? मोहन ने फिर सोचा कि अगर मैं इसकी बात का जवाब दे दिया तो मैं यह नहीं पूछ पाऊंगा इससे की उसे इस हवेली के बारे में पता कैसे चला क्योंकि वह एक ऐसा राज है जो सिर्फ मुझे पता है और अब यह राज इसे कैसे पता चला। करण के बार-बार एक ही सवाल पूछने पर मोहन ने करण से बस इतना ही कहा कि पहले यह बताओ जिस हवेली के बारे में तुम बात कर रहे हो उसके बारे में तुम्हें पता कैसे चला क्योंकि उसे हवेली के बारे में तो सिर्फ मैं जानता हूं या तुम्हारे परिवार वाले जानते हैं और तुम्हारे परिवार वालों ने तुम्हें आज तक उस हवेली के बारे में बताया नहीं तो तुम्हें पता कैसे चला। 

यह सुनकर करण हकलाने लगा और बोला तो तूझे इससे क्या मतलब मुझे कहीं से भी पता चला हो। मोहन बोला अगर मुझे तुम्हारी बात से कोई मतलब ही नहीं है तो तुम मुझसे सवाल पूछ भी क्यों रहे हो अब कारण ने सोचा अगर मुझे इस हवेली के बारे में जानना है तो मुझे बताना ही पड़ेगा कि मुझे हवेली के बारे में पता कैसे चला तब करण हकलाते हुए कहा कि मुझे तुम्हारे घर से वह डायरी मिल गई है जिस पर उसे हवेली के कई राज लिखे हुए हैं मोहन बोला वह डायरी तुम्हारे हाथ कैसे लगी वह तो मैं बहुत छुपा कर और संभाल कर रखी हुई थी करण बोला सही समय आने पर छुपी हुई चीज अपने आप ही मिल जाती है शायद उस डायरी का भी सही समय आ गया है इसलिए शायद वह मेरे हाथ में आ गई है इतना सुनकर मोहन बोला वह डायरी खुद चलकर तो तुम्हारे हाथों में नहीं आई होगी जरूर तुमने मेरे घर में उसे ढूंढने की कोशिश करी होगी और तुम्हारी कोशिश कामयाबी हो गई वह डायरी तुम्हें मिल गई लेकिन तुम उसे डायरी को अभी मत पढ़ना भले ही तुम उसको अपने पास रख लो क्योंकि उसमें जो बातें हैं उन बातों को पढ़कर तुम्हारा दिल अभी शायद कहां पर जाए अभी उन बातों को तुम बर्दाश्त नहीं कर पाओगे इतना सुनकर कारण की जिज्ञासा और बढ़ गई उसे डायरी के बारे में।

करण ने मोहन से तो ठीक है कहकर सर हिला दिया लेकिन कारण के दिमाग में अब कई सवाल घूम रहे थे

करण का पहला सवाल तो यह था कि आखिर यह इंसान है कौन मैं तो इसे जानता भी नहीं और इसे मेरे परिवार वालों के इस खास हवेली वाले राज के बारे में भी पता है जिसका अभी तक मुझे ही पता नहीं था दूसरी बात अगर इसने डायरी छुपी थी और मुझे मिल गई तो उसे डायरी को इसने मुझसे छीना क्यों नहीं मुझे पढ़ने के लिए ही मना किया है बाकी मुझे डायरी तो नहीं ली है और उसे डायरी में ऐसा क्या है जो यह मुझे अभी पढ़ने के लिए मना कर रहा है अब मैं नहीं रख सकता अब मैं उसे डायरी के बारे में जानकर ही रहूंगा उस डायरी को पढ़कर ही रहूंगा तभी मुझे मेरे सारे सवालों का जवाब मिल पाएगा अब करण को सिर्फ उसे मौके की तलाश थी जब वह उस डायरी के साथ अकेला होता कि उसे वह उसे पढ़ सके कुछ दिन तक तो करण ऐसा रहा कि जैसे उसे डायरी के बारे में कुछ पता ही ना हो फिर एक दिन मोहन को करण के घर जाना पड़ा और मुश्किल यह थी कि वह करण को अपने साथ नहीं लेकर जा सकता था लेकिन एक तरफ मोहन को करण के बर्ताव से ऐसा लगा कि अब करण इस डायरी को पढ़ने की जल्दबाजी नहीं करेगा इसलिए मोहन थोड़ा नीसफिक्री हो  गया और करण के घर जाने की तैयारी में लग गया और जैसे ही मोहन करण के घर गया अब करण अकेला था और उसने सोचा इससे अच्छा मौका उसे फिर कभी नहीं मिलेगा इस डायरी को पढ़ने का जैसे ही करण ने वह डायरी निकाली और खोली सबसे पहले उसे डायरी में उसके ही माता-पिता की तस्वीर थोड़े से भयानक रूप में बनी हुई थी जिसमें वह एक-एक मोमबत्ती को हाथ में लेकर किसी कमरे की तरफ जाते हुए दिख रहे थे करण कोई यह सब देखकर बहुत धक्का लगा दूसरे पेपर में उसने देखा कि  करण जब 1 साल का था तब मोहन उसे गोदी में लेकर सुनसान सड़क की और दौड़ा जा रहा है उसे डायरी में जो भी कुछ चित्र था उसके बारे में नीचे लाइन लिखी हुई थी जिसे पढ़ पढ़ कर ही करण को उस चित्र में क्या-क्या हो रहा है उसकी पहचान हो रही थी

फिर कारण ने डायरी में उसे पेज को ढूंढना शुरू कर दिया जहां पर उसे हवेली का पता लिखा हो लेकिन उसकी पूरी डायरी में कहीं पर भी उसे हवेली का पता नहीं मिला वह समझ गया था कि मोहन ने यह डायरी तो करण को दे दी लेकिन इस हवेली का पता अभी तक उसे नहीं मिला है।

अब कारण का दिमाग इस डायरी को पढ़ने से मना कर रहा था क्योंकि उसने जिस तरह के चित्र डायरी में देखे थे वह उसके लिए सहनीय नहीं थे वह अब मोहन की बात को समझ रहा था कि मोहन ऐसा क्यों कह रहा था कि इस डायरी को अभी मत पढ़ना अब करण ने सोचा कि वह कैसे भी करके इस हवेली का पता जानकर ही रहेगा और 20 साल का होने से पहले पहले उसे हवेली तक पहुंच ही जाएगा रात भर करण सोचता ही रहा उधर मोहन करण के घर से निकलने की सोच रहा था लेकिन बहुत ही तेज बारिश और तूफान थी जिसके कारण मोहन बाहर नहीं जा पा रहा था तो अपने घर तक कैसे पहुंचता उधर कारण के मां-बाप का रो-रो कर बुरा हाल था उन्हें पता ही नहीं था कि उनका बेटा अचानक कहां गायब हो गया वह यह नहीं जानते थे कि उनका बेटा मोहन के पास सुरक्षित है रात भर के बाद करण ने योजना बनाई के क्यों ना वह चोरी छुपकर अपने घर जाए और उस हवेली के बारे में सब कुछ पता करें और उस हवेली का पता भी ढूंढे एक जोरदार तूफानी रात खत्म होने के बाद अब सुनहरा दिन उगाया था और मोहन अपने घर आने के लिए तैयार हो रहा था दरअसल मोहन के माता-पिता ने मोहन को करण को ढूंढने के लिए ही बुलवाया था पर कारण यह सुनकर निश्चित था क्योंकि करण तो उसी के पास था तो भला वह कारण को क्यों ढूंढता लेकिन राज की बात यह है कि मोहन ने कारण को इस तरह चोरी छुपे अगवा क्यों किया वह क्या मनमानी करवाना चाहता था कारण से उधर कारण मोहन के घर पहुंचने से पहले पहले वहां से निकलकर अपने घर जाना चाहता था इसलिए कारण जैसे तैसे तैयार होकर अपना मुंह वगैरा छुप करके अपने घर की और निकल पड़ा उसे अपने घर के बारे में सब कुछ पता था क्योंकि वह 15 साल का समझदार लड़का था मोहन जैसे ही अपने घर पहुंचा वहां करण को ना पाकर वह बहुत परेशान हुआ और करण को आवाज देने लगा पर करण तो वहां था ही नहीं वह तो अपने घर के रास्ते पर निकल चुका था अब मोहन बहुत परेशान हुआ है क्योंकि अब सच में ही उसे करण को ढूंढने के लिए जाना था

उधर शाम तक कारण अपने घर पहुंच गया था और घर के पीछे की तरफ की खिड़की में से अंदर के हालात जानने की कोशिश कर रहा था तो उसने देखा कि वही उसके माता-पिता बैठकर एक दूसरे से बातें कर रहे थे वह कह रहे थे कि कारण भले ही हमारी खुद की औलाद ना हो लेकिन हमने उसे हमेशा अपनी औलाद की तरह ही रखा है लेकिन पता नहीं आप अचानक वह कहां गायब हो गया हमारे तो कोई और संतान भी नहीं है जिसके सहारे हम अपनी जिंदगी गुजार सके यह सब सुनकर कारण को बहुत गहरा धक्का लगा अब वह बहुत सोच में पड़ गया कि यह मेरी जिंदगी में क्या हो रहा है मैं इनकी भी औलाद नहीं हूं मोहन ने मुझे अगवा किया है मैं उसके पास सुरक्षित ही हूं लेकिन मेरे असली माता-पिता कौन है यह मुझे ही नहीं पता है अब तो इस घर में छुपा कर रहकर अपने बारे में भी सब कुछ पता लगाना पड़ेगा दिनों दिन कारण की मुश्किलें बढ़ती जा रही थी और करण के सवाल भी बढ़ते ही जा रहे थे उधर मोहन करण को ढूंढ ढूंढ कर परेशान हो गया था लेकिन कारण उसे नहीं मिल पा रहा था मोहन के पास करण की कोई तस्वीर भी नहीं थी जैसे तैसे करके उसने अपने हाथों से ही कारण का चित्र बनाया था लेकिन वह भी ठीक-ठाक ही बना था बस उसी को हाथ में लिए वह आसपास के इलाके में कारण के बारे में पूछ रहा था लेकिन सबका एक ही जवाब था हमने इसे कहीं नहीं देखा यह सुन सुनकर मोहन अब थक चुका थाफिर करने सोचा कि अब अपने घर जाकर शांति में सोचकर पता लगाता हूं कि कारण आखिर जा कहां सकता है उसने ऐसा ही किया वह घर आया और नहा धोकर एकांत में जाकर बैठ गया और सोचने लगा कारण की जिंदगी के बारे में कि वह अपने रिश्तेदारों के बारे में ज्यादा तो कुछ नहीं जानता है जानता है तो सिर्फ अपने घर का पता कहीं ऐसा तो नहीं के कारण अपने घर ही चला गया हो अब मोहन ने यही सच समझ और दोबारा करण के घर जाने की तैयारी में लग गया जब मोहन करण के घर पहुंच गया तो वह देखता है कि करण किसी चोर की तरह अपने ही घर में घूम रहा है यह देखकर मोहन को बहुत अजीब लगा मोहन सोचने लगा कि कारण इसी घर की औलाद है लेकिन यह इस तरह मुंह छुपाए क्यों घूम रहा है और उधर उसके माता-पिता रो-रोकर परेशान हो रहे हैं कि हमारा बेटा अब तक घर ही नहीं आया है ना ही पुलिस उसका कुछ पता लगा पा रही है यह सब हो क्या रहा है फिर मोहन को लगा के कहीं कारण को कोई सच तो नहीं पता पड़ गया करण के वह असली माता-पिता नहीं थे मोहन को इस बात का पता था मोहन को लगा कि कहीं कारण को इस बात का पता तो नहीं चल गया लेकिन फिर मोहन सोचने लगा कि मैं तो इस बारे में करण को कुछ भी नहीं बताया फिर इसे पता कैसे चलेगा फिर मोहन को लगा कि शायद करने वह डायरी देख ली है और शायद उसी के ही रहस्य सुलझाने के लिए वह यहां तक आया है लेकिन यहां वह आया ही क्यों है डायरी तो उसी के ही पास है जिसमें हवेली के सारे राज हैं गहरी सोच के बाद मोहन को पता चला कि शायद वह हवेली का पता ढूंढने के लिए आया है क्योंकि उसे डायरी में सिर्फ हवेली का पता ही नहीं है बाकी एक-एक बात उस डायरी में लिखी हुई है फिर मोहन भी चुपचाप करण के घर में घुस जाता है और करण को चुपचाप दोबारा उठाकर कारण के ही बगीचे में ले आता है और उस शक्ति से पूछता है कि तुम यहां तक कैसे आए और यहां क्या कर रहे हो और इस भेष में इस तरह यहां क्यों घूम रहे हो यह तो तुम्हारे माता-पिता है तुम्हें इसे चेहरा छुपाने की तो जरूरत नहीं है कारण आंखों में आंसू भरकर कहता है यह मेरे असली माता-पिता नहीं है मुझे इस बात का पता चल गया है मैं अब इन लोगों से कभी संपर्क नहीं करूंगा मैं अब अपने आप माता-पिता को खोजूंगा और उन्हीं के साथ रहूंगा इतना सुनते ही मोहन की आंखें जो गुस्से से भरी हुई थी पल भर में ही आंसुओं से भर जाती हैं और मोहन भरी हुई आवाज से कहता है बेटा तुम्हें तुम्हारे माता-पिता जल्द ही मिल जाएंगे फिर मोहन सोचता है कि भगवान देर से ही सही पर इंसाफ जरूर करता है

आखिर कौन है करण के असली माता-पिता और मोहन कि इंसाफ की बात कर रहा था क्या मोहन कारण को सब कुछ सच-सच बता देगा यह अभी भी उसे सारी रहस्य में बातों को वह छुपता रहेगा आगे जाने के लिए देखिए इस कहानी का पार्ट 3

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