करण के माता-पिता ने जैसे ही करण को घर लौटते देखा, वे खुशी से चिल्लाने लगे, "हमारा बेटा आ गया!" लेकिन करण उनकी तरफ बढ़ने के बजाय मोहन के पीछे छिप गया। यह देखकर करण के माता-पिता हैरान रह गए। उन्होंने सोचा कि करण ने जिनके साथ समय बिताया, उन्होंने उस पर ज़ुल्म किए होंगे, जिससे वह अब हमसे भी डर रहा है। लेकिन उन्हें इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि करण को सच पता चल चुका है—वे उसके असली माता-पिता नहीं हैं।
करण के माता-पिता ने उसे प्यार से बुलाया और अंदर ले गए। उन्होंने मोहन को भी धन्यवाद देते हुए अंदर बुलाया, क्योंकि उन्हें लगा कि मोहन ही करण को वापस लाया है। रात को करण के माता-पिता उसे अपने पास सुलाने की कोशिश करते हैं, लेकिन करण अकेले सोने की ज़िद करता है। यह सुनकर वे घबरा गए, लेकिन मोहन ने उन्हें समझाया कि करण अब बच्चा नहीं रहा। वह उसके कमरे की निगरानी रखेगा। आखिरकार, करण के माता-पिता मान गए।
रात को करण अपने कमरे में बेचैन होकर लेटा था। तभी मोहन चुपके से उसके कमरे में आया और पूछा, "अब बताओ, तुम्हें आगे क्या करना है?" करण उलझन में था और बोला, "मैं तुम्हें समझ नहीं पा रहा हूं। पहले तुमने मुझे अगवा किया, पर मुझसे अच्छा व्यवहार किया। अब तुम मेरी मदद करना चाहते हो। मैं तुम्हें दुश्मन मानूं या शुभचिंतक?"
मोहन ने जवाब दिया, "जैसा चाहो, मान लो। पर तुम्हारे सवालों के जवाब तक तुम मेरी मदद के बिना नहीं पहुंच सकते।"
करण ने हिचकते हुए कहा, "ठीक है, लेकिन सच कहूं तो मुझे डर अपने माता-पिता से लग रहा है। मुझे अब तुम पर भरोसा है। क्या तुम मेरे पास रुक सकते हो?" मोहन मान गया और करण को सुलाने के लिए उसके सिर पर हाथ फेरने लगा। धीरे-धीरे करण सो गया, लेकिन मोहन पुरानी हवेली की घटनाओं को याद करते हुए बेचैन हो गया।
मोहन को वह रात याद आई जब करण का जन्म हुआ था। करण के माता-पिता कभी संतान नहीं पैदा कर सकते थे। इसलिए, उन्होंने मोहन के बेटे को गोद लेने का फैसला किया। मोहन और उसकी पत्नी को मनाकर उन्होंने करण को अपना लिया।
करण के चाचा को यह फैसला बिलकुल पसंद नहीं आया। उन्हें लगा कि करण उनके रास्ते का कांटा बन जाएगा। उन्होंने करण को मारने की साजिश रचनी शुरू कर दी। एक दिन उन्होंने करण को कमरे में बंद कर लिया और उसे जान से मारने की धमकी दी। मोहन ने करण को बचाया, लेकिन इसके बाद करण के चाचा, मोहन और उसकी पत्नी के दुश्मन बन गए।
कुछ समय बाद, करण के चाचा ने मोहन की पत्नी को अगवा कर लिया और उसे हवेली के तहखाने में बंद कर दिया। उन्होंने उसे वहां पर जुल्म सहने के लिए मजबूर किया। मोहन ने अपनी पत्नी को बचाने की कई बार कोशिश की, लेकिन वह नाकाम रहा।
20 साल बाद, करण और मोहन ने पुरानी हवेली का रहस्य जानने की कोशिश की। करण ने मोहन की पत्नी की चीखें सुनीं और मोहन ने उसे बताया कि वह उसकी असली मां है। करण के पैरों तले जमीन खिसक गई। मोहन ने उसे समझाया कि वह अभी बच्चा है और चाचा से लड़ने के लिए सही समय का इंतजार करना होगा।
करण ने धैर्य रखा और अपनी मां को खोजने में लग गया। एक दिन करण ने अपने चाचा की तिजोरी से चाबी चुराई और तहखाने का दरवाजा खोलकर अपनी मां को आज़ाद करवा लिया।
करण ने सारी सच्चाई पुलिस को बताई। करण के चाचा को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें उम्रकैद की सजा हुई। मोहन और उसकी पत्नी को करण के माता-पिता ने गले लगाया और परिवार ने खुशी-खुशी जीवन बिताना शुरू कर दिया।
पुरानी हवेली का यह रहस्य अंततः सुलझ गया।
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