अप्रैल का महीना था। एक पुरानी जर्जर झोपड़ी के अंदर 15 साल का एक लड़का, करण, बेसुध पड़ा हुआ था। उसकी हालत खराब थी और उसका पूरा शरीर पसीने से तर-बतर था। तभी झोपड़ी के अंदर एक 30 वर्षीय व्यक्ति, जिसका नाम मोहन था, दाखिल हुआ। मोहन ने करण को इस हाल में देखकर जोर-जोर से हंसना शुरू कर दिया।
यह वही इंसान था जिसने करण को उसके घर से अगवा किया था। गुस्से में मोहन बोला,
"बस पांच साल और... पांच साल बाद तू 20 साल का हो जाएगा और जिस काम के लिए तुझे यहां लाया हूं, वो तू पूरा करेगा।"
इतना कहते हुए मोहन करण के पास आया और उसके चेहरे पर पानी के छींटे मारकर उसे होश में लाने लगा।
होश में आते ही करण ने जैसे ही मोहन को देखा, वह डर के मारे चिल्लाने लगा। उसने उठने की कोशिश की, पर कमजोर हालत के कारण उठ नहीं सका। "पानी...पानी..." कहते हुए वह फिर से बेहोश हो गया।
मोहन ने जल्दी से पानी लाकर करण को होश में लाया और उसे पानी पिलाया। पानी पीते ही करण थोड़ा संभला और सहमे हुए स्वर में पूछा,
"तुम कौन हो? मुझे मेरे घर से यहां क्यों लाए हो? मुझसे क्या चाहते हो?"
मोहन करण की बात सुनकर शांत स्वर में बोला,
"बेटा, पहले थोड़ा आराम कर लो। कुछ खा-पी लो, फिर मैं तुम्हारे सारे सवालों के जवाब दूंगा।"
लेकिन करण ने खाने-पीने से साफ इनकार कर दिया और अपने घर जाने की जिद करने लगा।
मोहन ने उसे सख्त लहजे में जवाब दिया,
"अब तुम अपने घर वापस नहीं जा सकते। तुम्हें अब यहां मेरे साथ रहना होगा।"
यह सुनकर करण और भी ज्यादा घबरा गया और बोला,
"तुम मुझे कहीं और क्यों ले जाना चाहते हो? आखिर कहां ले जाना चाहते हो मुझे?"
मोहन ने बस इतना ही कहा,
"अभी ना तुम अपने घर जा सकते हो, और ना ही कहीं और। अभी तुम्हें यहीं मेरे साथ रहना होगा। पांच साल बाद, जब तुम 20 साल के हो जाओगे, तब मैं तुम्हें उस जगह ले जाऊंगा जहां तुम्हें मेरा अधूरा काम पूरा करना है।"
करण समझ गया कि अब मोहन से कुछ भी पूछने का कोई फायदा नहीं है। उसने बस इतना कहा,
"ठीक है, अगर तुम मुझे कुछ नहीं बता सकते, तो कम से कम अपना नाम तो बता दो।"
मोहन मुस्कुराते हुए बोला,
"मेरा नाम मोहन है, और सब मुझे इसी नाम से पुकारते हैं।"
मोहन का नाम सुनकर करण ने सोचा, "नाम तो सीधा-सादा है, शायद इंसान भी इतना खतरनाक नहीं होगा। अगर मैं इसकी बात मानता रहूं, तो यह मुझे नुकसान नहीं पहुंचाएगा। कम से कम तब तक, जब तक मैं 20 साल का नहीं हो जाता।"
यह सोचते हुए करण ने फैसला किया कि उसे उस जगह का पता लगाना होगा, जहां मोहन उसे पांच साल बाद ले जाने वाला है।
रात हो चुकी थी। मोहन गहरी नींद में सो गया, लेकिन करण सो नहीं पाया। उसने झोपड़ी से भागने की कोशिश की, लेकिन मोहन ने झोपड़ी के सारे दरवाजे मजबूती से बंद कर दिए थे। यह झोपड़ी दिखने में भले ही जर्जर लग रही थी, लेकिन इसके अंदर कई कमरे थे और यह बेहद मजबूत थी।
भागने में नाकाम रहने के बाद करण ने झोपड़ी के सामान को खंगालना शुरू किया। तभी उसकी नजर मोहन की पुरानी किताबों और डायरियों पर पड़ी। इनमें से एक डायरी पर एक पुरानी हवेली का नक्शा बना हुआ था और उसके अंदर लिखा था, "पुरानी हवेली का रहस्य।"
करण अभी उस डायरी को ध्यान से पढ़ ही रहा था कि अचानक मोहन की नींद खुल गई। वह जोर से करण को पुकारने लगा।
करण डर के मारे जल्दी से डायरी को एक कोने में छिपाकर वापस मोहन के पास चला गया। जब मोहन ने उससे पूछा कि वह क्या कर रहा था, तो करण ने बहाना बनाया,
"मुझे भूख नहीं लग रही थी, बस प्यास लगी थी। इसलिए मैं पानी लेने गया था।"
इसके बाद करण अपने बिस्तर पर लौट गया, लेकिन रात भर वह उस डायरी के बारे में सोचता रहा।
अगले दिन सुबह होते ही करण उस डायरी के पास गया। उसने उसे उठाया ही था कि तभी मोहन ने उसे पुकार लिया। करण ने जल्दी से डायरी को वहीं रख दिया और मोहन के पास चला गया।
करण ने सोचा, "पहले मोहन से ही यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि इस डायरी और उस हवेली का क्या रहस्य है। क्या मोहन मुझे इस डायरी के बारे में कुछ बताएगा? और क्या मैं उस डायरी को पढ़ पाऊंगा?"
यह जानने के लिए हमारी कहानी का दूसरा भाग पढ़ें।
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