उदित की कड़ी मेहनत रंग लाई। udit ki kadi mehanat rang laee - hidi story 2021 डेली स्टोरी मेकर


 उदित की कड़ी मेहनत रंग लाई।

 यह कहानी है 20 साल के उदित की  उदित एक छोटे से गांव में अपनी मां और अपनी बहन के साथ रहता था उसके पिताजी उसके बचपन में ही गुजर गए थे इसीलिए वह बचपन से ही घर की जिम्मेदारियों को उठा रहा था लेकिन। जो वह काम करता था उससे अब घर का खर्चा पूरा नहीं हो पा रहा था बढ़ती महंगाई और बढ़ते खर्चों से वह परेशान हो गया था कि अब में क्या काम करूं। जिससे मैं अधिक धन कमा सकूं। वह सोच का बहुत पक्का था अगर वह सोचता था तो सोचते सोचते किसी भी मुसीबत का हल निकालना उसकी एक कला थी वह कुछ दिनों तक सोचता रहा कि ऐसा क्या काम करूं जिससे खूब धन मिल जाए और गृहस्थी चलाने में कोई दिक्कत नहीं आए। फिर उसने सोचा मैंने जो कुछ भी थोड़े बहुत पैसे जमा करे थे उसमें और पैसे डालकर में एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा खरीद लेता हूं। जिसमें में खेती करके फसल को बेचकर कुछ धन कमा पाऊंगा। लेकिन अब मैं और धन कहां से लाऊं मैं तो कुछ जानता  ही नहीं की और धन कहां से लाया जाए। फिर उसने अपने दोस्त  पंकज से  अपनी परेशानी साझा की तो उसके दोस्त ने कहा तू परेशान क्यों होता है ब्याज पर पैसा ले ले। उदित ने कहा ब्याज पर पैसा लूंगा तो पता नहीं फसल कब तक उगेगा जब तक ब्याज बढ़ता ही जाएगा अब बता मैं क्या करूं मैं ब्याज पर पैसा नहीं ले सकता मेरी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है। तो उसके दोस्त ने कहा ठीक है तू इतने सालों से मेरा दोस्त है तू ऐसा कर मेरी ही जमीन के टुकड़े में तू भी अपने बीज बो दे हम मिलकर एक ही जमीन में दोनों फसल उगाएंगे और जब फसल आ जाए तो उसे बेचकर तू पैसे जमा करना किसी ना किसी दिन तू अपना भी जमीन का टुकड़ा खरीद ही लेगा ऐसा करके लेकिन उसके दोस्त की योजना तो कुछ और ही थी। उसकी  योजना उदित को नहीं पता थी वरना वह ऐसा सौदा कभी नहीं करता पंकज ने सोचा था इसे क्या पता की जमीन कैसी होनी चाहिए खेती करने के लिए मैं जिस जमीन पर  उदित के साथ खेती करूंगा।  वह तो अच्छी खासी हरियाली उगलने वाली जमीन है लेकिन जो जमीन में इसे बेच दूंगा वह बिल्कुल बंजर है  पत्थरों से भरी है यह उसे जोत नहीं पाएगा अगर जोत भी ली तो उसमें फसल नहीं  होगी। पंकज की योजना से अनजान उदित अपनी मां से पंकज की कई सारी बात कहता है। उसकी मां उसकी सारी बातें बहुत ध्यान से सुनती है और कहती है कि देख बेटा मुझे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा आजकल कोई भी किसी की ऐसे ही मदद नहीं करता कुछ मतलब पड़ता है जब  ही मदद करते हैं और जितना देते नहीं उससे कहीं ज्यादा ले लेते हैं तू मेरी बात मान तो यह सौदा मत कर। लेकिन उदित ने कहा नहीं मां पंकज ऐसा नहीं है वह मेरा बचपन का दोस्त है उसे तो तुम भी अच्छे से जानती हो उसने हमारी कितनी मदद की है आज भी वह सिर्फ हमारी मदद ही कर रहा है उसका और कोई इरादा ही नहीं है मैं उसकी बात मान लूंगा और मैं उसके ही खेत में अपनी फसल  लगाऊंगा। 

जैसे उसने कहा था मैं वैसा ही करूंगा उसकी मां बोली ठीक है लेकिन कभी तुझे मेरी जरूरत पड़े तो मैं भी तेरा साथ  दूंगी। अपनी मां के मुंह से ऐसे शब्द सुनकर उदित अब संतुष्ट हो गया था और उसे सुबह का इंतजार था कि सुबह होते ही वह बाजार से अच्छे वाले  बीज खरीद कर लेकर आएगा। और उन बीजों से खेती करेगा इन्हीं खयालों में वह कब सो गया उसे पता नहीं चला सुबह उठते ही उसने अपनी मां से कहा मां मुझे अब कुछ पैसे दे दो मैं बाजार जा कर अच्छे से बीज खरीद लाऊंगा जिनको पंकज के खेत में  डालकर मैं खेती करूंगा उसकी मां ने कुछ नहीं कहा उसे रुपए दे दिए रुपए लेकर उदित बाजार में चला गया उसने अच्छी फसल के  हरी सब्जियों  के बीज खरीद लिए और घर लेकर आ गया। उसकी मां ने कहा तू बीज तो   लेकर आ गया। और खेत में इन्हें डाल भी देगा लेकिन इनकी देखरेख कौन करेगा। तू तो सुबह से रात तक के लिए अपने काम पर चला जाता है मैं तेरी बहन को अकेला छोड़ कर मैं खेत पर नहीं जा सकती तो अब बता तू क्या करेगा उसने कहा इतना सब कुछ भगवान भरोसे ही किया है आगे भी भगवान ही हमारी मदद करेंगे पहले यह  बीज खेत में तो डाल दूं फिर देखेंगे क्या करते हैं। 

उदित बीज लेकर पंकज के खेत पर चला गया पंकज  वहां उदित का ही इंतजार कर रहा था उदित के आते ही पंकज के चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई तो आखिर उदित मान ही गया लेकिन उसे क्या पता कि मैं क्या योजना बनाएं बैठा हूं आखिरकार जीत मेरी ही होगी। फिर पंकज ने उदित से कहा तू ऐसा कर यह  बीज तू मुझे दे दे मैं तेरे हिस्से में डाल दूंगा और तू अपने काम पर जा उदित ने कहा नहीं यह ठीक नहीं है मेरा काम में ही करूंगा तुम नहीं कर सकते तुम अपना काम करो तुम मेरा काम करोगे तो अपना नहीं कर पाओगे। लेकिन पंकज नहीं माना पंकज उदित को एहसानों तले दबा देना चाहता था जिससे अंत में आकर उदित को पंकज की बात माननी ही पड़े। उसने उदित को कसम दे दी कि तुझे मेरी कसम तू अपने काम पर चला जा अब तू बिल्कुल फिक्र मत कर अब तो सब कुछ मुझ पर छोड़ दे जिस दिन फसल कट के तैयार हो जाएगी उस दिन तू जाकर बाजार में बेचना। पंकज की यह बात सुनकर  उदित  को लगा कि  पंकज तो मेरा बचपन से सुख दुख में साथ देता  आया है और आज भी पंकज   मेरा  साथ दे रहा  है।और वह खुशी-खुशी अपने घर चला गया घर जाकर उदित ने मां को सारी बात बताई अब मां का शक यकीन में बदल गया लेकिन बेटे को कैसे समझाती बेटा तो मानने वाला ही नहीं था बेटे की तो आंखों पर दोस्ती की पट्टी बंधी थी जो नहीं उतर पाती। फिर उदित बोला मां  मैं काम पर जाता हूं। असल में उदित नहीं चाहता था कि पंकज उसके हिस्से का खेतों में काम करें लेकिन उदित और करता भी क्या  अगर कमाता नहीं तो खाता क्या और अगर खेतों में ही लगा रहता तो नहीं कमा पाता तो इसीलिए उसने भी सोच लिया कि ठीक है पंकज जो कर रहा है उसे करने दो मैं अपना रोज का काम करता हूं। देखते ही देखते फसल भी तैयार हो गई पंकज ने फसल काट के तैयार कर दी और उदित को खबर करवा दी कि वह अपनी फसल जाकर बाजार में बेच आए। उदित ने जब यह खबर सुनी तो वह खुशी के मारे उछल पड़ा और खुशी-खुशी पंकज के पास चला गया और पंकज को धन्यवाद  देकर फसल उठाकर बाजार में बेचने चला गया बाजार में फसल ताजी होने के कारण अच्छे  दामों में बिक गई जिससे उदित को काफी मुनाफा हुआ।

 दो-तीन साल तक लगभग ऐसा ही चलता रहा फिर वह समय भी आ गया जब  उदित के पास अब खुद की जमीन खरीदने के लिए पैसे इकट्ठे हो गए थे तो वह पंकज के पास गया और बोला भाई अब मेरे पास पैसे  जमा हो गए हैं तो तुम मुझ पर कृपा करके मुझे कोई ऐसी जमीन दिलवा दो जिसमें मैं आसानी से खेती कर सकूं अब पंकज के होठों पर मुस्कुराहट आ  गई क्योंकि अब उसका मकसद कामयाब होने वाला था जो जमीन सालों से बंजर होने के कारण कोई खरीद नहीं रहा था आज उसे वह उदित को अंधविश्वास और धोखे के साथ बेच रहा था पंकज ने कहा तुम कहीं और क्यों  भटकते हो  मेरे खेत में एक और जमीन का टुकड़ा है जो खाली पड़ा हुआ है तुम उसे खरीद लो जो मर्जी  करे वैसा ही काम करना।जैसा चाहे वैसा काम करना हम कुछ नहीं कहेंगे। आदित्य ने पंकज की यह बात तो सुनी तो वह अचंभा सा रह गया फिर उसने कहा ठीक है भाई  तुमने मेरी इतनी मदद की है तो मैं भी तुम्हारी बात मानूंगा। उदित ने बिना कुछ सोचे समझे पंकज से वह जमीन खरीद ली जो बिल्कुल बंजर थी अब  उदित अपने घर गया और मां को समझाया और कहा कि मां अब तुम ऐसा करो। कि मेरे साथ चल कर  मेरी जमीन का पूजन कर दो उसके बाद में उसमें हल  चला लूंगा। क्योंकि जिस  जमीन को मां   स्पर्श कर लेती है तो वह बंजर से भी सोना बन जाती है। बेटे की ऐसी बात सुनकर उदित की मां का दिल भर आया और कहा ठीक है मैं तेरे साथ चल कर पूजन कर आती हूं फिर  तुम उसमें  खेती कर लेना। उदित ने अपनी मां से भूमि पूजन कराने के बाद मां से कहा मां अब तुम घर जाओ और मैं घर में कुछ जरूरी राशन का सामान इकट्ठा कर देता हूं जब तक मैं खेती करूंगा जब तक तो खाने के लिए चाहिए ही चाहिए इसीलिए कोई परेशानी ना हो तो मैं यह काम कर रहा हूं। उदित की मां ने कहा ठीक है बेटा जैसी तेरी मर्जी।

 उदित ने घर में राशन जमा कर के खेतों में चला गया और हल चलाने लगा और खूब  मेहनत से हल चलाया। उदित जितना हल चलाता उतनी ही कंकड़  पथरी उस जमीन में से  निकलती। उदित ने सोचा कि मैं पहले जमीन से सारे कंकड़ पथरी अलग कर देता हूं फिर मैं इसमें  बीज को  डाल  दूंगा और उदित ने ऐसा ही करा और खेत में से सारी कंकड़ पथरी अलग कर दी। और उसमें पानी छोड़ दिया जब पानी पीकर जमीन मुलायम हो गई तब उसमें उदित ने अच्छी फसल  का बीज डाल दीया। और फिर खूब मेहनत से खेत में काम करा उदित की मेहनत रंग लाई और कुछ  समय बाद देखते ही देखते फसल तैयार हो गई और फिर जब उदित ने वह बाजार में बेची तो उसे बहुत ही अच्छा मुनाफा हुआ। यह सब उसकी मां ने देखा तो है उदित को आशीर्वाद देने लगी और उस पर गर्व करने लगी कि भगवान ऐसा बेटा सबको दे। लेकिन उदित और पंकज की मुलाकात अभी बाकी थी पंकज को यह सब सूचित हुआ तो वह चुप न रह सका और उदित के घर जाकर उदित से बोला।  उदित तू मुझे यह बता तूने यह सब कैसे कर लिया। उदित ने कहा यह सब कैसे कर लिया मतलब आसान था खेत मैंने खरीद लिया तो  उसमें मैंने  बीज डाला सिंचाई की और फसल तैयार हो गई। और फिर उसे में जाकर बाजार में बेच आया जिससे मुझे बहुत अच्छा मुनाफा हुआ है और आज मैं बहुत खुश हूं कि मेरी मेहनत रंग लाई लो तुम भी मुंह मीठा करो। पंकज ने उदित से कहा नहीं यार मैंने तेरे साथ में धोखा किया है।  उदित समझ गया कि पंकज क्या कह रहा है लेकिन उसकी मां को कुछ खबर नहीं थी तो वह मां को भेजने लगा लेकिन पंकज ने मना कर दिया कि नहीं मां जी को भी रहने दो ऐसी बातें बड़ों की छुपाया नहीं करते और फिर पंकज ने कहा  मां जी मैंने उदित को धोखा दिया था मैंने उदित को वह जमीन बेच दी थी जो  बंजर थी। जिसे कोई खरीद  नहीं रहा था। लेकिन उदित ने उसे अपनी मेहनत से हरा भरा कर दिया और यह  प्रमाणित कर दिया कि मेहनत के बल पर कुछ भी किया जा सकता है नामुमकिन भी मुमकिन हो जाता है  मां जी में अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हूं आप जो चाहे मुझे सजा दे दीजिए। 

इस पर उसकी मां ने कहा नहीं बेटा यह सब तो विधाता की मर्जी थी उन्होंने तेरे द्वारा मेरे बेटे की परीक्षा ली थी जिस पर मेरा बेटा सफल रहा धन्यवाद तो हमें तेरा करना चाहिए कि तूने हमारा इतना साथ दिया इतना साथ तो कोई  भी नहीं देता जितना तूने दे दिया बेटा मैं तुझे भी आशीर्वाद देती हूं कि तू भी जुग जुग जिए और खूब तरक्की करें। अब उदित कि मेहनत के चर्चे पूरे गांव में थे उसकी मेहनत से उसकी फसल भी बहुत अच्छी होती थी जिसके कारण दूर-दूर से उसके पास  फसल के आर्डर आने आने लग गए थे लेकिन उसके पास इतना अनाज नहीं होता था तो उसने पंकज को भी अपने साथ मिला लिया देखते ही देखते उदित एक बहुत बड़ा जमींदार बन गया उसने बहुत बड़े-बड़े जमीन के टुकड़े खरीदने शुरू कर दिया और उस में  बीज डालकर मेहनत से     उगाकर  ऑर्डर के मुताबिक फसल भेजना शुरू कर दी अब उदित के पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी पैसा बंगला गाड़ी सब कुछ उसके पास था लेकिन उदित की मेहनत के बल पर। उदित की मेहनत से सारे गांव वाले खुश थे और उनको भी प्रेरणा मिली जो हरियाली जमीनों में भी कुछ नहीं करते थे वह भी अब मेहनत करके कमाने लगे थे और अपना घर चलाने लगे थे हमें उदित की तरह ही अपने जीवन में मेहनत करनी चाहिए चाहे परीक्षा कैसी भी हो चाहे काम कैसा भी हो हमें अपनी पूरी ईमानदारी सच्चाई और मेहनत से उसे करना चाहिए तो हर काम आसान होता है। तो यह है  उदित की कड़ी मेहनत की कहानी धन्यवाद। दोस्तों स्टोरी को शेयर जरूर करियेगा और कमेंट में हमें बताएं कहानी कैसी थी |

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