माता पिता के मरने के बाद दी उन्हें इज्जत। mata pita ke marne ke baad di unhe ijjat

माता पिता के मरने के बाद दी उन्हें इज्जत।


 यह कहानी है एक ऐसे लड़के दीपक की जो अपने मां-बाप की दिन और रात की मेहनत के बाद एक बहुत ही बड़ा अमीर बिजनेसमैन बन गया था लेकिन वह अपने मां बाप को भूल गया था कि वह भी इंसान है। वह अपने काम में इतना व्यस्त रहता कि उसे मां-बाप की याद भी नहीं आती थी और अगर दीपक अपने मां-बाप से मिलता था तो उनके पास बैठता भी नहीं था दूर से ही बात करता था गैरों की तरह हालचाल पूछता और चला जाता था। उसके इस व्यवहार से उसके माता-पिता हमेशा दुखी रहते थे तीज त्यौहार पर भी उसका यही व्यवहार रहता था  जिसकी वजह से उसके माता-पिता अपने आंसू नहीं रोक पाते थे। हमेशा भगवान से उन्हें यही शिकायत रहती थी कि भगवान तूने हमें बेटा दिया तो ऐसा क्यों दिया या तो तू बेटा ही नहीं देता और या उसमें गुण अच्छे देता। पर धीरे-धीरे करके उन्होंने भगवान को भी ऐसा कहना बंद कर दिया था क्योंकि वह समझ गए थे कि यह सब उनकी दिन और रात की कड़ी मेहनत का कड़वा फल है। यह सच बहुत ही कड़वा था लेकिन था  तो सच। कि कोई बेटा अपने मां-बाप को इस तरह से कैसे भूल सकता है। क्या दौलत ही सब कुछ होती है आज दीपक जो कुछ भी था सिर्फ अपने मां-बाप की वजह से अगर उसके मां-बाप दिन और रात भूखे प्यासे रहकर इतनी मेहनत करके उसकी ख्वाहिशों को पूरा नहीं करते तो आज दीपक वहां नहीं होता जहां ब वह खड़ा था। वह कभी इतना धनवान नहीं बनता। वैसे तो दीपक बहुत ही पढ़ा लिखा बहुत ही समझदार लड़का था लेकिन उसके पैसों के घमंड  ने उसकी समझदारी पर पर्दा डाल रखा था उसे पैसों के आगे कुछ और दिखता ही नहीं था वह समझता था कि दुनिया की हर एक चीज पैसे से खरीदी जा सकती है। लेकिन वह यह भूल गया था कि मां-बाप अगर एक बार इस दुनिया से चले जाएं तो वह किसी भी दौलत के द्वारा वापस नहीं आ सकते। दुनिया की कितनी भी कीमती दौलत उन्हें  वापस दुनिया में नहीं ला सकती। इसी नासमझी में वह इतना गुरूर हो गया कि। इसी ना समझी मैं वह इतना कंजूस हो गया था कि वह अब अपने मां-बाप की आवश्यक चीजों को भी नहीं खरीद खरीदता था। उसे यही लगता था कि जो मैं अपने मां-बाप के लिए कर रहा हूं वह उन्होंने कभी मेरे लिए नहीं करा और मैं पैसे उन पर क्यों खर्च करूं वह कुछ दिन के तो मेहमान है फिर तो उन्हें इस दुनिया से ही जाना है। लेकिन उसे यह पता भी नहीं था कि उसके कंजूसी की वजह से उसके मां-बाप को कितनी तकलीफ हो रही थी दवाइयां खरीदनी बंद कर दी थी तो उनकी बीमारियां बढ़ रही थी जरूरत का सामान नहीं मिल रहा था तो वह बहुत परेशान हो रहे थे। लेकिन मां-बाप तो मां-बाप ही होते हैं उन्होंने अपने बेटे को कभी दोषी नहीं माना था शिकायत जरूर रहती थी पर दिल से दोषी कभी नहीं माना था। उन्होंने तो यही समझ लिया था कि जरूर यह हमारे किसी पुराने जन्म के बुरे कर्मों का बुरा फल है जो हमारे बेटे के रूप में हमारे पास आया है और हमें उसे भुगतना ही भुगतना है। और हमेशा भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि भगवान हमारा बेटा सदा खुश रहे सदा सुखी रहे जो वह चाहे उसे मिल जाए। पर दीपक यह नहीं जानता था कि मां बाप से बड़ा शुभचिंतक इस दुनिया में कोई नहीं होता मां बाप से बड़ा चिंता करने वाला कोई नहीं होता मां बाप का साथ जब तक जीवन में रहता है कोई  परेशानी पास भी नहीं आ सकती और मां बाप का साया हटते ही परेशानियों के पहाड़ टूटने लगते हैं। उन परेशानियों में से निकलना मुश्किल हो जाता है क्योंकि कोई सही राह दिखाने वाला नहीं होता कोई अच्छी सलाह देने वाला नहीं होता। दीपक की वजह से दीपक के मां-बाप की बीमारी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी क्योंकि दीपक उन्हें दवाइयां खरीद कर नहीं देता था। धीरे-धीरे बीमारी है इतनी बढ़ गई।कि एक एक करके उसके माता-पिता दोनों ही स्वर्गवासी हो गए। लेकिन दीपक को उससे कोई दुख नहीं पहुंचा बल्कि वह तो खुश था कि अब उसके ऊपर जो उसके माता-पिता का भार था वह अब सदा के लिए हट गया है और अब वह आजाद है जो चाहे वह कर सकता है। दीपक की खुशी ज्यादा दिन तक नहीं चली धीरे-धीरे करके उसे अपने बिजनेस में घाटा होता रहा। एक के बाद एक बुरी खबर सुनने के बाद दीपक का दिमाग काम नहीं कर रहा था जिसकी वजह से वह परेशानियों से भी नहीं निकल पा रहा था और उसे डर था कि कहीं धीरे-धीरे करके सब कुछ खत्म न हो जाए उसका बिजनेस बिल्कुल बंद न हो जाए। फिर उसे याद आया कि ऐसी परेशानियां तो पहले भी उसके सामने आकर खड़ी हुई थी लेकिन उस समय तो वह परेशानियों से निकल कर आ गया था क्योंकि। उस वक्त उसके पास उसके माता-पिता थे जो उसका बहुत ही सही मार्गदर्शन करते थे सही गलत में फर्क समझाते थे और सबसे जरूरी बात उनकी शुभकामनाएं अच्छी दुआएं उसके साथ थी अब जब वह भी इस दुनिया में नहीं है तो इस सब का तो कोई मतलब ही नहीं होता कि वह सब आज भी उसके साथ होगा। अब उसे मां-बाप की कमी खलने लगी थी मां बाप की याद आने लगी थी कहीं ना कहीं उसे लगने लगा था कि यह सब मेरी ही गलती थी। कि अगर मैं उनके साथ में इतना बुरा बर्ताव नहीं  करता इतना बुरा नहीं बनता तो आज मेरे मां-बाप जिंदा होते और मुझे इन परेशानियों से बाहर निकलने में मदद करते  धीरे-धीरे करके उसका बिजनेस बंद हो गया और वह बिल्कुल निर्धन हो गया था क्योंकि अपने सारे पैसे तो उसने बिजनेस को बचाने में लगा दिए थे लेकिन सही मार्गदर्शन ना होने की वजह से सही गलत की पहचान ना होने की वजह से वह वैसे भी उसके किसी काम नहीं आए। फिर उसे एहसास हुआ कि मैंने मां-बाप के साथ इतना बुरा व्यवहार किया मां बाप ने मुझसे एक दिन भी नहीं कहा कि बेटा तू हमारे साथ में ऐसा क्यों करता है लेकिन अबजब मेरे सामने इतना बुरा वक्त आया है तब मुझे एहसास हुआ कि बुरा किसे कहते हैं बुरा किसे कहते हैं बुरा क्या होता है अब मैं अपनी  परेशानी किससे कहूं  अब मैं इस भरी दुनिया में भी अकेला हो गया हूं। तब उसने सोचा मां-बाप तो नहीं रहे लेकिन कहीं ना कहीं वह मेरी बात सुन जरूर रहे होंगे मेरी हालत जरूर देख रहे होंगे तो क्यों ना मैं उनसे माफी  मांग लेता हूं।वह जरूर मुझे माफ कर देंगे। फिर उसने मां बाप की तस्वीर के सामने जाकर माफी मांग ली और फूट-फूट कर रोने लगा तभी उसका एक दोस्त उसके पास आया और कहने लगा अब माफी मांग कर क्या फायदा अब रोने से क्या फायदा जब वह जिंदा थे तो तूने उनकी इज्जत नहीं करी मरने के बाद तू किसी इज्जत दे रहा है। अगर आज तू वही होता जहां तू तब था। जब तूने अपने मां बाप के साथ ऐसा व्यवहार किया कि उन्हें मरना ही पड़ा। तो तू आज भी उन्हें इज्जत नहीं देता उन्हें याद नहीं करता दोस्त मरने के बाद इज्जत नहीं दी जाती मां बाप को इज्जत जीते जी दी जाती है मरने के बाद तो वह पराए हो जाते हैं। तो यह है कहानी माता पिता के मरने के बाद दी उन्हें इज्जत। धन्यवाद।

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