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    Wednesday, May 19, 2021

    एक कुम्हार अपने देश की मिट्टी से गरीब से अमीर बन गया। ek kumhar apne desh ki mitti se gareeb se ameer ban gaya -hindi kahani 2021

     एक कुम्हार अपने देश की मिट्टी से  गरीब से अमीर बन गया।


    यह कहानी है एक ऐसे किसानों की जो बहुत ही गरीब था लेकिन अपने देश की मिट्टी से वह अमीर बन गया। दरअसल यह कहानी एक ऐसे इंसान की है जो कुम्हार ही नहीं था लेकिन अपने काम के कारण वह कुम्हार कहलाया। यह कहानी है मोहन की मोहन अपने एक शहर में रहता था शहर में उसके माता पिता  थे। शहर में उनकी एक अच्छी खासी कपड़ों की दुकान थी जिससे वह अच्छे पैसे कमा लिया करते थे और अपना घर खुशी-खुशी चलाते थे। मोहन बहुत ही मेहनती लड़का था वह अपनी दुकान में बहुत ही लगन और ईमानदारी से काम करता था जिसके कारण वह अधिक धन कमा पाता था लेकिन 1 दिन उसकी दुकान में अचानक आग लग गई जिसके कारण उसकी दुकान का आधे से ज्यादा सामान जल गया जिसके कारण होने बहुत ही नुकसान हुआ और वह एकदम गरीब हो गए। जब इंसान गरीब हो जाता है तो रिश्तेदार भी नाता तोड़ देते हैं पराया ही मान लेते हैं कुछ ऐसा ही मोहन के साथ हुआ अपनी दुकान से इतना नुकसान पाकर मोहन को आश थी कि उसके रिश्तेदार कुछ उसके मदद करेंगे फिर जब सब कुछ ठीक हो जाएगा तो वह उनके पैसे लौटा देगा लेकिन रिश्तेदारों ने बिल्कुल भी मदद नहीं करी। 

    हालात ऐसे हो गए कि दो वक्त की रोटी के लिए उन्हें अपना घर बेचना पड़ गया था मोहन पैसे कमा सकता था कमा कर अपना घर चला सकता था लेकिन दुकान में इतना बड़ा नुकसान होने का सदमा उसके माता-पिता झेल ना सके और बहुत बीमार हो गए उनकी सेवा करने के कारण वह कमाने नहीं जाता था और घर में जो कुछ भी जमा पूंजी थी उन्हीं से उनका इलाज करता और घर चलाता था धीरे-धीरे वह धन भी खत्म हो गया तो मोहन को मजबूर होकर अपना घर बेचना पड़ गया और एक कुम्हार के वहां किराए पर कमरा देखने के लिए चला गया  कुम्हार ने जब उसकी सारी कहानी सुनी  तो कुमार को भी उस पर दया आ गई और उसने वह कमरा उन्हें मुफ्त में ही दे दिया। मोहन ने बहुत मना करा कि तुम अगर ऐसे ही मुझे मुफ्त में कमरा दे दोगे तो तुम क्या खाओगे कुम्हार ने उसे तसल्ली दी और कहा कि बेटा मैं खुद गरीब हूं मैं तुम्हारी गरीबी का क्या फायदा उठाऊंगा और रही बात कमाने की तो यहां पर सब  विधाता की मर्जी से होता है कोई खाली पेट नहीं सोता मैं अपना काम करके अपना घर चला लेता हूं मेरे लिए इतना ही बहुत है। मोहन को कुम्हार का स्वभाव बहुत अच्छा लगा और वह अपने माता पिता को लेकर के वहां रहने के लिए चला गया अब मोहन कमाने के लिए सोच ही रहा था तो कुम्हार ने कहा बेटा तुम एक काम करो घर में रहकर ही कुछ ऐसा काम कर लो जिससे तुम अपने माता पिता की सेवा भी कर सको और काम करके दो पैसे भी कमा सको।

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     मोहन बोला बाबूजी मैं तो बचपन से ही दुकान पर ही काम करता था जो हमारी अपनी थी लेकिन उसमें इतना घाटा हुआ कि आज हमारी हालत ऐसी हो गई है कि हमें तुम्हारे वहां  रहना पड़ रहा है मैं और कोई काम के बारे में कुछ नहीं जानता अगर आप कोई काम जानते हो तो कृपा करके मुझे बताओ। इस पर कुम्हार ने कहा जो मैं काम करता हूं तुम अगर वह काम कर सको तो तुम्हारे लिए बहुत अच्छा होगा लेकिन उस काम को करने से तुम ही कुम्हार ही कहलाओगे क्योंकि वह काम सिर्फ और सिर्फ कुम्हार ही करते हैं। मोहन ने कहा बाबूजी जिंदा रहने के लिए पेट में खाना होना जरूरी है जेब में दो पैसे होने जरूरी हैं जाति का होना जरूरी नहीं है जाती कुछ भी मैंने मुझे तो काम करने से मतलब है और अगर ईमानदारी और लगन के काम करने से जाते बदल जाती है तो उसमें कोई दोष नहीं। मोहन की ऐसी बातें सुनकर कुमार की आंखें भर आई और उसने कहा ठीक है बेटा कल सवेरे से मैं तुम्हें अपना काम सिखा दूंगा तुम जल्द से जल्द काम सीख जाना और फिर वही काम करके तो पैसे कमा लेना। अब मोहन उसके बारे में सोचता रहा और सो गया |

    सुबह उठते ही अपने माता-पिता की सेवा करने के बाद मोहन उस कुमार के पास चला गया और बोला बाबूजी में आ गया बताओ कहां से शुरू करूं उन्होंने कहा पहले तुम्हें में मिट्टी की पहचान करना सिखाता हूं मोहन ने कहा मिट्टी के पहचान कुमार ने कहा हां हम कुमार लोग अपने देश की मिट्टी से ही कुछ बर्तन बना कर भेजते हैं और उसी से हमारा घर चलता है मोहन ने कहा ठीक है मैं भी यह काम सीख लूंगा। कुम्हार ने मोहन को धीरे-धीरे करके अपने काम के सारे कला सिखाती और मोहन ने भी खूब मन लगाकर कुम्हार के  मिट्टी के बर्तन बनाने के काम को सीख लिया। अब मोहन ने धीरे-धीरे करके अपना खुद का कुम्हार का काम मतलब मिट्टी के बर्तन बनाने का काम शुरू कर दिया जिसके लिए उसने अपना खुद का काम तो नहीं किया लेकिन वह कुमार के काम में हाथ बटाता था मतलब कुमार के साथ में काम करता था अगर बर्तन मोहन बनाता तो तुम कुम्हार  बेच दिया करता था लेकिन  कुम्हार उसे समझाता था कि बेटा किसी पर भी इतना भरोसा नहीं करते तुम अपना काम मुझ पर इतने भरोसे से करवा रहे हो अगर मैंने धोखा दे दिया तो।

     मोहन बोला बाबूजी ऐसा कह कर मुझे शर्मिंदा ना करें अगर आप ऐसे ही होते तो मुझे अपना काम ही क्यों सिखाते अगर आप चाहते हैं कि मैं खुद का काम कर लूं तो ठीक है मैं कल से खुद का काम कर लूंगा लेकिन ऐसे शब्द कह कर मुझे और लज्जित ना करें। कुमार ने कहा ठीक है बेटा कि तुम मेरा कहां समझ गए ठीक है तुम अपना काम शुरू कर लेना जिसे तुम खुद के दो पैसे कमा सको । मोहन अब अपने माता-पिता की भी खूब सेवा करता हूं उनका खूब ध्यान रखता और अपना मिट्टी के बर्तन बनाने का काम भी शुरू करता देखते ही देखते मोहन अपनी जाति के नाम से नहीं जाना जाता था अब वह कुम्हार नाम से जाना जाता था लोग उसे मोहन कम्हार के नाम से जानते थे जबकि है बात उसके रिश्तेदारों के कानों में पड़ी तो वह गुस्से में भर उठे और एक-एक करके मोहन के घर आकर सब कुछ ना कुछ कह  कर जाते थे कि तुमने अपनी चाहत की परवाह नहीं की और यह नीच काम करने लग गए लेकिन मोहन कुछ ना कहता बस एक ही जवाब कहता कि जब मुझे तुम्हारी जरूरत थी जब तुमने मेरा साथ नहीं दिया अब किसी ने मेरा साथ दिया है तो तुम उसको भी गलत साबित कर रहे हो यह अच्छी बात नहीं है विधाता सब देखता है और विधाता तुम्हें इसका जवाब जरूर देगा। 

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    मोहन की ऐसी बातें सुन कर रिश्तेदार और गुस्से में भर जाते और उससे रिश्ता तोड़ कर चले जाते थे पर मोहन को अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि जब उसे उनके जरूरत थी जब तो साथ नहीं दिया और अब अपने प्रवचन सुनाने के लिए आ रहे थे। मोहन ने किसी की परवाह नहीं की और अपनी कड़ी मेहनत से मिट्टी के बर्तन बनाना जारी रखा देखते ही देखते वह एक प्रसिद्ध कुमार के नाम से जाना जाने लगा और अब उसके पास दूर-दूर से आर्डर आने लगे थे ऐसा देख उसके रिश्तेदार भी उससे जलने लगे थे लेकिन अब करते भी क्या मोहन को जो  करना था उसने कर दिया लेकिन उसने एक बात तो साबित कर दी थी कि काम इमानदारी से करा जाए तो कुछ भी हो सकता है अब मोहन के पास जब धन्य इकट्ठा हो गया था तो उसने अपने माता-पिता का एक विदेश के डॉक्टर से बहुत ही अच्छा इलाज कराया जिसके कारण उसके माता-पिता अब जल्दी ठीक हो गए थे और अब मोहन बहुत पैसे वाला भी हो गया था उसने अपना खुद का अच्छा सा मकान बनाया और उसमें रहने लगा लेकिन उसने सोचा जिसके बल पर मैंने यह सब कुछ हासिल किया है उसे मैं अगर आप पीछे पीछे छोड़ दूंगा तो बहुत बुरा होगा उसने कुम्हार को भी अपने साथ ही रखने का निर्णय किया। कुमार की भलाई के लिए सोचता हुआ वह कुम्हार के घर चला गया और कहने लगा तुमने इतने साल इसी घर में गुजार दिया और मैंने भी तुम्हारे साथ इस घर में जो समय बिताया है वह बहुत कठिन रहा है गर्मी में यहां बिजली की सुविधा नहीं बारिश में यहां छत से पानी टपकता है और तूफान में यहां बहुत परेशानी हो जाती है तुम ऐसा करो यह सब छोड़ कर मेरे साथ मेरे घर चलो तुम वहां भी अपना यही काम करना मुझे कोई परेशानी नहीं होगी और मैं तो कहता हूं तुम अब कोई काम ही मत करो मुझे अपना बेटा समझो और मेरे साथ मेरे घर चलो। 

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    मोहन के ऐसे शब्द सुनकर कुम्हार तो मानो आश्चर्य से ही भर गया उसने कहा बेटा तू जो कह रहा है वह मैं जानता हूं तू किस लिए कह रहा है मैंने जो तेरे साथ अच्छा व्यवहार किया है विधाता मुझे उसी का ही आज फल दे रहा है लेकिन मैं तेरे साथ नहीं चल सकता वरना दुनिया के लोग कहेंगे कि मोहन की जाए जात का फायदा उठाना चाहता है उसके पैसों पर पर चलना चाहता है इसीलिए उसने मोहन को अपनी कला सिखाई और उसके टुकड़ों पर पलने के लिए चला गया नहीं मैं दुनिया के ताने नहीं सुनना चाहता बेटा तू अपने घर चला जा मुझे मेरे घर ही रहने दे। मोहन को कुमार की बातें सुनकर थोड़ा गुस्सा आ गया और उसने कहा तुम किन लोगों की बातें कर रहे हो जब तुम इस घर में रहती हो तुम्हें इतनी परेशानी होती है तो किसी ने तुम्हारी परेशानी के बारे में पूछा किसी ने तुम्हारी परेशानी हल करने का सोचा और आज जब मैं तुम्हारे कला सीख कर खूब पैसा कमा कर तुम्हारी मदद करना चाहता हूं तो तुम मुझे मना कर रहे हो तुम ऐसा क्यों कर रहे हो तुम मुझे मेरा फर्ज अदा करने दो मैं नहीं चाहता कि तुम अब इस घर में रहो मेरे माता-पिता भी यही चाहते हैं कि तुम मेरे साथ ही रहो। कुमार ने कहा बेटा तुम्हारी तरह मेरा भी एक बेटा था वह बहुत अमीर था वह अपना काम करता था और अमीर बन गया था उसे मेरा यह काम भी पसंद नहीं था और उसे मेरे साथ रहने में भी बहुत निंदा महसूस होती थी इसलिए उसने मुझे अपने घर से निकाल दिया और मैं यहां रहने को मजबूर हूं अब मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम दुनिया के सामने शर्मिंदा हो। कुमार ने कहा।

     अब मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकता मेरी बात समझो और अपने घर जाओ मोहन ने कुमार की एक न सुनी और मोहन  कुमार को अपने घर ले गया और कुमार कि उसने अपने माता पिता की तरह सेवा की और वह मोहन ने अपना मिट्टी के बर्तन बनाने का काम जारी रखा उस काम में उसकी वह कुम्हार भी मदद करता था उसकी हिस्से का काम भी कर दिया करता था  इसी तरह मोहन देखते ही देखते बहुत अमीर हो गया और उसने साबित कर दिया कि एक कुम्हार भी मेहनत करके अमीर बन सकता है उसने अपने ही देश की मिट्टी से बर्तन बनाकर बेचे और अपने कड़ी मेहनत के बल पर बहुत अमीर साबित हो गया और साथ ही उसने गरीब लोगों की भी बहुत मदद की गरीबों को खाना देता था अनाथालय में बच्चों के लिए खाना दान करता था बच्चों की पढ़ाई का खर्चा उठाता था बच्चों के लिए मुफ्त के स्कूल बनवाए और भी बहुत कुछ करा जिससे वह मोहन अब पूरे गांव वालों का दुलारा हो गया था। अब वह रिश्तेदार भी मोहन से माफी मांग रहे थे जो उसे कभी बुरा भला कह कर गए थे उन्हें एहसास हुआ था कि हमें उसका मोहन का साथ देना चाहिए था लेकिन हम ने साथ नहीं दिया। हमने मोहन के साथ बहुत ही गलत करा है अब हमें मोहन से माफी मांग लेनी चाहिए ऐसा सोचकर सभी रिश्तेदारों ने मोहन से माफी मांग ली तो मोहन ने कहा ठीक है मैं तुम्हें माफ कर देता। लेकिन एक बात याद रखना कि बुरा वक्त आने पर इंसान इंसान के काम आता है।

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     अब सब रिश्तेदारों ने मिलकर मोहन की शादी करा दी और मोहन की शादी हो गई मोहन की शादी के बाद सब कुछ अच्छे से चलता रहा और मोहन का एक बेटा हुआ मोहन के बेटे ने भी बहुत अच्छी पढ़ाई की और गरीबों की मदद करने का गुण भी सीखा और उसने मोहन की कला भी सीख ली थी मतलब मिट्टी के बर्तन बनाने की कला सीख ली थी और अब वह मिट्टी के बर्तन और ज्यादा बनाने लगा था अपने बेटे के साथ मिलकर उन्हें बेचता और खूब धन कमाता था वह गरीब से अमीर बनना पर अपनाउसने काम नहीं छोड़ा और वह अब बहुत ही कामयाब कुम्हार बन गया  था। तो यह थी एक तो मोहन की कहानी जो मिट्टी के बर्तन बनाकर बहुत अमीर हो गया। धन्यवाद।

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