भारतीय नारियों के लिए आदर्श - राष्ट्रमाता कस्तूरबा | हिंदी में | पूरी जानकारी |

भारतीय नारियों के लिए आदर्श - राष्ट्रमाता कस्तूरबा  | हिंदी में | पूरी जानकारी | 


राष्ट्रमाता कस्तूरबा 



गाँधी जी का कहना था की मेरी पत्नी के प्रति अपनी भावना का वर्णन यदि मैं कर सकूँ तो ही हिंदू धर्म के प्रति मेरी क्या भावना है , उसे प्रकट कर सकता हूँ | मेरी पत्नी मेरे अंतर को जिस प्रकार हिलती है , उस प्रकार दुनिया की कोई दूसरी स्त्री उसे हिला नहीं सकती | उसके लिए ममता के एक अटूट बंधन की भावना मेरे अंतर में जाग्रत रहती है | 

युगपुरुष गाँधी को इतना प्रभावित करके नारी जाती का महत्व बढ़ाना कोई साधारण बात नहीं है | बा के इस गुण और महानता की प्रशंसा बड़े - बड़े विद्वानों और विचारकों ने की है | श्रीमती गोशी बहन कैथरिन ने बा के निकट रहकर और उनकी अंतरंग भावनाओं का अध्ययन करके यह लिखा था - "बा और सरोजिनी  देवी को देख कर ही हमें इस बात का अंदाजा ही सकता है की नारीत्व में कितना गौरत्व निहित होता है | इन दो स्त्रियों को देखने से क्या हमें इस बात का दिव्य दर्शन नहीं होता की हमारी भारतभूमि महान नारियों की भूमि है |  "

       स्वयं श्रीमती सरोजनी नायडू ने, जो बा और बापू के साथ प्रायः रहती थी, बा का देहावसान होने पर लिखा - "भारतीय स्त्रीत्व के जीते -जागते प्रतीक - सी, उस नाजुक किन्तु वीर नारी की आत्मा को चिर शांति प्राप्त हो | जिस महापुरुष को वे चाहतीं, उसके लिए वे निरंतर कुरबानी करती रहीं | जिस कठिन मार्ग को उन्होंने अपनाया था, उस पर चलते हुए उनके पैर एक क्षण के लिए भी लड़खड़ाए नहीं और न उसके दिल ने कभी कच्ची खाई | वे मातृत्व से अमरत्व में गईं और हमारी गाथाओं, गीतों और हमारे इतिहास की वीरांगनाओं की मण्डली में अपना वास्तविक स्थान पा गई | "

भारतीय नारी - स्वामी विवेकानद की दृष्टि में 



स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र था उसके पिता का नाम विश्व नाथ दत्त  था | स्वामी विवेकानंद ने बी ए तक पढाई की और इनके गुरु का नाम राम कृष्ण परमहंस था | स्वामी विवेकानद जी चाहते थे समाज की  जीवनी शक्ति नारी को प्रबुद्ध करना , जिससे उसके हृदय के आनंद की शतधारा स्वतः ही उच्छ्वासित हो सके | स्वामी जी कहते हैं - " भारत ! तुम मत भूलना की तुम्हारी स्त्रियों का आदर्श सीता, सावित्री दमयंती है | मत भूलना की तुम्हारा विवाह , तुम्हारा धन और तुम्हारा जीवन इन्द्रिय सुख के लिए और अपने व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं है " 

स्वामी विवेकानंद के शब्दों में " भारत की स्त्रियों को ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे वे निर्मल होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को भलीभाँति निभा सकें और संघमित्रा, अहिल्याबाई और मीराबाई आदि भारत की महान देवियों द्वारा चलायी गई परम्परा को आगे बढ़ा सकें | वे वीर  मूर्ति हैं, क्योंकि उनके पास वह बल और शक्ति है, ही सर्वशक्तिमान परमात्मा के चरणों में सम्पूर्ण आत्मा- समर्पण से प्राप्त होती है | मेरा तो ढृढ़ विश्वास है की धर्म की शिक्षा का मेरुदंड है | " 

वे आगे कहते हैं - " धर्म, शिक्षा, विज्ञान, गृह कार्य, स्वास्थ्य, सीना - पिरोना आदि सब विषयों का स्थूल मर्म स्त्रियों को सिखलाना उचित है | स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार हुए बिना भारत की उन्नति का कोई उपाय नहीं है | धर्म, शिक्षा, चरित्र गठन तथा ब्रह्मचर्य -पालन इन्ही के लिए तो शिक्षा की आवश्यकता है | शिक्षा देने वाले एवं सभी सत्कार्यों के प्रवर्तकों को अवस्थित कार्य के अनुष्ठान के पूर्व कठोर तपस्या की सहायता से स्वयं आत्मस्थ हो जाना चाहिए तभी उनके द्वारा दी गयी शिक्षा से वांछित परिणाम निकल सकते हैं | " 

सर्वप्रथम स्त्री जाति को ऐसा सुशिक्षित बनाना है की फिर वे स्वयं कहेंगी की उन्हें कीन सुधाओं की आवश्यकता है | पुरुष वर्ग को उनके प्रत्येक कार्य में हस्तक्षेप तथा परामर्श करने का क्या अधिकार है ? अपनी समस्याओं का समाधान वे स्वयं कर लेंगी | 

शिक्षा से मेरा तात्पर्य कन्याओं को सच्ची रचनात्मक शिक्षा से है | केवल पुस्तकीय विद्या से कुछ भला नहीं हो सकता | हमें तो वह शिक्षा चाहिए जिससे मनुष्य का चरित्र निर्माण होता है, उसके मानसिक वाल की बृद्धि होकर उसका बौद्धिक विकास होता है और उसे अपने पैरो पर खड़े होने  शक्ति प्राप्त होती है | 

शिक्षा के अन्य अंगो के साथ स्त्रियों में साहस और वीरता का प्रादुर्भाव होना चाहिए | आज की परिस्थिति में यह अनिवार्य हो गया है की वे आत्म - रक्षा की शिक्षा प्राप्त करें | 

सच्चा शक्ति उपासक वह पुरुष है, जो सर्वशक्तिमान परमात्मा की शक्ति का सर्वत्र अनुभव करता है और प्रत्येक स्त्री में उस शक्ति का प्रकाश देखता है | प्रत्येक स्त्री को चाहिए की वह अपने पति के अतिरिक्त सभी पुरुषों को पूर्तवत समझे और प्रत्येक पुरुष को चाहिए की वह अपनी पत्नी के अतिरिक्त सभी स्त्रियों को मातृवत समझे | 

उजड़ जाओ | आबाद रहो 



    दोस्तों एक बार की बात है संत नानक अपने शिष्यों के साथ एक बार यात्रा पर निकले और वो गाँवों के बीच से गुजर रहे थे वहां के निवासियों ने संत नानक का बड़ा आदर सत्कार किया और उनकी अच्छी तरह से खाने दाने का इंतजाम किया  | चलते समय गुरु नानक जी ने आशीर्वाद दिया - 'उजड़ जाओ | '
         ये सुनकर कुछ अजीब सा लगा लेकिन ये बात पूछते उससे पहले वे दूसरे गांव आ गए वहां के लोगो ने तिरस्कार किया, कटु वचन बोले और लड़ने - झगड़ने पर उतारू हो गए | ये सब देखकर नानक जी ने उनको आशीर्वाद दिया - ' आबाद रहो | ' साथ में चलने वाले शिष्यों के संशय को दूर करते हुए नानक ने कहा - " सज्जन लोग जब उजड़ेंगे तो वे जहाँ भी जायेंगे सज्जता फैलाएंगे, किन्तु दुर्जन सर्वत्र अशांति उत्पन्न न करे इसलिए उनके एक जगह रहने में भलाई है | " 

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