किसी की औकात उसके कपड़ों से नहीं, मेहनत और हुनर से तय होती है – प्रेरणादायक कहानी

किसी की औकात उसके कपड़ों से नहीं, मेहनत और हुनर से तय होती है – प्रेरणादायक कहानी

रमेश एक गांव में रहने वाला बहुत ही होशियार और समझदार और बहुत ही पढ़ा-लिखा लड़का था उसका एक परिवार था जो गांव में ही रहता था। और वह उसी परिवार के साथ गांव में रहता था। रमेश को पढ़ना और  पढ़ाना बहुत ही पसंद था लेकिन उसके इतने गरीब हालात थे कि रमेश अपनी मनचाही पढ़ाई पूरी नहीं कर सकता था। इसलिए उसने सोचा कि क्यों ना मैं शहर चला जाऊं वही कुछ काम करूंगा और जो पैसे मिले करेंगे उन्हीं से मैं अपनी पढ़ाई भी पूरी कर लूंगा जब तक मेरी इच्छा पूरी नहीं होती मैं गांव नहीं आऊंगा। रमेश को पढ़ाई में सबसे ज्यादा कंप्यूटर से लगाव था। 
उसने गांव में रहकर कंप्यूटर सीखा कंप्यूटर के बारे में जाना और कंप्यूटर से जुड़ी हर एक चीज उसे पता थी। इसलिए वह शहर आ गया और सोचने लगा कि अब मैं कौन सी नौकरी करूंगा यहां रहकर।  उसने सोचा कि क्यों ना मैं शहर में रहकर कोई कंप्यूटर की जॉब ढूंढ लूं उससे मेरा काम और आसान हो जाएगा क्योंकि जो काम पहले से आता है अगर उसी को आगे बढ़ाया जाए तो कोई परेशानी नहीं होती इसीलिए वह शहर में स्थित जितने भी कंप्यूटर जॉब थे सबके लिए अप्लाई करने लगा। 
उसमें से कुछ  नौकरियों का उसके पास इंटरव्यू भी आया। लेकिन वह इसके बाद भी उदास था क्योंकि उसके पास ज्यादा अच्छे कपड़े नहीं थे दो-तीन जोड़ी कपड़े लेकर ही वह  गांव से शहर आया था और ना ही उसके पास इतने पैसे थे कि वह अपने लिए नए कपड़े खरीद सके लेकिन फिर भी वह उदास नहीं हुआ भगवान के ऊपर  रमेश ने सब कुछ छोड़ दिया और अपने जो पुराने कपड़े थे उन्हीं को पहनकर इंटरव्यू के लिए चला गया। 
लेकिन उसने फिर भी अपनी पूरी क्षमता के साथ पूरी जानकारी के साथ अपना इंटरव्यू दिया उसमें से एक जॉब उसे मिल भी गई इंटरव्यू देने के बाद। अब वह बहुत खुश था कि जैसे ही जॉब मिल जाएगी मैं सबसे पहले अपने लिए कुछ अच्छे कपड़े खरीद लूंगा जिससे जो जॉब मुझसे करा रहे हैं उन्हें कोई शर्मिंदगी महसूस ना हो। 
और मुझे भी शर्मिंदा ना होना पड़े। लेकिन वह मालिक जिसने उसे जॉब दी थी वह बहुत ही अच्छा इंसान था क्योंकि पहले वह भी कभी उसी स्थिति में  था जिस स्थिति में रमेश उसके पास नौकरी के लिए आया था इसलिए वह इंसान  कि हर परिस्थिति को अच्छे से जानता था। 
उसने सोचा कि अगर आज  मेहनत करने का इसे मौका दिया जाएगा तो कल को यह शायद हो सके मुझसे भी बड़ा ईमानदार एक बिजनेसमैन बन जाए। तभी तो उसने रमेश के हाल-चाल कपड़े रंग रूप सब देखकर भी जॉब दे दी वरना शहर में तो अच्छा पहनावा और अच्छी पर्सनालिटी वाले लोगों को ही सबसे पहले जॉब मिलती है। ऐसे लोगों को तो ज्यादातर रिजेक्ट ही कर दिया जाता है।
 अब रमेश रोज अकेले सब कुछ करता अपने लिए खुद ही नाश्ता बनाता खुद ही सारे काम करता और समय से अपनी जॉब पर भी पहुंच जाता और समय से अपने घर आकर दोबारा घर के कामों में ही लग जाता अकेला होने के कारण उसके लिए यह सब थोड़ा मुश्किल था लेकिन समय के साथ उसे आदत भी हो गई थी। 
अब उसे इंतजार था अपनी पहली तनख्वाह का उसने सोचा कोई बात नहीं मैं अपने कपड़े तो बाद में भी ले लूंगा लेकिन पहलीतनख्वाह से मैं पहले अपनी मां के लिए साड़ी और अपनी बहन के लिए सूट और अपने छोटे भाई के लिए अच्छे से कपड़े खरीद कर गांव लेकर जाऊंगा जिससे उन्हें बहुत खुशी होगी कि मैं सच में कोई नौकरी कर रहा हूं। और उसी के पैसों से मैं उनके लिए यह सब लेकर आया हूं।
 कुछ दिन बीत गए और समय के साथ रमेश को उसकी नौकरी की पहली तनख्वाह भी मिल गई। अब उसके मालिक ने सोचा कि अब इसे तनख्वाह मिल गई है तो अब एक-दो दिन बाद यह नए कपड़े खरीद लेगा अपने लिए और उन्हीं को पहन कर आएगा लेकिन रमेश ने तनख्वाह मिलते ही दो-तीन दिन की छुट्टी ले ली और बताया कि मुझे अपने गांव जाना है तो उसके मालिक ने बिना कुछ कहे रमेश को छुट्टी दे दी और कहा कि लेकिन छुट्टी के बाद समय से अपनी नौकरी पर आ जरूर जाना। 
इस पर रमेश ने कहा हां मालिक मैं जैसे ही गांव से शहर आ जाऊंगा तुरंत ही मैं नौकरी पर भी आ जाऊंगा अब रमेश अपने घर चला गया और शहर की दुकानों में जाकर उसने सबके लिए कुछ ना कुछ खरीदा पर अपने लिए कुछ भी नहीं खरीद पाया क्योंकि अब उसके पास ज्यादा पैसे नहीं थे बस किराए के लायक ही पैसे बचे थे तो उसने जल्दी ही बस पकड़ी और अपने गांव चला गया गांव जाकर उसने अपनी मां अपनी बहन अपने पिताजी और अपने भाई को सब की पसंद की जो चीजें खरीदी थी वह सबको दे दी।
 और कहा कि अब चिंता की कोई बात नहीं है मुझे शहर में मेरी मनचाही नौकरी मिल गई है और जिन्होंने नौकरी दी है वह मालिक बहुत अच्छे हैं तो किसी भी तरह कि मेरी कोई भी फिक्र मत करो रमेश की मां ने कहा तूने इतना सब कुछ खरीदा है तेरी तनखा तो खत्म हो गई होगी तो यहां से जाएगा कैसे जाने के बाद क्या खाएगा पूरा महीना है |
तब रमेश ने कहा नहीं तनख्वाह में से आधे पैसे मैंने बचाकर अपने खर्चे के लिए भी रख लिए थे और जो पैसे बचे थे उन पैसों से मैं तुम्हारे लिए कुछ ना कुछ खरीद लाया। यह बात सुनकर अब सबके चेहरे पर खुशी आ गई लेकिन  रमेश की मां ने पूछा क्या तूने अपने लिए कुछ भी नहीं खरीदा कपड़े भी वही पुराने पहन कर आया है तब उसने कहा नहीं मां अगली तनखा मिलेगी जब मैं अपने लिए जरूर कुछ ना कुछ खरीद लूंगा तुम चिंता मत करो मैं शहर में खुश हूं और मैं अपनी मनचाही नौकरी कर रहा हूं मालिक बहुत अच्छे है। 
तुम मेरी किसी भी तरह से कोई भी फिक्र मत करो। रमेश ने खुशी-खुशी दो-तीन दिन गांव में बिताए और शहर आ गया और आकर दोबारा अपनी नौकरी पर ध्यान देने लगा दोबारा से अपनी नौकरी करने लगा। अब जैसे ही दूसरी तनखा आई वैसे ही खबर आ गई कि गांव में मां की बहुत तबीयत खराब है पैसों की जरूरत है तब रमेश ने सोचा अगर मैं हर महीने ऐसे ही छुट्टी लेता रहूंगा तो शायद मेरी नौकरी ना रहे इसीलिए उसने खत लिखा कि मैं पैसे मनीआर्डर से भेज रहा हूं तुम लोगों को मिल जाएंगे और मां का अच्छे से इलाज कराना और पैसों की जरूरत हो तो बता देना। 
खत पढ़कर रमेश के घर वालों को तसल्ली मिली और मनीआर्डर का इंतजार करने लगे रमेश ने पैसे मनीआर्डर से अपने घर भेज दिए थे।और घर वालों को पैसे मिल भी गए  मां का इलाज अच्छे से हो गया और गांव से खत आया कि अब मां ठीक है पैसों की जरूरत नहीं है। लेकिन रमेश इस बार भी अपने लिए कुछ नहीं खरीद पाया था। रमेश ने सोचा कि मैं अगली तनख्वाह अपने लिए कुछ ना कुछ खरीद लूंगा समय के साथ रमेश अपना काम करता गया और तीसरी तनख्वाह भी रमेश को मिल गई अब इस बार गांव से खत आया की।
 रमेश की बहन को कुछ लड़के वाले देखने आ रहे हैं तो उनकी खातिरदारी के लिए घर में पैसे नहीं है कुछ पैसे भिजवा दो रमेश ने मनी ऑर्डर से पैसे भिजवा दिए और पैसे घरवालों को मिल भी गए जिससे उन्होंने आए हुए रिश्तेदारों की अच्छे से खातिर की और खुशी-खुशी रमेश की बहन का रिश्ता तय हो गया। क्योंकि रमेश अपना काम पूरी लगन मेहनत और ईमानदारी से कर रहा था बिना अपनी परवाह किए। 
अपने परिवार की लगातार मदद कर रहा था 3 महीने बाद भी रमेश ने अपने लिए कुछ भी नहीं खरीदा था जबकि हर बार  तनख्वाह पूरी की पूरी रमेश को ही मिलती थी यह सब देखकर उसका मालिक बहुत खुश हुआ और उसने सोचा कि क्यों ना अब इसे थोड़ा और ऊपर ले जाया जाए तब रमेश के मालिक ने रमेश को बुलाया और कहा कि कल से तुम यह नौकरी नहीं करोगी बल्कि और इससे भी बड़ी नौकरी करोगे मैं तुम्हारा प्रमोशन कर रहा हूं  तुम्हारे अंदर वह लगन और हिम्मत है जो मुझे अपने एक अच्छे नौकर में चाहिए इसीलिए मैं तुम्हें इससे भी बड़ी नौकरी दे रहा हूं। 
इसकी तनख्वाह भी अच्छी होगी तो जिससे तुम अपने परिवार का और अपना दोनों का ही ध्यान रख पाओगे। यह सब रमेश के साथ रमेश के ऑफिस में ही काम करने वाले एक  लड़के को अच्छा नहीं लगा क्योंकि वह उसी कंपनी में 2 साल से था और अपना काम भी अच्छे से करता था लेकिन उसका तो कोई प्रमोशन नहीं हुआ और रमेश को आए 3 महीने ही हुए थे और उसका प्रमोशन हो गया उसने सोचा नहीं मुझे यह प्रमोशन रोक हीं होगा अगर मुझे प्रमोशन नहीं मिलेगा तो इसे भी नहीं मिल सकता। 
अगले ही दिन रमेश के मालिक को बुखार आ गया जिस वजह से वह अपने ऑफिस नहीं आ पाए तो उनका नोटिस आ गया था कि आज मैं नहीं आऊंगा तो आज मेरी जगह रमेश सारी जिम्मेदारी संभालेगा। जब ऐसी एलाउंसमेंट पूरे ऑफिस में हो गई तो किसी कोई भी परेशानी नहीं थी क्योंकि सब जानते थे कि रमेश उनसे कहि ज्यादा बेहतर है लेकिन उस लड़के को बहुत परेशानी हुई असल में उसका नाम नितिन था |
नितिन सोचने लगा धीरे-धीरे करके यह इतना आगे बढ़ गया है कि यह मालिक की जगह पर अब हम पर हुकुम चलाएगा नहीं ऐसा नहीं हो सकता उसने सोचा कि मैं इसे बेइज्जत कर दूंगा तो यह दोबारा यहां पर आएगा ही नहीं। नितिन ने रमेश को बेइज्जत करने का प्लान बनाया  उसने रमेश के ऑफिस के बाहर ही कुछ  चिकनी चीज डाल दी जिस पर पैर रखते ही रमेश फिसल जाए और उसे उसकी बेइज्जती करने का मौका मिल जाए |
और ऐसा ही हुआ जैसे ही रमेश ऑफिस की तरफ जा रहा था उसने  उसे चिकनी चीज पर पैर रखा और वह फिसल गया इतने में नितिन दौड़ा दौड़ा आया पहले उसे उठाया और कहने लगा कि क्या बात आज मालिक की जगह पर हो तो आज ही पैर जमीन पर नहीं दिख रहे हैं तुम्हारे इतना भी मत उड़ो कि नीचे ही गिर जाओ और रमेश ने फिर भी कुछ नहीं कहा और कहा कि तुम मजाक बहुत अच्छा करते हो फिर नितिन ने कहा नहीं मैं मजाक नहीं कर रहा हूं मैं सच कह रहा हूं आज तुम मालिक के जगह पर हम  पर हुकुम चला रहे हो मैं भी इस कंपनी में 2 साल से अच्छा काम करता हूं |
लेकिन मुझे तो कभी ऐसा मालिक ने कुछ भी नहीं कहा ना ही प्रमोशन दीया और ना ही अपनी जगह दी। तुम्हें कैसे जगह दे दी क्या अपनी औकात भूल गए हो तुम गांव के रहने वाले हो गांव में ही अच्छे लगोगे चुपचाप यहां से अपना सब सामान बांधों और अपने गांव चले जाओ और अगर यहां नौकरी करनी है तो प्रमोशन कैंसिल करवा दो नहीं तो तुम्हारे साथ बहुत बुरा होगा। 
इस पर रमेश ने कहा अब तुम हद से ज्यादा ही बोल रहे हो अगर तुमने मुझे धमकी दी है ना तो तुम याद रखो मैं गांव का जरूर हूं लेकिन दिल का कमजोर नही जो तुम से डर कर या तुम्हारी धमकी से डरकर मैं यहां से चला जाऊंगा जिसने मुझे यहां पर रखा है | उसी को ही सिर्फ मुझे यहां से निकालने का हक है किसी और ऐरे गैरे को इतना हक नहीं है और रही बात मुझे जज करने की तो तुम मेरे कपड़े देख कर मुझे जज मत करो क्योंकि किसी की भी औकात उसके कपड़ों से नहीं उसके हुनर से होती है |
और मुझ में वह हुनर है जिससे मैं अपनी जिंदगी में बहुत आगे बढ़ जाऊंगा और तुम्हारे अंदर वह हुनर है जिससे तुम अपनी जिंदगी में बढ़कर भी नीचे गिर जाओगे। जैसे आज ही देख लो यहां पर कैमरे लगे हुए हैं अगर इस वक्त की रिकॉर्डिंग में मालिक को दिखा दूं तो क्या तुम्हारी नौकरी रहेगी क्या तुम यहां काम कर पाओगे पहले अपने बारे में सोचो  फिर दूसरों को धमकाना सीखना। 
रमेश की बात सुनकर नितिन के तो होश ही उड़ गए उसे पसीना आने लगा और उसने रमेश से माफी मांगी कि नहीं तुम ऐसा कुछ मत करना मैं अपने किए की माफी मांगता हूं और इसे डिलीट कर दो रमेश ने कहा ठीक है मैं तुम्हारी तरह पत्थर दिल नहीं है तुम ने माफी मांगी है तो मैंने तुम्हें माफ कर दिया। और यह तुम्हारी पहली और आखरी गलती है इसलिए मैं तुम्हें माफ कर रहा हूं आइंदा कुछ ऐसा किया तो मैं माफ नहीं करूंगा |
फिर नितिन वहां से चला गया फिर रमेश कंप्यूटर रूम में जाकर आज की इतनी टाइम की रिकॉर्डिंग डिलीट करने लगा जितने टाइम रमेश और नितिन में कहासुनी हुई थी। क्योंकि मालिक आते तो पहले रिकॉर्डिंग ही चेक करते कि कल क्या-क्या हुआ था और यह रिकॉर्डिंग अगर देख लेते तो नितिन की नौकरी ही चली जाती।और नौकरी ना होने का दुख रमेश से बेहतर कौन जानता है। 
लेकिन रमेश को नहीं पता था कि यहां की लाइव रिकॉर्डिंग मालिक अपने घर पर बैठे-बैठे अपने लैपटॉप में देख रहे हैं मालिक को सब पता था कि रमेश और नितिन ने एक दूसरे के साथ क्या करा है जब वह मालिक ठीक होकर ऑफिस में आए तब उन्होंने नितिन और रमेश  दोनों को एक कमरे में बुलाया और कहा कि देखो मैं सब जानता हूं कि मेरे पीछे तुम दोनों में क्या-क्या कहासुनी हुई है| 
लेकिन जब तुम दोनों ने एक दूसरे को माफ कर ही दिया है तब इस बीच में मैं बोलने वाला कोई नहीं होता लेकिन एक बात जरूर कहूंगा नितिन यह मेरा ऑफिस है यहां पर मेरी मर्जी चलेगी तुम्हारी मर्जी नहीं चलेगी।लेकिन जब तुम दोनों ने एक दूसरे को माफ कर ही दिया है | तब इस बीच में मैं बोलने वाला कोई नहीं होता लेकिन एक बात जरूर कहूंगा नितिन यह मेरा ऑफिस है यहां पर मेरी मर्जी चलेगी तुम्हारी मर्जी नहीं चलेगी। 
अगर यहां काम करना है यहां रहना है तो अपनी औकात में रहकर काम करना तुम अपनी औकात भूल रहे थे  तुम यह भूल गए थे कि तुम एक मामूली नौकर हो और उसका प्रमोशन हो चुका है। और अब से तुम्हें रमेश की   कही हर बात माननी पड़ेगी क्योंकि अब वह तुम्हारा सीनियर है और तुम उसके जूनियर। इसीलिए किसी के भी कपड़े देखकर उसकी औकात को जज मत करना। क्योंकि किसी की भी पहचान उसके कपड़े से नहीं उसके हुनर से होती है। 
फिर मालिक ने दोनों को दोनों के काम में व्यस्त कर दिया कुछ सालों बाद रमेश एक मेहनती सफल और इमानदार बिजनेसमैन बन गया और नितिन उसी की कंपनी में एक छोटी सी जॉब कर रहा था तब नितिन को अच्छे से समझ में आया कि सच में किसी की भी औकात उसके कपड़ों से नहीं जांचनी चाहिए |
क्योंकि उस वक्त कपड़े मेरे अच्छे थे लेकिन औकात उसकी अच्छी थी उसका हुनर अच्छा था और इसीलिए वह कपड़े अच्छे ना होते हुए भी  कितना बड़ा सफल बिजनेसमैन है कि मुझे भी उसके वहां नौकरी करनी पढ़ रही है अब मैं अच्छे से समझ गया हूं कि किसी की भी औकात उसके कपड़ों से नहीं    जांचनी चाहिए। तो यह है हमारी कहानी 
किसी की औकात उसके कपड़ों से नहीं, मेहनत और हुनर से तय होती है – प्रेरणादायक कहानी
धन्यवाद।

टिप्पणियाँ