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    Friday, May 21, 2021

    रुचि जवानी में कदम रखने के बाद भी बचपन ना छोड़ पाई। ruchi javani me kadam rakhne ke baad bhi bachpan naa chhod paai hindi story 2021

    रुचि जवानी में कदम रखने के बाद भी बचपन ना छोड़ पाई।






     यह कहानी है रुचि की रुचि एक पढ़ी-लिखी बेहद सुंदर और अमीर घर की लड़की थी वह शहर में रहती थी और उसके दादी दादा गांव में रहा करते थे दरअसल रुचि के माता-पिता पहले गांव में ही रहते थे लेकिन रुचि के जन्म के बाद वह शहर आ गए थे। क्योंकि उन्हें रुचि को एक अच्छी जिंदगी देनी थी अच्छे से पढ़ाई लिखाई करानी थी गांव में तो लोग ज्यादा पढ़ाई लिखाई करवाने पर विश्वास नहीं  करते। इसलिए वह शहर में आ गए थे।  रुचि वैसे तो बहुत ही गुणवान लड़की थी हर चीज को बहुत ही जल्दी सीख लिया  करती थी और बहुत ही जल्दी कर लिया कर दी थी लेकिन वह जवान होने के बाद में भी अभी भी बचपन में ही जी रही थी या यूं कह लो की। जवानी में कदम रखने के बाद भी वह अपना बचपना नहीं छोड़ पाई थी जिसके कारण वह कभी-कभी ऐसी बचकानी हरकतें कर दिया करती थी।

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      जिसके कारण उसकी कॉलेज की टीचर भी उसको डांटा करती  थी। रुचि का ऐसा व्यवहार देख सबसे ज्यादा उसकी मां को फिक्र होती थी कि अगर बेटी का स्वभाव नहीं बदला तो शादी में रुकावटें आएंगी शादी कैसे होगी। अगर लड़के वालों के सामने रूचि ने कोई बचकानी हरकत कर दी तो हम क्या जवाब देंगे ऐसा सोच सोच कर ही रुचि की मां  डर जाया करती थी लेकिन रुचि थी कि अपना  बचकाना स्वभाव छोड़ने को राजी नहीं थी। रुचि का बचपना शहर में इतना बड़ा गया था।  कि उसे छोटे-छोटे बच्चों के साथ ही रहना पसंद था।बड़ों के बीच में रहना उसे पसंद ही नहीं था। उसकी मां उसे हमेशा कहती थी की माना तू अपना बचपना नहीं छोड़ सकती। लेकिन कम से कम बड़ों के बीच में रहने की तो आदत डाल ले अब  तू बड़ी हो रही है कुछ दिन बाद तेरे ब्याह की तैयारी होगी तो तुझे लड़का देखने के लिए आएगा तो वहां सब बड़े बड़े  लोग होंगे वह बच्चे नहीं जिनके साथ में तू खेलती है दिनभर उन्हीं के साथ में रहती है तो बता तू बड़ों के बीच में कैसे रह पाएगी तूने घबराकर कुछ उल्टी-सीधी हरकत कर दी तो हम उनसे क्या कहेंगे उन्हें क्या जवाब देंगे  तू हमारे बारे में तो सोचा कर कम से कम। रुचि अपनी मां की बात उस टाइम तो बड़े ध्यान से सुनती थी लेकिन बच्चों के बीच में जाते ही सब भूल जाया करती थी ऐसे ही एक दिन वह बच्चों के साथ मेले में चली गई और बच्चों के साथ ही पूरा मेला घुमा। और घर चली आई जब उसके पिताजी को इस बात की खबर मिली तो उन्होंने रुचि को बुलाया और कहा रुचि देखो हम तुझे डांट नहीं रहे हम तुम्हें समझा रहे हैं कि तुम इस तरह अकेले बच्चों के साथ मेले में क्यों गई  अगर तुम्हें मेले में जाना था तो तुम हमसे कह देती।

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    हमसे नहीं तो अपनी मां से बोल दिया होता हम तुम्हें मेला जरूर दिखा लाते लेकिन ऐसे तुम बच्चों के साथ में मेला  देखने चली गई अब देखो शहर में तुम्हारे लिए कैसी कैसी बातें बन रही है सब लोग तुम्हें अभी भी बच्ची ही समझते हैं लेकिन अब तुम बच्ची नहीं रही तुम जवान हो गई हो तुम बड़ी हो गई हो तुम्हारी शादी  करने की हमें चिंता होती है तुम यह सब बातें कब  समझोगी।अब  रुचि से बरदास ना हुआ तो रुचि ने कह दिया देखो पापा हम बच्चों के साथ में रहते हैं लड़कों के साथ में तो नहीं रहते जिनसे तुम्हारी बदनामी हो पिताजी ने कहा अगर तुम लड़कों के  साथ में रहती तो शायद बड़ों के बीच में रहना सीख जाती लेकिन तुम बच्चों के बीच में रहकर अपना कुछ नहीं बहुत कुछ बिगाड़ रही हो माना तुम  बच्चों के बीच रहकर हमारी बेइज्जती नहीं करा रही लेकिन   तुम्हारा हमेशा बच्चों के साथ रहना बेज्जती से कम भी नहीं है अगर तुम्हें बड़ों के बीच खड़ा कर दिया जाए तो तुम क्या करोगी। इस पर रुचि ने कहा पिताजी यह मेरी जिंदगी है मैं अपनी मर्जी से ही जिंदगी को जीना चाहती हूं किसी और की मर्जी से नहीं और मैं अपना बचपना नहीं छोडूंगी मुझे बच्चों के बीच में रहकर खुशी मिलती है उसके पिताजी ने कहा तुमसे बच्चों के बीच में रहने में कौन मना करता है लेकिन बड़ों के बीच में रहना सीख लो। शादी होकर ससुराल जाओगी तो तुम्हें बड़ों के बीच में ही रहना है बच्चों के बीच में नहीं  यह बात तुम क्यों नहीं समझती फिर रुचि नाराज होकर अपने कमरे में चली गई अब उसके पिताजी को कुछ और समझ में नहीं आया तो उन्होंने रुचि की मां को बुलाया और रुचि की मां को सारी बात बताई रुचि की मां ने कहा देखो जी यह शहर है यहां लड़कियां सब अपनी मनमानी करती है हो सकता है हमारी बेटी भी इसलिए यह सब नहीं समझ पा रही हो और अपनी मनमर्जी की जिंदगी जीना चाहती हो हम कोई बहाना बनाकर उसे हमेशा के लिए गांव ले जाते हैं हो सकता है वहां स्वभाव बदल जाए उसका।

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     यह विचार  रुचि के पिताजी को अच्छा लगा और उसके पिताजी ने कहा यह तो बहुत अच्छी बात सोची तुमने इतने दिनों से मां बाबूजी से भी दूर रहे हैं आप सब से मिलना जुलना हो जाएगा बल्कि अब तो उन्हीं के साथ रहेंगे यहां  शहर में कुछ नहीं रखा है। हम शहर में यह सोच कर आए थे कि हमारी बेटी को हम अच्छा बनाएंगे हमारी बेटी अच्छी तो बन गई लेकिन बचपना नहीं छोड़  पाई।  जिसके कारण हमें पल-पल बेइज्जत होना पड़ता है। फिर संजोग से 2 दिन बाद रुचि की दादी की चिट्ठी आई उसमें लिखा था कि। तुम्हारे पिताजी की बहुत तबीयत खराब है तुम रुचि और बहू को लेकर जल्द गांव में आ जाओ कहीं देर मत लगाना जैसे बैठे हो वैसी ही आ जाओ तबीयत बहुत ही ज्यादा खराब है यह चिट्ठी रुचि के माता-पिता ने रुचि को थमा दी और कहा देख लो अब हमें गांव जाना है अब तुम क्या करोगी बच्चों को साथ लेकर  गांव जाओगी। रुचि ने कहा नहीं पापा मैं  सब समझती हूं लेकिन अब मैं तुम्हारे साथ गांव जाने को तैयार हूं क्योंकि यह मेरी दादी और दादा की जिंदगी का सवाल है वह मेरी जिंदगी से बढ़कर मेरे लिए है।ऐसा सुनकर उसके माता-पिता को संतुष्टि हुई और फिर उन्होंने कहा ठीक है तुम अपना सामान तैयार कर लो हम कल सुबह ट्रेन से गांव चले जाएंगे।

     रात बीत गई सुबह हुई सब ट्रेन में बैठकर गांव आ गए गांव में आते ही रुचि को गांव का रहन सहन कुछ अजीब लगा क्योंकि वह बचपन से ही शहर की साफ सफाई में पली-बढ़ी थी लेकिन गांवों में साफ-सफाई के बाद में भी जगह-जगह गंदगी तो रहती ही है तो यह रूचि को पसंद नहीं आ रही थी लेकिन उसकी मां ने उसे समझाया बेटा यहां का माहौल ऐसा ही रहता है तो तुम्हें आदत डालनी ही होगी। अब रुचि की मां को डर था कि कहीं रुचि  यहां भी अपनी बचकानी हरकतें शुरू ना कर दे जैसे तैसे एक महीना बीत गया फिर अचानक एक दिन गांव में एक छोटा सा मेला लगा था उस मेले को देखने के लिए गांव के सारे बच्चे इकट्ठे होकर जा रहे थे रुचि ने यह देखा तो रुचि से रहा नहीं गया उसने सोचा अगर मैं माता-पिता से कह कर जाऊंगी तो माता-पिता मुझे कभी बच्चों के साथ  मेले में नहीं जाने देंगे और मैं बच्चों के साथ में जाना चाहती हूं और रुचि बिना कुछ सोचे समझे बच्चों के साथ मेला देखने चली गई। रुचि के माता-पिता को इस बात की खबर नहीं थी तो वह रुचि को उसके कमरे में ना देख कर बहुत परेशान हुए और गांव में  रुचि को ढूंढने लगे सब लोग बहुत परेशान हो रहे थे जैसे ही मेला खत्म हुआ तो रुचि बच्चों के साथ आती हुई दिखी रुचि को इस तरह देख उसके पिता को तो बहुत ही गुस्सा आया कि एक तो रुचि हमें बिना बताए  मेले में चली गई जिससे हम बहुत परेशान हुए और दूसरा वह बच्चों के साथ गई है अब हम गांव वालों को क्या जवाब देंगे गांव में तरह-तरह की बातें होने लगी थी। कि कहीं रुचि पागल तो नहीं रुचि दिमाग से परेशान तो नहीं कहीं रुचि को कोई दिमागी परेशानी तो नहीं है कोई दिमागी बीमारी तो नहीं है तरह-तरह की बातें रुचि के पिता के कानों में पढ़ रही थी तो रुचि के पिता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उन्होंने रूचि का हाथ पकड़ा और अपने कमरे में ले गए।

    रुचि जवानी में कदम रखने के बाद भी बचपन ना छोड़ पाई।

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    वहां ले जाकर उन्होंने रुचि को एक कमरे में बंद कर दिया और कहा अब तू जब तक इस कमरे से बाहर नहीं आएगी जब तक तू  बड़े लोगों में रहना सीख नहीं लेती रुचि ने कहा ठीक है पापा मेरे साथ ऐसा मत करो मैं तुम्हारी हर बात मानूंगी मैं बड़ों के बीच में रहना जब  सीख पाऊंगी जब मैं बड़ों के बीच रहूंगी अकेले कमरे में मैं कुछ नहीं सीख पाऊंगी रुचि के पिता का गुस्सा उस  समय बहुत ज्यादा था तो उन्होंने उस  समय उसकी एक न सुनी अगले दिन जब उनका गुस्सा शांत हुआ तो उन्होंने रुचि को अपने पास बुलाया और कहा। देख बेटा हम अब भी यही कह रहे हैं कि तू बच्चों  के साथ में रहे लेकिन बड़ों के बीच में भी रहना सीख ले रुचि ने कहा ठीक है पिताजी अब मैं तुम्हारी सब बात मानूंगी। रुचि  की दादी ने जब यह बात सुनी तो वह बहुत परेशान हो गई और उन्होंने कहा में रुचि को अपनी तरह से  उसे समझा दूंगी। उन्होंने रुचि को अपने पास बुलाया और कहा देख बेटा हम भी बचपन में तेरी ही तरह  जवानी में भी बचपना नहीं छोड़ पाए थे। अरे बचपना किसमें नहीं होता हम बूढ़े हो गए  हमारे अंदर भी बचपना है लेकिन हम बच्चों के साथ तो नहीं रहते मतलब यही है कि तू बड़ों के बीच में भी रहना सीख ले और  अपने बचपन से भी दूर ना हो। अगर जिंदगी से बचपन ही खत्म हो जाए तो जिंदगी  मैं खुशी ही नहीं रहेगी बचपन किसी ना किसी बहाने जिंदगी में आता ही रहता है। जब हम छोटे थे तब हम अपने बचपन से वाकिफ थे जब हम जवान हो गए तो पड़ोस के बच्चों के साथ में हमने अपना बचपना दोबारा लौटते हुए देखा।

     जब हम शादीशुदा हो गए तब हमारे परिवार के बच्चों ने हमारे बचपन को फिर से जगा दिया जब हमारे खुद के बच्चे हुए तो हम दोबारा बचपन  में चले गए फिर  तू पैदा हुई तो फिर से एक बार हम बचपन में लौट गए।  इसी तरह से एक के बाद में एक कुछ ना कुछ होता रहा और बचपना हमारे पास बार-बार आता रहा पर इसका मतलब यह तो नहीं कि हम अपना घर परिवार भूल गए हम बड़ों के बीच रहना भूल गए  अब रुचि को सारी बात समझ आ गई थी तो उसने कहा ठीक है दादी मैं समझ गई अब मैं कोशिश करूंगी कि मैं बड़ों के बीच रहना सीख जाऊं। रुचि की दादी ने जब यह सब सुना तो उन्हें बहुत खुशी हुई और उन्होंने रुचि के माता-पिता को भी है खबर सुना दी। जिसको सुनकर उसके माता-पिता भी अब थोड़ी चिंता मुक्त हो गए थे। अब रुचि ने भी बच्चों के बारे में सोचना उनके बीच रहना बच्चों के साथ में खेलना बच्चों के साथ में घूमना फिरना सब छोड़ दिया था उसे इसमें काफी तकलीफ हो रही थी लेकिन रुचि और करती भी तो क्या। रुचि ने सोचा कहीं ऐसा ना हो मेरी एक ज़िद की वजह से कहीं कुछ गड़बड़ हो जाए माता-पिता तो वैसे ही मेरी चिंता में डूबे रहते हैं और  दादी दादा तो वैसे ही बीमार  रहते हैं। मैं नहीं  चाहती कि मेरी वजह से किसी को भी कोई परेशानी हो इसलिए मैं खुद तकलीफ सहती  रहूंगी। धीरे-धीरे करके उसने बच्चों से बिल्कुल वास्ता छोड़ दिया और अपने परिवार के साथ ही रहती अपने दादी दादा अपने माता-पिता अपने पूरे परिवार के साथ ही वक्त बिताया करती थी। जिसके कारण वह कुछ  समय में ही  बढ़ो की तरह नहीं रहना सोचना खाना-पीना चलना उठना बैठना सब सीख गई थी। 

    लेकिन अब उसने बच्चों के बारे में बिल्कुल सोचना बंद कर दिया था जिससे उसकी  दादी को महसूस हुआ कि यह  बड़ों की तरह सारी बातें तो सीख गई है लेकिन कहीं ना कहीं बच्चों से बिल्कुल दूर हो गई है कहीं ऐसा ना हो कल को जब इसके भी बच्चे हो तो यह बिल्कुल उनसे कोई ताल्लुक ही ना रखें और यह एक मां के लिए बहुत ही बुरा साबित होता है नहीं यह रूचि फिर से गलती कर रही हो और मुझे ही इसे समझाना होगा। दादी ने रुचि को अपने पास बुलाया और कहा रुचि  तू फिर से गलती कर रही है सूची अब रुचि घबरा गई उसने कहा कि अब मैं क्या गलती कर रही हूं मुझे बताओ दादी ने कहा तू बड़ों की तरह उठना बैठना चलना खाना-पीना सोचना सब  सीख गई है लेकिन तू अब बच्चों से दूर होती जा रही है ऐसा क्यों अब मैं देखती हूं कि तू बच्चों का नाम भी अपनी जुबान पर नहीं लेती बच्चों को बिल्कुल अनदेखा कर देती है कहीं ऐसा ना हो कल को जब तेरे बच्चे हो तो तू उनसे भी कोई वास्ता नहीं रख पाए और एक मां के लिए बहुत ही बुरा साबित होता है। रुचि चुप खड़ी रही क्योंकि दादी जो कह रही थी उसे सब समझ में आ रहा था लेकिन रुचि करती भी तो क्या। फिर  रुचि ने दादी से पूछा  कि आप ही बताओ फिर मैं क्या करूं।

    दादी ने कहा तू ऐसा कुछ कर जिससे तू बच्चों के पास  भी रह सके और बड़ों के बीच भी रह सके रुचि ने कहा ऐसा मैं क्या कर सकती हूं आप ही बताओ दादी ने कहा तू गांव के गरीब बच्चों को पढ़ाया कर तू शहर से पढ़ लिख कर आइ  है तो इसका लाभ तुझ तक नहीं रहना चाहिए तू गरीब बच्चों तक  अपने शिक्षा का लाभ पहुंचा  तू गरीब बच्चों को सुबह सुबह स्कूल में पढ़ाने जाया कर इससे तो बच्चों के बीच भी रहेगी और बच्चों को अपनी पढ़ाई का लाभ भी दे पाएगी। रुचि को दादी की कही बात बहुत पसंद आई उसने कहा दादी पर माता-पिता इस सब के लिए राजी होंगे रुचि की दादी ने कहा तू बिल्कुल फिक्र मत कर तेरे माता पिता को मैं समझा दूंगी।  जब रुचि के माता-पिता ने यह  सारी बात सुनी तो खुशी से भर  गए। और कहा यह तो हमारे लिए बहुत ही अच्छा होगा कि जो शिक्षा हमने रुचि को शहर में दिलवाई थी वह उस शिक्षा के कारण आप गांव के गरीब बच्चों को भी शिक्षित करेगी और इससे गांव का विकास भी होगा। अब रुचि रोज स्कूल में गांव के गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाने जाया करती थी कुछ समय बीत गया। 1 दिन गांव के सबसे अमीर घराने से रूचि के लिए रिश्ता आ गया तो उसके माता-पिता खुशी के मारे उछल ही पड़े। जिस लड़के का रिश्ता रुचि के लिए आया था उसका नाम नवीन था नवीन एक बहुत ही पढ़ा लिखा समझदार और अच्छी सोच का लड़का था उसने कहा वैसे तो मैं रुचि को खास पसंद नहीं करता था लेकिन जब से मैंने उसे गरीब बच्चों की इस तरह पढ़ाई में मदद करते देखा है  तब से मैं बस रुचि के बारे में ही सोचता रहता कि रुचि जैसी लड़की जिस घर में जाएगी घर को स्वर्ग बना देगी। रुचि के बारे में मैंने पता किया तो रुचि बेहद ही अच्छी लड़की है वह लड़कों से तो बिल्कुल वास्ता ही नहीं रखती और हमारे घर परिवार के लिए रुचि से ज्यादा अच्छी लड़की और कोई हो ही नहीं सकती तो इसलिए मैं अपने माता-पिता को आपके घर ले आया रुचि का हाथ मांगने के लिए यह सब सुनकर रुचि भी अब बहुत खुश हो गई थी और उसे समझ में आया कि  बड़े जो कुछ भी फैसला करते हैं जो कुछ भी हमसे कहते हैं वह सिर्फ हमारी भलाई के लिए ही करते हैं अगर आज मैंने अपना बचपना नहीं छोड़ा होता तो  मुझे यह  इतना अच्छा लड़का और इतना अच्छा घर परिवार कभी नहीं मिलता। रुचि के माता-पिता ने खुशी-खुशी रिश्ते के लिए हां कर दी और रुचि और नवीन की शादी बहुत धूमधाम से हो गई। लेकिन जैसे ही उसकी शादी हो गई और वह ससुराल चली गई तो  उसे अब दादी और अपनी मां पिता की कही बातें याद आने लगी कि माता पिता और दादी दादा सब मेरे भले के लिए ही कहते थे।

    रुचि जवानी में कदम रखने के बाद भी बचपन ना छोड़ पाई।

     क्योंकि जब से मैं शादी हो कर आई हूं सिर्फ बड़ों के बीच में ही रहती हूं बच्चों से तो कोई वास्ता ही नहीं रख पाती बच्चों से  बोल ही नहीं पाती अब समझ आया दादी और मां ऐसा क्यों कहते थे कि जब तू शादी होकर ससुराल जाएगी तो तुझे ससुराल में बड़ों के बीच ही रहना है बच्चों के बीच नहीं रह पाएगी तो अपनी आदत बदल ले। कुछ समय बीत गया तो रुचि और नवीन के एक बहुत ही सुंदर सा बेटा हुआ जिसके बाद रुचिका बचपन दोबारा लौट आया अब रुचि समझ गई कि दादी ऐसा क्यों कहती थी। क की बचपन समय-समय पर हमारे पास आता रहता है अब यह मेरा बचपन ही तो मेरे पास लौट आया है मैं इसके साथ में खेलूंगी तो अपने बचपन में ही वापस लौट जाऊंगी।

     सही कहा है किसी ने बचपना सब में होता है पर बचपन की भी एक हद होती है। अब रुचि अपने बचपन के साथ-साथ अपनी जिम्मेदारियों को भी अच्छे से निभा रही थी। जिसके कारण वह एक अच्छी बहू एक अच्छी मां और एक अच्छी बेटी बन पाई थी। और उससे यह भी महसूस हो गया था कि मैंने जो शहर में किया था वह कितना गलत था मेरे माता-पिता को  कितनी तकलीफ हुई थी और उसने अपने माता-पिता से इस बात के लिए माफी भी मांगी। उसके माता-पिता ने उसे माफ कर दिया। और उन्होंने बस एक ही शिक्षा दी की बेटी हर चीज की एक हद होती है हद से ज्यादा कोई भी चीज हमारे लिए घातक साबित होती है तेरे बचपन ने हद पार कर दी थी तो हमें यह सब करना पड़ा। रुचि ने कहा अगर तुम यह सब ना करते तो आज  मैं खुशहाल जिंदगी नहीं जी रही होती है। ऐसा कह कर  रुचि अपने घर लौट आई और  अपनी गृहस्थी में ही मगन  हो गई।तो यह है  कहानी। रुचि  कि जो जवानी के बाद भी बचपन का जीवन जी  रही थी। धन्यवाद।

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