दोस्ती की आड़ में धोखा। dosti ki aad me dhokha

दोस्ती की आड़ में धोखा।

रवि और दिनेश की। दिनेश गांव से शहर में कॉलेज में पढ़ने के लिए गया था। तभी वहां उसकी मुलाकात रवि से हुई। रवि भी पढ़ाई लिखाई में अच्छा था। और कॉलेज में 1 साल पुराना भी हो गया था। और दिनेश को रवि का स्वभाव भी अच्छा लगा तो दोनों में थोड़ी बहुत बातचीत शुरू हो गई। दोनों कभी कभी साथ में बैठ जाते तो कभी कभी अलग बैठ जाते  थे। इसीलिए कॉलेज के लोगों को समझ में नहीं आता था कि इन दोनों में दोस्ती है भी या नहीं। क्योंकि अगर दो लड़के पास में बैठते हैं और आपस में हंसी मजाक बातचीत करते हैं तो दूसरे लोगों उसे दोस्ती का नाम ही देते हैं। और अगर वही दो लड़के हंसते बोलते अचानक अलग-अलग बैठ जाएं दूर हो जाएं तो लोगों को थोड़ा कंफ्यूजन हो जाता है। कुछ ऐसा ही था रवि और दिनेश के साथ।
 दरअसल दिनेश को हंसी मजाक मौज मस्ती यह सब पसंद नहीं था यह सब उसे एक हद तक ही पसंद था अगर ज्यादा यह सब हो जाए तो उसे यह सब सिर्फ समय की बर्बादी ही लगती थी। इसीलिए वह रवि से थोड़ा दूरी बनाकर ही रखता था क्योंकि रवि पड़ता कम था लेकिन हंसी मजाक चुटकुले बाजी बहुत ही करता था। इसीलिए वह पढ़ाई में भी ज्यादा अच्छा नहीं था दिनेश ने 6 महीने की पढ़ाई में ही बहुत ही अच्छे से मेहनत की और पढ़ाई में आगे निकल गया। रवि को यह बात पसंद नहीं आती थी वह सोचता था कि मैं 1 साल से इस कॉलेज में हूं तो मैं इतना नहीं कुछ समझ पाया इस कॉलेज के बारे में  और ना ही यहां की पढ़ाई के बारे में। और यह कल का आया दिनेश यहां के बारे में भी अच्छे से जान गया है और यहां की पढ़ाई भी अच्छे से समझ लेता है। 
 दिनेश यह सब कैसे कर लेता है। अब रवि को दिनेश से ईर्ष्या होने लगी। इसीलिए रवि ने दिनेश से बोलना चालना बिल्कुल बंद कर दिया। लेकिन एक दिन रवि ने सुना कि दिनेश अपनी मां से अपने भविष्य के बारे में बात कर रहा था। कि वह आगे चलकर भविष्य में एक बड़ा बिजनेस बनाएगा। और उसी बिजनेस को संभालने में अपनी जिंदगी बिता देगा। यह बात रवि ने सुन ली तो रवि को दिनेश से और भी ज्यादा ईर्ष्या होने लगी। उस समय वह गुस्से में था तो ज्यादा कुछ सोच नहीं पाया लेकिन कॉलेज के बाद जब वह घर गया और रात को आराम करने के लिए लेट गया तब उसे दिनेश और उसकी मां की कही बातें याद आने लगी। तब उसके दिमाग में आया कि दिनेश आगे चलकर बिजनेस करना चाहता है और मेरे पापा भी बिजनेस करते हैं तो इसलिए मुझे बिजनेस की थोड़ी बहुत समझ भी है क्या हुआ अगर मैं पढ़ाई में अच्छा नहीं हूं  बिजनेस तो कर ही सकता हूं।
 फिर रवि ने सोचा कि क्यों ना मैं दिनेश से दोस्ती का झूठा नाटक रचाऊं और उसके बहुत करीब चला जाऊं उसका पूरा का पूरा विश्वास जीत लो और जब वह मुझ पर अटूट विश्वास करने लगेगा तभी मैं उसे एक ही झटके से उसके ही बिजनेस से निकाल दूंगा और उसके बिजनेस का मैं मालिक बन जाऊंगा। अब रवि ने सोचा अगर मैं दिनेश से अचानक दोस्ती की बात करूंगा तो दिनेश शायद मुझसे यह सवाल जरुर पूछेगा कि तू मुझसे फिर इतने दिनों से बोल क्यों नहीं रहा था तब मैं उसे क्या कहूंगा फिर रवि ने सोचा मैं उससे कह दूंगा कि मैं अपने भविष्य को लेकर बहुत ज्यादा परेशान था इसलिए मैं ज्यादा किसी से भी बात नहीं कर रहा था। अब अगले दिन जब रवि कॉलेज गया था तब दिनेश कॉलेज में पहले ही पहुंच गया था और क्लास रूम में बैठा हुआ था तब रवि दिनेश के पास गया और उससे कहा सॉरी दिनेश ने कहा सॉरी किस लिए। तब रवि ने कहा सॉरी इसलिए कि मैं तुम्हें बहुत ही दिनों से नजरअंदाज कर रहा हूं तुमसे बात नहीं कर पाता दरअसल वह ऐसा हुआ था कि मैं अपने भविष्य को लेकर बहुत ही परेशान हूं। इसीलिए मैं ज्यादा किसी से बात नहीं कर पा रहा था लेकिन मैंने सोचा ऐसे किसी से बात ना करके भी मेरी परेशानी बढ़ेगी अगर मैं किसी से सलाह मशवरा करूंगा तो शायद मेरी परेशानी का कोई हल निकल आए। 
जिसमें मेरा भला हो सके। इस पर दिनेश ने कहा तो तुमने मुझसे बात करना बिल्कुल ठीक से ही शुरु कर दिया क्योंकि मैं आगे चलकर भविष्य में कॉलेज खत्म होने के बाद अपना बिजनेस स्टार्ट करूंगा तो तुम पहले मुझसे बिजनेस स्टार्ट कैसे करते हैं वह सीख लेना और फिर तुम खुद अपना बिजनेस शुरू कर लेना। इस पर रवि ने वह वाली बात नहीं कही कि मैं भी बिजनेस के बारे में थोड़ा बहुत जानता हूं वरना दिनेश सोचता की अगर यह बिजनेस के बारे में जानकारी रखता है। तो यह फिर भविष्य को लेकर परेशान ही क्यों है। रवि ने कहा ठीक है पहले कॉलेज की पढ़ाई खत्म करते हैं फिर देखते हैं भविष्य में हम क्या कर पाए। दिनेश ने कहा यह तो तुमने बहुत अच्छा कहा अभी हम अपने वर्तमान पर ही ध्यान देते हैं भविष्य की जब देखेंगे जब हम भविष्य में पहुंच जाएंगे। अब रवि और दिनेश की दोस्ती दिन-ब-दिन गहरी होती चली जा रही थी लेकिन यह दोस्ती झूठी थी दिनेश को यह जरा भी पता नहीं था रवि तो सिर्फ दिनेश के आगे पीछे इसलिए घूमता था कि आगे चलकर वह दिनेश का बना बनाया बिजनेस खुद हड़प ले। और फ्री में ही बिजनेस का मालिक बन जाए। देखते ही देखते रवि ने दिनेश का पूरी तरह से दिल और विश्वास दोनों ही जीत लिए। कुछ दिनों बाद दोनों का कॉलेज खत्म हो गया कॉलेज से पढ़ाई पूरी हो गई अब आगे पढ़ने के बजाय उन्होंने बिजनेस की शुरुआत करना सही समझा। बिजनेस जितना जल्दी शुरू करोगे उतनी ही जल्दी बिजनेस बड़ेगा जितना देर करोगे उतना ही बिजनेस फैलने में देरी होती चली जाएगी। और बिजनेस से एकदम पैसा नहीं आता पहले मार्केटिंग वगैरह का देखना पड़ता है इसीलिए उन दोनों ने बिना देर किए ही बिजनेस करना शुरू कर दिया। अब भी रवि दिनेश के आगे पीछे घूमता ही रहता था रवि दिनेश की कहीं हर बात मानता था चाहे वे उसे अच्छी लगती हो या नहीं लगती हो। 
देखते ही देखते दिनेश ने दो-तीन सालों की कड़ी मेहनत के बाद धीरे-धीरे करके अपना बिजनेस बहुत अच्छा कर लिया अब उसे ना कमाई की कोई चिंता थी और ना ही पैसे की और ना ही किसी और चीज की वह अब बेफिक्र होकर अपनी जिंदगी को जी रहा था और अपना बिजनेस अच्छे से कर रहा था। अब रवि ने सोचा यही सही मौका है कि मैं दिनेश को उसके बनाए बिजनेस के बाहर कर दूं और खुद उस बिजनेस का मालिक बन जाऊं लेकिन यह मैं कैसे करूं। एक दिन दिनेश ने रवि को सारी बिजनेस के जो बहुत जरूरी पेपर थे वह दे दिए और कहा कि तुम ऐसा करो इन पेपर्स को दोबारा तैयार करवा लो क्योंकि यह बहुत पुराने हो गए हैं तो यह बेकार से हो गए हैं और जब तक नए पेपर नहीं बन जाए इन पुराने पेपर को कहीं भी नहीं फेंकना। 
अब तो जैसे रवि को मौके की तलाश थी और मौका बस मिल ही गया। अब रवि को सिर्फ अपनी अगली चाल चलनी थी। तब रवि ने दिनेश के कहे मुताबिक  पेपर तो बनवा लिए लेकिन। उन पेपरों को बनाने में उसने दिनेश की जगह अपना नाम डलवाया और साइन भी अपने ही किए जिसके बाद वह सारा बिजनेस हमेशा के लिए अब रवि का हो गया था वह बिजनेस दिनेश का है अब इसका कोई सबूत नहीं था।
 जब दिनेश को इस बात का पता चला तो दिनेश को हार्ट अटैक आ गया और वह अस्पताल में भर्ती हो गया। और उसने रवि से कहा कि अगर तुझे मेरा बिजनेस ही चाहिए था तो तूने यह धोखा क्यों किया तू मुझसे सामने से भी मांग सकता था नए पेपर तो तू बनवा ही रहा था मैं खुशी-खुशी सारा बिजनेस तुझे सौंप देता और खुद कहीं और चला जाता लेकिन तूने धोखा करके बहुत ही गलत किया। तूने मेरे साथ ही नहीं मेरे दिल के साथ और मेरी दोस्ती के साथ भी तूने धोखा करा और मेरा विश्वास तोड़ा वह अलग। तब रवि ने कहा कौन सी दोस्ती की बात कर रहा है यह सुनकर तो दिनेश को और भी बड़ा झटका लगा रवि ने कहा वह दोस्ती कुछ भी नहीं थी सिर्फ नाटक था तेरे बिजनेस को हड़पने का उसे धोखे से अपना बनाने का। 
यह सुनकर दिनेश को और भी बड़ा झटका लगा और वह अपने उसी बेड पर हमेशा के लिए सो गया। इस पर रवि का रास्ता और भी ज्यादा साफ हो गया था क्योंकि अब उस पर इल्जाम लगाने वाला कोई नहीं था कि यह मेरा बिजनेस है। और रवि ने धोखे से इसे अपना बनाया है अब रवि बहुत ही खुश था। उसने बिना दिनेश के परिवार की परवाह किए बिना दिनेश के बारे में सोचें बिना राजी खुशी बिजनेस को अपना बना लिया और उसका मालिक बनकर रहने लगा। तो इस तरह रवि ने दिनेश को झूठी दोस्ती के जाल में फंसा कर उसके बिजनेस हो कैसे अपना बना लिया। और दिनेश को हमेशा के लिए इस दुनिया से ही निकाल दिया। तो यह थी कहानी। दोस्ती में धोखा।  
धन्यवाद।


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