किसी की उम्र देख कर उसकी हिम्मत का अंदाजा नहीं लगा सकते। क्योंकि मुसीबत सामने आने पर छोटे से छोटे बच्चे में भी अपने आप ही हिम्मत आ जाती है ताकि वह अपने आपको बचा सके। और अगर उसके साथ में कोई और है तो वह उसे भी बचा सके। अंकुर एक 5 साल का छोटा सा लड़का था। और उसका बड़ा भाई नितिन 10 साल का था। वह दोनों भाई बहुत ही शरारती थे उनकी शरारतों के चर्चे पूरे गांव में थे। 1 दिन छोटे भाई ने बड़े भाई से कहा कि भैया हम सिर्फ अपने घर में छोटे-मोटे खेल खेलते हैं जिसको खेल खेल कर हमारा मन भी भर गया है मैंने टीवी पर देखा था कि। दो बच्चे आपस में रेस लगा रहे थे उसमें से जो जीता माता पिता ने उसे बहुत बड़ा इनाम दिया। तो क्यों ना हम भी उन्हीं बच्चों की तरह रेस लगाएं। बड़े भाई ने कहा तुम्हारी तरकीब तो बहुत ही अच्छी है लेकिन रेस हम कहां तक की और कैसे लगाएंगे हमें तो मां गली से बाहर भी नहीं जाने देती और रेस लगाने के लिए तो बहुत ही बड़ी जगह चाहिए। इस पर छोटे भाई ने कहा कि भैया मैंने रात मम्मी को पापा से कहते हुए सुना था कि वह कल शाम तक के लिए अपनी मां के घर जाएंगी और अगर शाम तक नहीं आ पाई तो फिर अगले दिन सुबह आएंगी तो क्यों ना हम मम्मी के जाते ही रेस लगाना शुरू कर दे। इस पर बड़े भाई ने कहा कि अरे भाई यह तो बहुत ही अच्छी बात है कि कल मम्मी नानी के घर जाएंगी।और हम रेस भी लगा सकेंगे। अब बड़े भाई ने कहा ठीक है रेस लगाने का समय तो तय हो गया है लेकिन कहां तक रेस लगाएंगे यह किसने सोचा ना तूने सोचा ना मैंने सोचा फिर छोटे भाई ने कहा कि भैया हम गांव की सीमा तक की रेस लगाएंगे। ताकि अगर हम रास्ता भटक भी जाएं तो कोई हमारे गांव का हमारे घर तक हमें छोड़ जाए। यह सब सुनकर बड़े भाई ने कहा कि अरे छोटे तू तो बहुत होशियार हो गया है यह सब तो तूने बहुत ही अच्छा सोचा है। तो तय हो गया कि कल सुबह मम्मी जब नानी के घर चली जाएंगी तब से ही हम रेस लगाना शुरू कर देंगे और रेस हम सिर्फ अपने गांव की सीमा तक ही लगाएंगे और जो जीतेगा उसे 1 महीने तक दूसरे भाई की बात माननी पड़ेगी। ऐसा सुनकर छोटा भाई राजी हो गया अब दोनों ने राजी राजी दिन बिताया रात को सो गए और सुबह उठते ही अपनी मां के नानी के घर जाने का इंतजार करने लगे। जैसे ही उनकी मां नानी के घर जाने के लिए निकल गए उसके 10:15 मिनट बाद ही वह दोनों घर से बाहर आ गए और गांव के चौराहे पर जाकर खड़े हो गए और कहने लगे कि ठीक है अब रेस शुरू होती है फिर दोनों भाई दौड़ने लगे एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में वह दोनों बहुत ही तेज तेज दौड़ रहे थे। करीब 4 5 घंटे लगातार तेज तेज दौड़ने के बाद वह दोनों गांव की सीमा तक पहुंच गए लेकिन अंकुर नितिन से पहले गांव की सीमा तक पहुंच गया जिसके कारण अंकुर रेस जीत गया और नितिन हार गया। और अंकुर ने कहा कि भाई अब तो तुम्हें 1 महीने तक सिर्फ मेरी कहीं बात ही माननी पड़ेगी नितिन ने कहा ठीक है ठीक है मैं 1 महीने तक तुम्हारी बात मानूंगा आखिर तुम मुझसे जीत जो गए हो। फिर वह दोनों खुशी-खुशी घर की तरफ लौटने लगे लेकिन रास्ते में उन्हें फिर से शरारत सूझी और उन्होंने सोचा कि क्यों ना हमें थोड़ी देर जंगल में रुक कर कुछ खा पी लेना चाहिए ज्यादा देर नहीं रुकेंगे क्योंकि अब शाम होने वाली है इसीलिए जंगल से जल्दी ही निकल कर हम अपने घर की तरफ बढ़ेंगे। और फिर क्या पता घर पर मम्मी भी तब तक आ जाएं इसलिए हमें जल्दी जल्दी यह सब करना होगा। फिर अंकुर और नितिन सामने दिख रहे जंगल की तरफ चले गए वह कुछ फल तोड़कर खाने लगे और फल तोड़कर खाने के बाद वह नदी के पास गए और उन्होंने खूब जल पिया फिर उसके बाद वह वापस आ ही रहे थे कि नितिन अचानक किसी शिकारी के बनाए पत्तों से ढके बहुत ही बड़े और गहरे गड्ढे में गिर गया।जैसे मानो किसी शिकारी ने वह गड्ढा किसी बड़े जंगली जानवर को पकड़ने के लिए बनाया हो और नितिन गलती से उसके अंदर गिर गया हो। नितिन को गड्ढे में गिरा देख अंकुर डर गया घबराता गया फिर उसने कहा कि भैया तुम गड्ढे से बाहर आने की कोशिश करो कोशिश करने से तुम जरूर कामयाब हो जाओगे।और गड्ढे से बाहर निकल आओगे। अंकुर के कहने पर नितिन ने बहुत कोशिश करी कि वह गड्ढे से बाहर निकल आए लेकिन नितिन की कोशिश नाकामयाब रही वह गड्ढे से बाहर नहीं निकल पा रहा था। अब नितिन डर गया और घबरा कर रोने लगा और कहने लगा कि यह सब हम दोनों की गलती की वजह से ही हुआ है ना हम दोनों जंगल की तरफ आते और ना ही हम इस तरह यहां फसते नहीं पता कि इस जंगल में कौन-कौन से जंगली जानवर रहते हैं कहीं कोई जानवर आ गया तो दोनों ही नहीं बचेंगे। अंकुर लेकिन डर तो गया था लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी वह किसी भी हाल में अपने छोटे भाई को बचाना चाहता था। लेकिन नितिन ने सोचा कि मैं तो गड्ढे में फस गया हूं लेकिन अंकुर तो बाहर है तो उसने अंकुर से कहा कि भाई तू मेरी फिकर मत कर मैं बाद में कोशिश करके एक गड्ढे से बाहर निकल कर आ जाऊंगा।अभी तू अकेला घर चला जा और किसी को मत बताना कि मैं कहां पर हूं पूछे तो कह देना मुझे नहीं पता भैया कहां है। अंकुर ने कहा नहीं भैया मैं तुम्हें छोड़कर कहीं भी नहीं जाऊंगा। नितिन के बहुत कहने पर भी अंकुर कहीं नहीं गया और वहीं खड़ा होकर सोचने लगा कि अब भैया को गड्ढे से बाहर कैसे निकाले। फिर उसने सोचा कि जंगल है तो जंगल में बरगद के पेड़ भी जरूर होंगे और उनकी जड़ें आराम से पतली लचकदार और मजबूत भी होती है तो मैं उनकी एक रस्सी बनाकर भैया के गड्ढे में डाल दूंगा और भैया से कहूंगा कि भैया इसे पकड़ो और मैं तुम्हें खींचता हूं। अब अंकुर जंगल में बरगद का पेड़ ढूंढने लगा थोड़ी दूरी पर ही अंकुर को एक बरगद का पेड़ दिख गया जिसकी जड़ें नीचे तक लटक रही थी तब अंकुर ने मुश्किल से उन जड़ों को बरगद के पेड़ से अलग करा और उनकी एक बहुत ही मजबूत और लंबी रस्सी बना ली। फिर उसने रस्सी के एक छोर को एक लंबे और मजबूत पेड़ की जड़ से बांध दिया। और दूसरा छोर नितिन के गड्ढे में फेंक दिया। और नितिन से कहा कि भाई तुम इस रस्सी को पकड़ लो और फिर मैं तुम्हें खींच खींच कर बाहर निकाल लूंगा। लेकिन नितिन ने खींचने से मना कर दिया और कहा कि तुम बहुत छोटे हो कहीं मेरे चक्कर में तुम्हें कुछ चोट ना लग जाए। तुम ऐसी पागलपंती मत करो। लेकिन अंकुर ने नितिन को याद दिलाया कि भैया अगले 1 महीने तक तुम्हें मेरी बात माननी है और तुम बात मानने से मना नहीं कर सकते तो अभी इस रस्सी को पकड़ लो बस। ताकि मैं तुम्हें खींच खींचकर गड्ढे से बाहर निकाल सकूं और जल्दी-जल्दी फिर हम दोनों घर चले जाएं। नितिन ने कहा यह जिद कर रहा है तो मुझे अभी इसकी बात माननी ही पड़ेगी फिर नितिन ने रस्सी को पकड़ लिया। और फिर अंकुर ने अपनी पूरी जान और ताकत लगा दी और धीरे-धीरे करके उस रस्सी को ऊपर की ओर खींचने लगा धीरे धीरे धीरे धीरे करके वह रस्सी भी ऊपर की ओर आने लगी और नितिन गड्ढे से थोड़ा थोड़ा बाहर आने लगा फिर अंकुर ने अपनी और ताकत और मेहनत लगाई तो धीरे-धीरे करके नितिन पूरी तरह से गड्ढे से बाहर आ गया। फिर नितिन ने रस्सी को छोड़ दिया और जल्दी से जाकर अंकुर को पकड़ लिया क्योंकि वह बहुत ज्यादा ताकत का इस्तेमाल करने से कमजोर सा हो गया था जिसके कारण वह नीचे ही गिरने वाला था लेकिन नितिन ने उसे अपने हाथों में थाम लिया और उसे नीचे गिरने से बचा लिया। फिर नितिन उसे धीरे-धीरे करके चला कर नदी के पास तक ले गया और वहां जाकर उसके मुंह पर ठंडा नदी का पानी डाला तब अंकुर को थोड़ा थोड़ा होश आया फिर नितिन ने अंकुर से कहा कि तुम नदी के पानी से मुंह धो लो और पानी पीकर थोड़ी देर यहीं बैठ जाओ तुम जैसे ही ठीक हो जाओगे वैसे ही हम जल्दी जल्दी घर की तरफ को बढ़ेंगे। फिर अंकुर ने नितिन के कहने पर नदी के ठंडे पानी से मुंह हाथ धोए पानी पिया और वहीं बैठ गया।जैसे ही अंकुर ठीक हो गया पहले नितिन ने अंकुर को धन्यवाद कहा क्योंकि अगर आज अंकुर अपनी पूरी मेहनत और हिम्मत से नितिन को रस्सी के सहारे गड्ढे से बाहर नहीं खींचता तो नितिन उस गड्ढे में से पता नहीं कब तक वापस आता और वापस आता भी या नहीं वह यह सोच कर ही घबरा गया। नितिन ने जब अंकुर को धन्यवाद कहा तब अंकुर ने कहा नहीं भैया तुम मुझे धन्यवाद क्यों कह रहे हो यह तो मेरा फर्ज है अगर मैं इस तरह गड्ढे में फस जाता तो क्या तुम मुझे गड्ढे से बाहर नहीं निकालते इसी तरह मैंने भी तुम्हारी मदद की और तुम्हें गड्ढे से बाहर निकाला इसमें धन्यवाद कहने वाली कोई बात ही नहीं है। फिर नितिन ने अंकुर को अपने गले लगा लिया और कहा कि आज से मैं 1 महीने तक नहीं जिंदगी भर तक तुम्हारी हर कहीं बात मान लूंगा क्योंकि तुम मुझसे ज्यादा हिम्मत वाले होशियार और छोटे होकर भी बहुत निडर हो। फिर अंकुर ने कहा ठीक है भैया लेकिन अभी तो हमें अपने घर जाना है क्या पता मम्मी घर पर आ गई हो नितिन ने कहा ठीक है तो अब हम जल्दी-जल्दी जैसे दौड़ कर आए थे। वैसे ही जल्दी-जल्दी दौड़ कर अपने घर की ओर चले जाएंगे इससे हम बहुत ही जल्दी अपने घर तक पहुंच पाएंगे। फिर वह दोनों अपने घर की ओर दौड़े चले। हमें अंकुर की तरह किसी भी परेशानी से डरना नहीं चाहिए हर परेशानी का सामना हिम्मत ताकत और दिमाग से करना चाहिए क्योंकि परेशानियां उम्र देख कर नहीं आती बस आ जाती है और अंकुर की तरह छोटा होते हुए भी या बड़ा होते हुए भी हमें अपनी परेशानी का सामना करना चाहिए क्योंकि परेशानी का सामना करने से ही परेशानी का हल मिलता है। तो यह थी हमारी कहानी हिम्मत और समझदारी की मिसाल: छोटे भाई अंकुर की बहादुरी भरी कहानी।
thank you
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