विदेशी बहू की संघर्ष की कहानी: भारतीय पहनावे में अपनापन ढूंढना
यह कहानी है आशा की आशा ने अपने एक बेटे मोहन की शादी 1 साल पहले ही की थी। आशा का बेटा विदेश में रहता था तो उसने विदेशी लड़की से ही शादी करी लेकिन लड़की हिंदुस्तान से जाकर विदेश में रहने लग गई थी। मतलब आधी हिंदुस्तानी और आधी विदेशी थी वह लड़की उसका नाम था मोनिका। मोहन और मोनिका की शादी हुई तो विदेश में थी लेकिन शादी के 6 महीने बाद वह मोनिका को लेकर हिंदुस्तान अपनी मां के घर आ गया था। इंसान जहां रहता है जहां का रंग ढंग अपना लेता है फिर वह छोड़ने में बहुत ही समय लगता है ऐसा ही कुछ मोनिका के साथ बिता मोनिका कितने सालों से विदेश में ही पली-बढ़ी पढ़ी-लिखी और वही शादी की इसीलिए मोनिका का पहनावा भी विदेशी ही साथ हिंदुस्तान आकर भी उसका पहनावा वह जल्दी बदल नहीं पा रही थी। वह कोशिश तो बहुत करती थी लेकिन उससे साड़ी वगैरह संभाली नहीं जाती थी उसे अपने कपड़े ही आरामदायक और अच्छे लगते थे जिन्हें वह पहना करती थी। मोनिका को ऐसा देखकर उसके आसपास के घर के पड़ोसी शहर के लोग सभी तरह तरह की बातें बनाने लगे थे क्योंकि मोहन का परिवार बहुत ही संस्कारी और खानदानी था। उसके परिवार में कुंवारी लड़कियां हमेशा कुर्ता सलवार और शादी शुदा लड़कियां साड़ी पहना करती थी और कोई कपड़ा नहीं पहनती थी। इसीलिए मोनिका के विदेशी कपड़े पहनने के बाद आज पड़ोसी मुंह भर भर कर बातें कर रहे थे वह बातें करने से अपने आप को रोक नहीं पा रहे थे जब यह सारी खबरें मोहन के कानों में पड़ी तो मोहन को थोड़ा गुस्सा आया मोनिका के ऊपर लेकिन वह करता भी क्या वह समझ गया था कि उसे इस माहौल में ढलने में थोड़ा वक्त चाहिए लेकिन तब तक तो यह लोग जीना मुश्किल ही कर देंगे। फिर उसने अपनी मां से जाकर सारी बात कही तो उसकी मां ने कहा तू क्या सोचता है जो तूने खबर सुनी है वह क्या मेरे कानों तक नहीं पहुंची होगी सबसे पहले तो मैंने ही सुनी थी तब तेरे कानों में पहुंचती है लेकिन मैंने तो इस तरह अपनी बहू को दोषी नहीं ठहराया। अरे लोगों के कहने से क्या होता है अगर लोग किसी सच्चे इंसान पर झूठ का इल्जाम लगा देंगे तो क्या वह झूठा हो जाएगा और क्या किसी झूठे को सच्चा बना देंगे तो क्या वह सच्चा हो जाएगा लोगों के कहने से कुछ नहीं होता कुछ नहीं बदलता मुझे मेरी बहू स्वीकार है पूरे दिल से स्वीकार है चाहे वह जैसी भी है जैसे भी कपड़े पहनती है उसके गुण अच्छे हैं इसलिए वह मुझे पसंद है। पहनावा तो आज नहीं कल बदल ही जाएगा लेकिन इंसान के गुण अच्छे हो तो सब कुछ अच्छा होता है कि गृहस्ती अच्छी होती है खानदान अच्छा रहता है। यह बात सुनकर मोहन ने कहा मां खानदान घर के बच्चों से ही बनता है घर की बहुओं से ही बनता है और अगर खानदान में कोई बहू ऐसी आ जाए जिसकी वजह से लोग खानदान के लिए तरह-तरह की बातें करने लगे तो कहां से खानदान अच्छा बनेगा। नहीं मैं अपने खानदान की बदनामी नहीं होने दूंगा मैं मोनिका को लेकर विदेश ही चला जाऊंगा और वही रहूंगा इससे तुम्हारे खानदान की बदनामी नहीं होगी। और यह सब बातें सुनकर मोनिका को तो हम सब से भी ज्यादा तकलीफ होती है कि वह एक अच्छी बहू बनना चाहती है और नहीं बन पाएगी क्योंकि वह अपना पहनावा जल्दी नहीं बदल पाएगी और इसका फायदा आस पड़ोस वाले खूब उठा रहे हैं उसे अच्छा नहीं लगता कि कोई उसके बारे में कहे और उसके खानदान के बारे में कुछ कहें। वह भी हिंदुस्तान में ही रहती थी लेकिन जब उसके पिताजी ने उसे बचपन में ही विदेश भेज दिया तो इसमें उसकी क्या गलती है अब इंसान जहां रहता है वही की संगत में ढल जाता है तो रंग बदलने में तो वक्त लगता ही है। अब यह कौन समझेगा मैं कैसे समझाऊं। इसलिए मैं सारी परेशानी खत्म कर दूंगा मैं मोनिका को लेकर विदेश चला जाऊंगा बस। मोहन की यह बात सुनकर मोहन की मां ने कहा तू हमारी बहू को हमेशा के लिए हमसे दूर कर देखा नहीं हम ऐसा कभी नहीं होने होने देंगे तू क्या समझता है उसे हम बहू मानते हैं नहीं वह हमारी बहू नहीं बेटी है। और हमने पहले भी कहा था और हम अब भी कह रहे हैं कि हमारी बहू कहीं नहीं जाएगी वह जैसी है जैसा भी पहनावा पहनती है हमें वही स्वीकार है और वह हमारी बहू नहीं बेटी है। लोगों के कहने से क्या होता है। लोगों के कहने भर से हमारा खानदान खराब नहीं होता लोगों के कहने से हमारे खानदान का नाम हमारी इस नई बेटी की वजह से बदनाम नहीं होता। अरे पहनने वाले के अंदर कमी नहीं है देखने वाले के अंदर कमी होती है हम अपनी बेटी को कहीं नहीं जाने देंगे ऐसा सुनकर मोहन चुप हो गया और कहा ठीक है अगर तुमने उसे अपनी बेटी माना है तो मुझे कोई हक नहीं है कि मैं मां बेटी को एक दूसरे से अलग कर दूं जो तुम कहोगी मैं वही मैं करूंगा। यह सब मोनिका अपने कमरे में चुपचाप सुन रही थी और अब उसे संतुष्टि थी कि मेरा परिवार तो मेरे साथ है अब दुनिया कुछ भी कहे मुझे उससे फर्क नहीं पड़ता मेरी सांस के रूप में मेरी मां मेरे साथ है। लेकिन मैं अपनी कोशिश नहीं छोडूंगी मैं पूरी कोशिश करूंगी कि एक ना एक दिन यहां का पहनावा पहनना जरूर सीख लू। फिर कुछ दिनों बाद मोहन की मां ने मोहन की शादी की खुशी में घर में एक पार्टी रखी थी उस पार्टी में सारे खानदानी लोग सारे रिश्तेदार आए हुए थे। और उस पार्टी में जितनी भी औरतें आई हुई थी सभी ने साड़ी पहनी हुई थी। लेकिन अभी तक पार्टी में मोनिका नहीं आई थी तो सबको मोनिका का इंतजार था सभी मोनिका की सासू मां से पूछ रहे थे कि तुम्हारी बहू कहां है हमें उससे मिलना है। सुना है वह विदेशी है लेकिन आधी हिंदुस्तानी भी तो है। तो हिंदी तो उसे आती होगी ना। मोनिका की सास ने कहा हां हिंदी तो आती है मोनिका को आपको उससे बात करने में कोई भी परेशानी नहीं होगी। इतने में ही मोनिका एक विदेशी गाउन पहने हुए आंगन में आ खड़ी हुई जहां पार्टी हो रही थी। मोनिका को ऐसे कपड़ों में देख सारे लोगों के तो होश ही उड़ गए लेकिन मोनिका की सास और उसका पति एकदम सामान्य थे उन्हें कोई भी आश्चर्य नहीं हुआ मोनिका को ऐसे कपड़ों में देखकर। क्योंकि वह जानते थे मोनिका कोशिश तो कर रही है लेकिन कोशिश भी एकदम कामयाब नहीं होती समय लगता है इसलिए उन्होंने मोनिका से कुछ भी नहीं कहा और बेझिझक सबसे उसकी जान पहचान कराने लगे। लेकिन औरतों की जुबान कहां बंद रहती है औरतें मोनिका को ऐसे विदेशी गाउन में देखकर तरह-तरह की बातें बनाने लगी। यह सब मोनिका की सास से बर्दाश्त नहीं हुआ तब मोनिका की सास ने कहा तुम जिस का मजाक उड़ा रही हो वह हमारी बेटी है ऐसा सुनकर औरतें कहने लगी यह विदेशी बहू कब से तुम्हारी बेटी हो गई इस पर मोनिका की सास ने कहा जब से इस घर में इसने पहला कदम रखा था तब से ही हमारी बेटी हो गई है और यह कैसे भी कपड़े पहने हमें इससे कोई आपत्ति नहीं अगर आपको कोई आपत्ति है तो प्लीज आप यहां से चले जाएं। और फिर मोनिका की सास ने मोनिका का हाथ पकड़ा और कहने लगी बेटा तू जमाने से मत डर मैं जब तक जिंदा हूं तब तक तेरे साथ हूं और मरने के बाद भी तेरे साथ ही रहूंगी। मैं तुझे बेटी कहते ही नहीं मानती भी हूं। मोनिका ने कहा मां मैं आपको भी अपनी मां मानती हूं और मैं चाहूंगी कि आप हर जन्म में मुझे सासू मां के रूप में आप ही मिले। तो यह थी हमारी कहानी विदेशी बहू की संघर्ष की कहानी: भारतीय पहनावे में अपनापन ढूंढना। धन्यवाद।
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